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श्रावण मास की दूसरी सोमवारी

आज श्रावण मास का दूसरा सोमवार है, भूतभावन भोलेनाथ जी का दिन! आज करते है उनकी आराधना 

पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा,
अवकाश प्राप्त अध्यापक, सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली
*भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥

भावार्थ:-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

भगवान् भोलेनाथ मनुष्य के समस्त विकारों को दूर करने वाले हैं, उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है, धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान् सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं, यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं।

लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि-विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्र! ओऊम् नम:शिवाय् का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव-पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।

सोमवार को शिव-आराधना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, अधिकांश शिव भक्त आज के दिन यानी सोमवार को शिवजी का अभिषेक करते हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे लोग है जो जानते हैं कि शिव का अभिषेक क्यों करते हैं? अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान कराना, रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना।

यह पवित्र-स्नान भगवान् मृत्युंजय शिवजी को कराया जाता है, अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है, अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं, रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है, शास्त्रों में भगवान् शिवजी को जलधाराप्रिय माना जाता है।

रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में किया गया है, रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख मिलता है, शिवजी और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, शिवजी को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि "रुतम्-दु:खम् द्रावयति नाशयतीतिरुद्र:" यानि की भोलेनाथ सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गये पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं, रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं, और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है, और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है, रूद्रहृदयोपनिषद में शिवजी के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्म को "रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:" अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।

हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित् अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है, साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं, किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के द्वारा कई प्रकार के लाभ बताये गये हैं, जैसे जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है, असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें और भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें, लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।

धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें, तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है, इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है, एवम पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।

रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है, ज्वर की शांति हेतु शीतल जल या गंगाजल से रुद्राभिषेक करें, सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है, तथा प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है, शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।

सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है, शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है, और पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें, गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

पुत्र की कामना वाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें, ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है, परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है।

विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है, तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है, इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है, किन्तु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है, रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है, वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।

पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है, वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था, तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था, जिससे वो त्रिलोक विजयी हो गया।

भष्मासुर ने शिवजी के लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आँसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया, अगर राक्षसों पर अगर शिवजी की कृपा हो सकती है तो हम मानवों पर क्यों नही हो सकती? आज सोमवार का पावन दिन शिव का प्रिय दिवस है।

आज घर में या किसी भी शिवालय में शिव अभिषेक या शिवजी की पूजा करें जो आप सभी के लिये अति फलदायी होगी,आज भगवान् भोलेनाथ के प्रिय और पावन दिवस सोमवार की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

जय महादेव!
ओऊम् नमः शिवाय्

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