संवाद सांध्य प्रहारों के
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वह मधुबन,
आनन्द प्रीति दर्शन
तलाशे मोर पंखिया मन।
वंशी के मधु स्वर
डूबे सांसों में
पनघट पथ पर,
मुग्ध चुभे कांटों में,
क्षण उलझे,
सुलझे महके चंदन।
नदिया के तट पर,
चंचल लहरों से
मुस्काते संवाद,
सांध्य प्रहारों के
मनहर दिन,
कल कल स्वर अभिनन्दन।
अधरों पर फूले,
पलाश फागुन के
त्रशित राग साधे,
बरखा सावन के
झूले में,
रिमझिम भीगे नन्दन।
शरद ऋतु मधुकुंज,
दूधिया उजियारे
रास रचाए रात,
भोर सेंधुर वारे
हर्षित हो ,
मन अम्बर हृदय सदन।
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सत्येन्द्र तिवारी लखनऊ
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