कोरोना वायरस और कुपोषण से निपटने के ‘दोहरे दायित्व’
का निर्वहन कैसे कर रही हैं स्वास्थ्य प्रणालियां?
- डॉ. अनन्या अवस्थी
प्रधानमंत्री द्वारा 24 मार्च, 2020 को किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के आह्वान के साथ भारत इतने बड़े पैमाने पर सोशल डिस्टेंसिंग का अनुसरण करने वाले पह्ले देशो में से एक बन गया। लॉकडाउन का लक्ष्य जहां संक्रमण में विलम्ब करना और सामुदायिक संक्रमण पर काबू पाना था, वहीं त्वरित और समन्वित स्वास्थ्य प्रणाली की कार्रवाई समय की आवश्यकता थी । ऐसे मौके पर भारत ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने और मौजूदा स्वास्थ्य और पोषण सेवाएं प्रदान करना निरंतर जारी रखने के ‘दोहरे दायित्व ’ का निर्वहन करने के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य प्रणालियों और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के सामर्थ्य का उपयोग किया। इस संदर्भ में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से रणनीतिक और प्रशासनिक सहायता के साथ फ्रंटलाइन पर मौजूद 1.3 मिलियन1 आंगनवाड़ी कर्मियों के मजबूत बल की ओर से निभाई गई भूमिका इसका प्रबल उदाहरण है।
मंत्रालय
की ओर से उठाए गए शुरुआती कदमों में से पहला कदम नोवल कोरोना वायरस के फैलने और उस
पर काबू पाने के बारे में समुदायों को शिक्षित करना था। इस संबंध में, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने
घर-घर जाकर संक्रामक रोग के स्वरूप के बारे में जानकारी दी तथा सोशल डिस्टेंसिंग, हाथों की सफाई और साफ-सफाई
रखने की जरूरत पर बल दिया और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करने के लिए
प्रोत्साहित किया। हाथ धोने और मास्क पहनने जैसे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने
वाले प्रमुख आचरणों को सीखने की दिशा में यह विशेष तौर पर महत्वपूर्ण था। हालांकि
यह दलील दी जा सकती है कि मंत्रालय और विकास एजेंसियों द्वारा किए गए मास मीडिया
के उपयोग ने कोविड-19 के बारे में जनता में जागरूकता फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन महिलाओं द्वारा
फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मी, जो उनके स्थानीय समुदाय की सदस्य होती
है, के ‘देखे’ और ‘सुने’2 के आधार पर आचरण किए जाने
की संभावना ज्यादा होती है।
दूसरा, लॉकडाउन के कारण आंगनवाड़ी
केंद्रों और प्राथमिक विद्यालयों को बंद करना अनिवार्य हो गया और ऐसी अटकले लगाई
गईं कि राशन भत्तों तथा मां और बच्चों को मिलने वाले मध्यान्ह भोजन तक पहुंच
भी गंभीर रूप से प्रभावित होगी। इस स्थिति से निपटने के लिए महिला एंव बाल विकास
मंत्रायल ने घर की दहलीज तक राशन पहुंचाने की नवीन वैकल्पिक रणनीति टेक-होम
राशन (टीएचआर) विकसित की। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को
दी गई टीएचआर किट्स के प्रमुख संघटकों में चावल, गेहूं और दाल के पैकेट
शामिल हैं। कुछ राज्यों ने बच्चों तक
अंडों का वितरण करने सहित मध्यान्ह भोजन पहुंचाने का भी इंतजाम किया। सरकार के
सूत्रों के अनुसार,
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मंत्रालय ने पूरक
पोषण आहार उपलब्ध कराने के लिए 85 मिलियन से अधिक लाभार्थियों तक पहुंच बनाई। एक
अन्य उपयोगी नवाचार राज्य सरकारों, महिला समूहों, स्व-सहायता समूहों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा सामुदायिक
रसोई (कम्युनिटी किचन) की व्यवस्था किया जाना है।13 अप्रैल तक बिहार, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश और ओडिशा3 में
लगभग 10,000 सामुदायिक रसोई की व्यवस्था
की गई। जहां तक प्रवासी श्रमिकों का सवाल है, अकेले उत्तर प्रदेश में ही, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा स्थापित राज्यव्यापी सामुदायिक रसोई के
नेटवर्क के माध्यम से 60 मिलियन से अधिक भोजन के पैकेट वितरित किए गए हैं।
तीसरा, विशिष्ट तौर पर स्तनपान, पूरक आहार, टीकाकरण को बढ़ावा देने और गंभीर रूप से
