जाने जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि, जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त ,कृष्ण के अनेकों नाम राशिनुसार कैसे करें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा!
श्रीकृष्ण
जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है. यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों
में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने
श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. देश के सभी राज्य अलग-अलग
तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने
आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान
करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्कूलों में
श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है.
अपनी
लीलाओं से सबको अचंभित कर देने वाले भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का
जन्मोत्सव 12
अगस्त, बुधवार को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार ये पावन त्यौहार हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष
की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है | कहा
जाता है कि इसी दिन विष्णु जी ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। अंग्रेजी
कैलेंडर के अनुसार यह पर्व अगस्त-सितंबर के महीने में आता है। इस दिन दुनिया भर
में लोग बाल कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और रात-भर मंगल गीत गाकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।कारा-गृह
में देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्मे कृष्ण के नामकरण के विषय में कहा जाता है कि आचार्य
गर्ग ने रंग काला होने की वजह से इनका नाम “कृष्ण” दिया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगर में हुआ और उनका बचपन गोकुल,
वृंदावन, नंदगाँव, बरसाना,
द्वारिका आदि जगहों पर बीता था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद
श्री कृष्ण ने 36 साल तक द्वारिका पर राज किया। भगवान
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, इसीलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी
कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, कन्हैया
अष्टमी, कन्हैया आठें, श्री कृष्ण
जयंती, श्री-जी जयंती आदि जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता
है।
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
११ अगस्त,मंगलवार- भाद्र
कृष्ण सप्तमी प्रातः ६.०६बजे समाप्त हो रही है। उसके बाद अष्टमी तिथि का प्रवेश
है,जो आगामी दिन बुधवार को प्रातः ७.५३ तक रहेगी। यानि इसी दिन अर्धरात्रि में
अष्टमीतिथि का संयोग मिल रहा है। मंगलवार को भरणी नक्षत्र रात्रि ११.१०तक है। उसके
बाद कृत्तिका का प्रवेश है। यानी रोहिणी अभी दूर है।
१२ अगस्त,बुधवार को प्रातः७.५३ तक अष्टमी है यानी इस दिन
सूर्योदयव्यापी बल मिल रहा है अष्टमी तिथि को। किन्तु रोहिणी नक्षत्र का बल इस दिन
भी नहीं मिल रहा है,क्योंकि कृत्तिका नक्षत्र का भोग रात १.२१ बजे तक है। उसके बाद
ही रोहिणी का प्रवेश हो रहा है।
१३ अगस्त,गुरुवार को नवमी
तिथि है प्रातः ९.१९ बजे तक। किन्तु रोहिणी नक्षत्र की व्याप्ति गत रात्रि से इस
रात्रि के ३.०६ बजे तक।
स्पष्ट है कि निशीथ व्यापिनी
अष्टमी मतावलम्बियों के लिए मंगलवार ग्यारह अगस्त ही प्रशस्त है। सामान्य जन को
बिना किसी तर्क-वितर्क के इसे ही ग्रहण करना चाहिए और अगले दिन प्रातः ७.५३ के बाद
पारण करना चाहिए।
श्री
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
शास्त्रों
में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को ‘व्रतराज’ कहा जाता है, इसीलिए इस दिन व्रत एवं पूजन का विशेष
महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से साल में होने वाले कई अन्य
व्रतों का फल मिल जाता है। भगवान विष्णु के आठवें अवतार कहे जाने वाले कृष्ण के
दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी दुःख दूर हो जाते हैं। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा
