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खिलौने वाला

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खिलौने वाला
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सत्येन्द्र तिवारी लखनऊ

मैं नया खिलौने वाला,
कुछ खिलवाड़ बेचता हूं
नफरत के बदले में,
सच्चा प्यार बेंचता हूं।


मोटे मोटे सेठ सेठानी
हैं कुछ गेंद झुनझुना ढोल
मैना देखो बड़ी सयानी
पिंजड़े का तोता अनमोल
पंछी की आजादी का,अधिकार बेंचता हूं।


गैया,बछड़ा, कुत्ता,बिल्ली
मोर,कबूतर,मछली,तितली
सूत प्यार का काते जो
इसमें है इक वो तकली
ईर्षा द्वेष मिटाने का,त्यौहार बैंचता हूं।


फिरकनी लेती नहीं फिरौती
गुब्बारों में नहीं गुबार
गुड़िया गुस्सा करने वाली
गुड्डे की आंखों में प्यार
नाराजी पर प्रीति भारी,मनुहार बेंचता हूं।


कुछ कागज के ,लकड़ी के हैं
कुछ मिट्टी के बने सवार
वासुदेव जी कृष्ण लीये है
उफनी यमुना के मंझधार
तूफानों में नौका की,पतवार बेंचता हूं।


कई तरह के यहां मुखौटे
भालू,शेर,हिरण,व बंदर
जाने कितने आकर लौटे
रावण,राम,रहीम,सिकंदर
माटी की महिमा का,कुछ अंबार बेचता हूं।


सब का है अम्बर छाया को
दे प्रकाश चंदा दिनकर
विश्व बंधु की प्रीति हमारी
ये प्रथ्वी है सबका घर
संस्कृतियों भाषाओं की, झंकार बेचता हूं।


ये जीवन मृत्यु जिंदगी की
बहु मूल्य कहानी है
सब ऊंच नीच आपस वाली
मिल जुलकर दफनानी है
प्यार बढ़ाने को, राखी के तार बेचता हूं।
................................सत्येन्द्र तिवारी लखनऊ
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