कुपोषित बच्चों और रक्ताल्पता से पीड़ित माताओं को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने
के अपने मूलभूत दायित्व को नजरंदाज नहीं करते हुए, मंत्रालय ने ऑनलाइन कार्यशालाओं और
ओरिएंटेशन वेबिनार्स के माध्यम से 5,20,000 से अधिक क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं (आंगनवाड़ी कार्यकर्ता/
चाइल्डलाइन कार्यकर्ता / वूमन होम केयरगिवर्स/ कम्युनिटी व्यूअर्स) तक पहुंच
बनाई। लॉकडाउन प्रतिबंधों को देखते हुए, केंद्र में मंत्रालय और राज्यों में इसके संबंधित विभाग दिशानिर्देश और
परामर्श जारी करने, महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी
आवश्यकताओं तथा स्तनपान करने वाले बच्चों और बच्चों का दूध छुड़ाने के बारे
में विशिष्ट रूप से कोविड-19 के संदर्भ में
विशिष्ट संदेश देने के त्वरित और प्रभावी तरीके के तौर पर आईसीडीएस-सीएएस (कॉमन एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर) और व्हाट्सएप
का उपयोग करते आ रहे हैं।
चौथा, लॉकडाउन के आर्थिक प्रभावों और इसने आबादी की क्रय शक्ति को जिस तरह
प्रभावित किया है, उससे निपटना महत्वपूर्ण है । खाद्य कृषि
संगठन (एफएओ) ने अपने हाल के नीतिगत
परामर्श में, आसन्न वैश्विक मंदी को
स्वीकार करते हुए देशों को पहले से ही एक ऐसा
आर्थिक पैकेज तैयार करने के लिए प्रेरित किया, जो खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से
तैयार करने और भोजन प्रणालियों को मजबूत करने पर केंद्रित हो, ताकि वे संभावित खाद्य सुरक्षा
संकट का सामना करने में मददगार साबित हो सकें।4 इस संदर्भ में, भारत सरकार ने निम्न आय वाले परिवारों को
लक्षित करते हुए 22.5 बिलियन डॉलर या 1.7 ट्रिलियन रुपये के प्रोत्साहन पैकेज
की घोषणा की है।5 इसमें शामिल हैं: किसानों, ग्रामीण श्रमिकों, गरीब पेंशनभोगियों, निर्माण श्रमिकों, कम आय वाले विधुरों को प्रत्यक्ष लाभ
अंतरण (डीबीटी); तीन महीने के लिए प्रति
व्यक्ति 10 किलोग्राम चावल या गेहूं और 1 किलो दाल का वितरण; 5 मिलियन रुपये प्रति फ्रंट-लाइन वर्कर का
चिकित्सा बीमा कवर,
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार
गारंटी अधिनियम (नरेगा) के लिए मजदूरी में वृद्धि और स्व-सहायता समूहों और किसान
उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को संपार्श्विक मुक्त ऋण (या कोलैटरल फ्री लोन) शामिल है।
निर्णायक रूप से, कोविड-19 से निपटने की भारत की कार्रवाई ने एक मॉडल
स्थापित किया है कि सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने के लिए किस तरह
अपने विकास भागीदारों और निजी प्रतिभागियों के साथ एकजुट हो सकती हैं। महिला और
बाल विकास मंत्रालय वर्तमान में जनता के इस ओर ध्यान का लाभ उठाकर पोषण और आर्थिक
रूप से बेहद कमजोर प्रवासी श्रमिकों, शहरी गरीबों और छोटे और सीमांत किसानों की आबादी की कुपोषण
और खाद्य सुरक्षा से संबंधित जरूरतों को
पूरा करने के लिए बहु-मंत्रालयीय प्रयासों को आगे बढ़ा सकता है। सरकार ने आत्मनिर्भर
भारत का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो आत्मनिर्भरता और सतत विकास के लिए वैश्विक
आह्वान को प्रतिध्वनित करता है, ऐसे में वर्तमान लॉकडाउन का
उपयोग खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़कर "पोषण
की दृष्टि से सुरक्षित" भारत की नींव रखने के अवसर के रूप में किया जा
सकता है। इसमें कृषि और पोषण के बीच नीतिगत सम्मिलन, हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और फ्रंटलाइन
कार्यबल में अधिक निवेश, मजबूत खाद्य प्रणालियों, आहार विविधीकरण के लिए उपभोक्ता मांग में
वृद्धि और ऐसे आत्मनिर्भर समुदायों की ओर कदम बढ़ाना शामिल होना चाहिए जो स्थानीय स्तर
पर उपजाए गए खाद्य पदार्थों से अपनी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में समर्थ
हैं ।
डॉ. अनन्या अवस्थी ,सहायक निदेशक, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक
हेल्थ- इंडिया रिसर्च सेंटर
व्यक्त किए गए विचार लेखिका की निजी राय है।
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