से इस व्रत का पालन करते है, उसे महापुण्य की प्राप्ति होती
है। जन्माष्टमी का व्रत संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि,
वंश वृद्धि, दीर्घायु और पितृ दोष आदि से
मुक्ति के लिए भी एक वरदान समान है। जिन जातकों का
चंद्रमा कमजोर हो, वे भी जन्माष्टमी पर विशेष पूजा कर के लाभ
पा सकते हैं।
अलग अलग राज्यों में हैं कृष्ण के अनेकों नाम
वैसे
तो भगवान श्री कृष्ण के अनेकों नाम हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी
नाम हैं जो बेहद प्रचलित हैं और अलग अलग राज्यों में उन नामों से जाना जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण को उत्तर प्रदेश में ब्रजवासी, माधव,
नंद गोपाल, बांके बिहारी, वासुदेव, गोविंद और गोपी आदि नामों से पुकारते हैं,
तो वहीं राजस्थान में उन्हें “श्री नाथजी”
और “ठाकुर जी” के नाम से
पुकारा जाता है। गुजरात में “द्वारकाधीश” एवं “रणछोड़दास” के नाम से
जाना जाता है, तो महाराष्ट्र में विट्ठल तो के नाम पुकारते
हैं।
उड़ीसा
में कृष्ण को “भगवान जगन्नाथ” तो बंगाल की तरफ “गोपाल जी” के नाम से पुकारा जाता है। दक्षिण भारत
में कृष्ण की “वेंकटेश” या “गोविंदा” के नाम पूजा की जाती है, जबकि असम, त्रिपुरा, नेपाल आदि
जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्रों में कृष्ण नाम से ही लोग इनकी पूजा करते हैं। नाम चाहे
कुछ भी हो, लेकिन पूरे देश-दुनिया के लोग श्री कृष्ण के प्रति
सच्ची श्रद्धा रखते हैं और उन्हें पूजते हैं।
जन्माष्टमी व्रत और पूजा
विधि
जन्माष्टमी
व्रत में अलग-अलग जगहों पर लोग अपनी सच्ची श्रद्धा से अलग-अलग तरीके से पूजा-व्रत
करते हैं। कुछ लोग जन्माष्टमी के एक दिन पहले से व्रत रखते हैं, तो वहीँ अधिकांश लोग जन्माष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के दिन उपवास और नवमी
तिथि के दिन पारण कर के करते हैं। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही रख सकते
हैं।
·
जन्माष्टमी व्रत को करने वाले को
व्रत से एक दिन पहले यानि सप्तमी को सात्विक भोजन करना चाहिए।
·
अष्टमी को यानि उपवास वाले दिन
प्रातःकाल उठकर स्नानादि करें। फिर सभी देवी-देवताओं को नमस्कार करें और पूर्व या
उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
·
अब हाथ में जल और पुष्प आदि लेकर
व्रत का संकल्प लें और पूरे विधि-विधान से बाल गोपाल की
पूजा करें।
·
दोपहर के समय जल में काले तिल
मिलाकर दोबारा स्नान करें। अब देवकी जी के लिए एक प्रसूति गृह बनाएँ। इस सूतिका
गृह में एक सुन्दर बिछौना बिछाकर उसपर कलश स्थापित कर दें।
·
अब देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेते विधिवत पूजा करें।
·
रात में 12 बजने से थोड़ी देर पहले वापस स्नान करें। अब एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा
लीजिए और उसपर भगवान् कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
·
कृष्ण को पंचामृत और गंगाजल से
स्नान कराने के बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
·
बाल गोपाल को धुप, दीप दिखाए, उन्हें रोली और अक्षत का तिलक लगाकर,
माखन-मिश्री का भोग लगाएँ। गंगाजल और तुलसी के पत्ते का पूजा में
अवश्य उपयोग करें। विधिपूर्वक पूजा करने के बाद बाल
गोपाल का आशीर्वाद लें।
·
जन्मष्टमी के दिन व्रत रखने वाले
लोगों को रात बारह बजे की पूजा के बाद ही व्रत खोलना चाहिए। (इस व्रत में अनाज
ग्रहण नहीं किया जाता है। आप फलहार कर सकते हैं या फिर कुट्टू या सिंघाड़े के आटे
का हलवा बना सकते हैं।)
तीन वक़्त में की जाती है
श्री कृष्ण जी की पूजा
दो
दिन मनाए जाने वाले जन्माष्टमी के त्यौहार में कुछ लोग कृष्ण के जन्म से पहले व्रत
रखते हैं,
तो वहीँ कुछ लोग कृष्ण के जन्म वाले दिन व्रत रखकर रात के समय जन्म
के उपरांत व्रत खोलते हैं। इस दिन मुख्य रूप से तीन
वक़्त में कृष्ण जी की पूजा की जाती है। आप भी अपनी श्रद्धा अनुसार व्रत रखकर कृष्ण जी का आशीर्वाद प्राप्त कर
सकते हैं। चलिए जानते हैं तीनों वक्त में की जाने वाली पूजा के विषय में-
·
पहली पूजा
जन्माष्टमी
के दिन की पहली पूजा सुबह सूर्योदय के समय की जाती है। इसके लिए सूर्योदय से पहले
उठकर स्नान आदि करने के बाद कृष्ण की पूजा करें। इस दौरान व्रत रखने वाले लोग
कृष्ण जी के बाल रूप की पूजा करें। जो लोग जन्माष्टमी से एक दिन पहले रखते हैं, वो इस पहली पूजा के बाद अपना व्रत खोल सकते हैं।
·
दूसरी पूजा
जन्माष्टमी
के दिन की दूसरी पूजा दोपहर के समय की जाती है। दोपहर के समय सबसे पहले माता देवकी
का जलाभिषेक करें,
इसके बाद उनके लिए सूतिकागृह का निर्माण कर पूजा करनी चाहिए। देवकी
माता की पूजा के बाद श्री कृष्ण की विधि-विधान से पूजा करें।
·
तीसरी पूजा
जन्माष्टमी
के दिन की तीसरी पूजा बहुत खास होती है, जो विशेष रूप से
मध्यरात्रि के 12 बजे यानि कृष्ण जन्म के समय में की जाती
है। इस समय श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा करें। साथ ही जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने
वाले लोग कान्हा को भोग लगाने के बाद अपना व्रत खोल सकते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें?
जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते
हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. जन्माष्टमी के दिन
सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र
और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं. कृष्ण की
पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है.
जन्माष्टमी की पूजा विधि
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन षोडशोपचार
पूजा की जाती है, जिसमें 16 चरण शामिल हैं:
1. ध्यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के आगे उनका
ध्यान करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ तमअद्भुतं बालकम् अम्बुजेक्षणम्, चतुर्भुज शंख गदाद्युधायुदम्।
श्री वत्स लक्ष्मम् गल शोभि कौस्तुभं, पीताम्बरम् सान्द्र पयोद सौभंग।।
महार्ह वैढूर्य किरीटकुंडल त्विशा परिष्वक्त
सहस्रकुंडलम्।
उद्धम कांचनगदा कङ्गणादिभिर् विरोचमानं
वसुदेव ऐक्षत।।
ध्यायेत् चतुर्भुजं कृष्णं,शंख चक्र गदाधरम्।
पीताम्बरधरं देवं माला कौस्तुभभूषितम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्यानात् ध्यानम्
समर्पयामि।।
2.
आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर इस
मंत्र से श्रीकृष्ण का आवाह्न करें:
ॐ
सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स-भूमिं
विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्।।
आगच्छ
श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।।
ॐ
श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।।
3.
आसन- अब श्रीकृष्ण को आसन देते
हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्।
स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।।
4. पाद्य- आसन देने के बाद
भगवान श्रीकृष्ण के पांव धोने के लिए उन्हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस
मंत्र का उच्चारण करें:
एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्र्च पुरुष:।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।
अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन।
पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।।
5. अर्घ्य- अब श्रीकृष्ण
को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें:
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः।।
अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।।
6. आचमन- अब श्रीकृष्ण को
आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पुरुष:।
स जातो अत्यरिच्यत पश्र्चाद्भूमिनथो पुर:।।
नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे।।
गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।।
7. स्नान- अब भगवान
श्रीकृष्ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्य पात्र में रखकर स्नान कराएं. सबसे
पहले पानी से स्नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्खन, घी और शहद से स्नान कराएं. अंत में साफ
पानी से एक बार और स्नान कराएं.
स्नान कराते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।।
8. वस्त्र- अब भगवान
श्रीकृष्ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्त्र पहनाएं. फिर
उन्हें पालने में रखें और इस मंत्र का उच्चारण करें:
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।।
9. यज्ञोपवीत- इस मंत्र का
उच्चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें:
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।।
10. चंदन: अब श्रीकृष्ण
को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें:
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्।
विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।।
11. गंध: इस मंत्र का उच्चारण
करते हुए श्रीकृष्ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं:
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।।
12. दीपक: अब श्रीकृष्ण
की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं:
साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया।
गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य
तिमिरापहम्।।
भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते।।
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:।
उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि॥
13. नैवैद्य: अब श्रीकृष्ण
को भागे लगाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।।
14. ताम्बूल: अब पान के
पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर
ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्ण को समर्पित करें. साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।।
15.
दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्य के अनुसार
श्रीकृष्ण को दक्षिणा या भेंट दें और इस मंत्र का उच्चारण करें:
हिरण्य
गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त
पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ
श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।।
16.
आरती: आखिरी में घी के दीपक से श्रीकृष्ण
की आरती करें:
आरती युगलकिशोर की कीजै, राधे धन
न्यौछावर कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरिख
मेरो मन लोभा।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
गौरश्याम मुख निरखत रीझै, प्रभु को रुप
नयन भर पीजै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
कंचन थार कपूर की बाती . हरी आए निर्मल भई छाती।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
फूलन की सेज फूलन की माला . रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै,नटवर वेष देख
मन मोहै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
ओढे नील पीट पट सारी . कुंजबिहारी गिरिवर धारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी. आरती करत सकल ब्रजनारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी . परमानन्द स्वामी अविचल जोरी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
जन्माष्टमी के दिन इन बातों
का भी रखें ध्यान
इस
खास दिन भूलकर भी किसी प्रकार के पेड़-पौधों को हानि न पंहुचाए। यथासंभव ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करें। इस दिन राधा-कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान
के दर्शन ज़रूर करें। यदि संभव हो तो अपने घर में या फिर मंदिर में कीर्तन का आयोजन
करें। भगवान कृष्ण को मोरपंख बहुत पसंद था, इसलिए जन्माष्टमी की पूजा करते वक़्त पूजास्थल पर कृष्ण की मूर्ति या चित्र
के पास मोरपंख ज़रूर रखें। कृष्ण जी की मूर्ति के पास एक लकड़ी की बाँसुरी भी ज़रुर
रखनी चाहिए।
जन्माष्टमी
के दिन ज़रूर चढ़ाएं कृष्ण को यह भोग
जन्माष्टमी
के दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाया जाता है, लेकिन आम लोगों के लिए ऐसा कर
पाना बेहद मुश्किल होता है। बहुत सारे लोग यह सोचते हैं कि 56 भोग न लगाए जाने के कारण उनकी पूजा अधूरी रह गयी, लेकिन
ऐसा बिलकुल नहीं है। बालगोपाल को प्रसन्न करने के लिए यदि आप श्रद्धापूर्वक “माखन-मिश्री” का
भोग चढ़ाएं, तो वह बेहद प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर
मनोकामना पूरी करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बालगोपाल को मक्खन बेहद
पसंद था, जो वह अक्सर अपने मित्रों के साथ मिलकर चुराया करते
थे। इसी वजह से उनका नाम भी ‘माखन चोर’ पड़ गया था।
राशिनुसार
करें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा
जन्माष्टमी
के दिन सभी पूरी भक्ति भाव से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें
भोग चढ़ाते हैं,
लेकिन अगर आप इस दिन अपनी राशि के अनुसार पूजा करें, तो आपके सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। तो चलिए बताते हैं कि किस राशि के जातक
को क्या मंत्र बोलने चाहिए और भोग अर्पित करना चाहिए-
मेष
राशि
मेष राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन बालगोपाल का गंगाजल से अभिषेक कर दूध से बनी मिठाई, नारियल का लड्डू और माखन-मिश्री का भोग अर्पित करते हुए और तुलसी की माला
से इस मंत्र का जाप करें।
मंत्र – ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:”।
वृषभ
राशि
वृषभ राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक कर, छेने की मिठाई, पंजीरी और मखाने का भोग लगाते हुए
कमल गट्टे की माला से इस मंत्र का 11 बार जाप करें।
मंत्र -” श्रीराधाकृष्ण शरणम् मम”।
मिथुन राशि
मिथुन राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन भगवान बांकेबिहारी का दूध से अभिषेक कर, पंचमेवा, काजू की मिठाई और केले का भोग लगाते हुए स्फटिक की माला से इस मंत्र का 11
बार जाप करें।
मंत्र – ” श्रीराधायै स्वाहा“
कर्क राशि
कर्क राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का घी से अभिषेक कर, केसर या खोये की बर्फी और कच्चा नारियल का भोग लगाते हुए इस मंत्र का
5 बार जाप करें ।
मंत्र – “श्रीराधावल्लभाय नम:”
सिंह राशि
सिंह राशि
के जातक कृष्ण जन्मोत्सव के दिन मुरलीधर का गंगाजल में शहद मिलाकर अभिषेक करते हुए, लाल पेड़े, अनार और गुड़ का भोग अर्पित करें और इस
मंत्र का जाप करें।
मंत्र – “ॐ वैष्णवे नम:“।
कन्या राशि
कन्या राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन दूध में घी मिलाकर बालगोपाल का अभिषेक करें और उन्हें
मेवे,
दूध की मिठाई, अमरुद और नाशपति का भोग लगाकर
इस मंत्र का 11 बार जाप करें।
मंत्र – “श्री राधायै स्वाहा”।
तुला राशि
तुला राशि
के जातक कृष्ण जन्मोत्सव के दिन लड्डू गोपाल का दूध में शक्कर मिलाकर अभिषेक करें
और उन्हें खोये की बर्फी,
माखन-मिश्री, केले और कलाकंद का भोग अर्पित
करते हुए इस मंत्र का 11 बार जाप करें।
मंत्र – “र्ली कृष्ण र्ली”।
वृश्चिक
राशि
वृश्चिक
राशि के जातक जन्माष्टमी के दिन श्रीकृ्ष्ण को पंचामृत से अभिषेक करें और उन्हें
गुलाब जामुन,
गुड़ की मिठाई, नारियल का प्रसाद अर्पित करते
हुए इस मंत्र का 11 बार जाप करें।
मंत्र – “श्रीवृंदावनेश्वरी राधायै नम:”।
धनु राशि
धनु राशि
के जातक कृष्ण जन्मोत्सव के भगवान कृष्ण का दूध और शहद से अभिषेक करते हुए बेसन की
मिठाई और कोई पीला फल अर्पित करें और इस मंत्र का 5 बार जाप
करें।
मंत्र – “ॐ नमो नारायणाय” ।
मकर राशि
मकर राशि
के जातक जन्माष्टमी के दिन कृष्ण का गंगाजल से अभिषेक करें और उन्हें लाल पेड़े, गुलाब जामुन और अंगूर का भोग लगाते हुए इस मंत्र का जाप करें।
मंत्र – “ॐ र्ली गोपीजनवल्लभाय नम:”।
कुंभ राशि
कुंभ राशि
के जातक को जन्माष्टमी के दिन नंद गोपाल का पंचामृत से अभिषेक कर भूरे रंग की
मिठाई,
पंचमेवे और चीकू का भोग लगाते हुए 11 बार इस
मंत्र का जाप करें।
मंत्र – “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:”।
मीन
राशि
मीन राशि
के जातकों को जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल का पंचामृत से अभिषेक कर मेवे की मिठाई, इलायची व् नारियल अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
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