भविष्य पुराण में महामद (मुहम्मद) – ‘एक पैशाच धर्म स्थापक!’

भविष्य पुराण में महामद (मुहम्मद) – ‘एक पैशाच धर्म स्थापक!’ 

-डॉ राकेश रंजन 

इस्लाम के प्रचारक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए अनेक प्रकार की युक्ति अपनाते रहते हैं, कभी सेकुलर बन कर ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की वकालत करने लगते हैं, कभी इस्लाम और हिन्दू धर्म में समानता साबित करने लगते हैं, परन्तु इनका मुलभुत उद्देश्य हिन्दुओं को दिग्भ्रमित कर के इस्लाम के पाश (चंगुल) में फँसाना ही होता है, क्योंकि अधिकांश हिन्दू इस्लाम से अनभिज्ञ और स्वधर्म ज्ञान अर्थाथ हिन्दू धर्म ज्ञान से उदासीन होते हैं, इस समय इस्लाम के मत प्रचारकों (तब्लीगी दावेदारों) में जाकिर नायक का नाम सबसे ऊपर है, जिसका सम्बन्ध "सलफ़ी जिहादी (السلفية الجهادية)" गिरोह से है, यह गिरोह जिहाद में आतंकवाद और काफिरों, मुशरिकों, मुनाफ़िकों की हत्या को उचित मानता है, जाकिर नायक का पूरा नाम "जाकिर अब्दुल करीम नायक" है, इसका जन्म 18 अक्टूबर सन 1965 में हुआ था, इसने इस्लाम के प्रति अति समर्पण के कारण चिकित्सकीय शिक्षा (मेडिकल स्टडीज) का परित्याग कर इस्लाम का प्रचार करना शुरू कर दिया, और दुबई (UAE) में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (Islamic Research Foundation ) नाम की एक संस्था बना रखी है, यही नहीं जाकिर "पीस टीवी (Peace TV ) नामका निजी चैनल भी चलाता है, जिसका मुख्यालय भी दुबई में है, जाकिर अक्सर अपने चैनल पर चर्चा के लिए दूसरे धर्म के लोगों को आमंत्रित करता है, फिर उन्हीं के धर्म ग्रन्थ से कुछ ऐसे अंश पेश करता है, जिनसे साबित हो सके कि उनके धर्मग्रन्थ में भी मुहम्मद, अल्लाह और रसूल का उल्लेख है और भोले भले लोग मुसलमान बन जाएँ। 

जाकिर नायक ने ऐसी ही एक चाल विगत इस वर्ष 20 फरवरी 2014 को चली, जिसमे हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए दावा किया कि हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ "भविष्य पुराण" में मुहम्मद का वर्णन है और उनको अवतार बताया गया है, इस दावे का सम्पूर्ण विवरण का विडिओ उपलब्ध है, और प्रबुद्ध पाठकों से अनुरोध है कि इसे अवश्य देखें - https://www.youtube.com/watch?v=-iKiyg46Iy4

इस प्रकार से जाकिर नायक ने बड़ी मक्कारी से हिन्दुओं को धोखा देने के लिए यह साबित करने का प्रयास किया है कि भविष्य पुराण में मुहम्मद का वर्णन एक अवतार के रूप में किया गया है, इसलिए हिन्दू मुहम्मद को एक अवतार मान कर सम्मान दें और उसके धर्म इस्लाम को स्वीकार कर लें, हो सकता है कि कुछ मूर्ख जाकिर नायक के जाल में फंस कर जाकिर के मिथ्या प्रलाप को सही मान बैठे हों, लेकिन भविष्य पुराण में मुहम्मद को "महामद" त्रिपुरासुर का पुनर्जन्म (अवतार), धर्म दूषक (Polluter of righteousness) और पिशाच धर्म (demoniac religion) का प्रवर्तक बताया गया है. यही नहीं भविष्य पुराण में इस्लाम को पिशाच धर्म और मुसलमानों को "लिंगोच्छेदी" यानि लिंग कटवाने वाला कहा गया है, जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रचलित हिन्दी में ‘कटुआ’ कहा जाता है, भविष्य पुराण के जिस भाग में मुहम्मद का वर्णन है, वह मूल संस्कृत और उसके हिंदी अनुवाद को आपकी सुविधा के निमित प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस से आम लोगों का यह भ्रम दूर हो जाए की भविष्य पुराण में मुहम्मद को एक अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है. 

भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड - ३, अध्याय ३, श्लोक संख्या 1 -31 में महामद (मुहम्मद) का विवरण एक पैशाच धर्म स्थापक के रूप में किया गया है, जिसे यहाँ उद्धित किया जा रहा है - 

श्री सूत उवाच- 
१. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्। राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः 
अर्थ - श्री सूत जी ने कहा – शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य (शासन) किया और अंत में दूसरे लोक में चले गए थे। 

२. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः। 
अर्थ - उस समय में इस भूमण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ। 

३. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः। 
अर्थ - मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान राजा ने दिग्विजय करने का निश्चय किया, उसके साथ सेना में दस सहस्त्र सैनिकों के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे। 

४. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्। 
अर्थ - तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार गए। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को विजित कर दिग्विजयी हुवे। 

५. तेषां प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः। 
अर्थ - उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी काल (समय) में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ। 

६. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्। 
अर्थ - महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया। 

७. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।
अर्थ – उन्होंने पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों का लेप लगा कर भक्तिपूर्वक भाव से अभ्याचना करके हर (महादेव) की स्तुति की। 

भोजराज उवाच-
८. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने। 
अर्थ - भोजराज ने कहा - ! मरुस्थल में निवास करने वाले हे गिरिजा नाथ, आप बहुत सी माया में प्रवत होने और त्रिपुरासुर के नाशक हैं। 

९. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।
मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ। 

सूत उवाच - 

१०. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।
अर्थ - सूत जी ने कहा - महादेव ने इस प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे - "हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।" 

११. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे । 
अर्थ - यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण (हिंसक) प्रदेश में आर्य (श्रेष्ठ) धर्म नहीं है। 

१२. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः । 
अर्थ - जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था (अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुरासुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है। 

१३. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।
अर्थ - वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज (मूलविहीन) हैं एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। वह महामद के नाम से प्रसिद्द है और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है। 

१४. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते । 
अर्थ - हे भूप (भोजराज)! आपको मानवता रहित धूर्त देश में आर्य मत के प्रसार हेतु यहाँ की प्रजा की शुद्धिकरण करनी चाहिए। (द्रष्टव्य हो की शुद्धिकरण का अर्थ मलेक्षों को वैदिक सनातन धर्म में दीक्षित करना होता है) 

१५. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ । 
अर्थ - यह सुनने पर राजा ने वापस स्वदेश में पुनरागमन का निश्चय किया और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर (तट पर) न आ सके इसके उपाय (प्रयोजन) का मनन करने लगे। 

भोजराज के अरब आगमन एवं मक्केश्वर महादेव के दर्शन और संवाद से भय प्रकम्पित महामद (माय एवं मद का विशारद), ने भूपति महाराज के समक्ष आकर अपने माया के प्रयोग का निश्चय किया और अपना दावा किया, जिसका वर्णन भविष्य पुराण में पाठक देख सकते हैं - 

१६. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः। 
अर्थ – माया एवं मद के विशारद ज्ञाता (महामद) ने राजा से झूठ कहा - हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे (महादेव) मेरे दास हो गए हैं। 

१७. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः । 
अर्थ - हे नृप (भोजराज)! इसलिए आज से आप मुझे ईश्वर के संभुज (बराबर योग्यता का) उच्छिष्ट (पूज्य) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त एवं भ्रमित हुये। 

१८. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्। 
अर्थ - राजा की अत्यंत क्रूर (दारुण) मलेच्छ धर्म के मत से अवगत हुये। राजा को यह (महामद के मिथ्या माया प्रलापों का) श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा। 

१९. माया ते निर्मिता धूर्त नृपम्हन हेतवे हनिष्यामि दुराचारं वाहीकं पुरुषाधमम्। 
अर्थ - हे धूर्त ! तूने नृप(राजधर्म) को मोहित करने हेतु माया रची है। दुष्ट आचार वाले पुरुषों में अधम वाहीक (अरब) मैं तेरा नाश कर दूंगा। 

२०. इत्युक्त्वा स द्विजः श्रीमान् नवार्ण जप तत्परः जप्त्वा दशसहस्रं च तद्दशांशं जुहाव सः। 
अर्थ - यह कह श्रीमान ब्राह्मण (कालिदास) ने तत्परता से निर्वाण (राजन को महामद) से मुक्त होने का जाप (बार बार आग्रह) करने लगे। और महामद के माया और मद से मुक्ति हेतु ‘नर्वाण मंत्र’ का दश सहस्त्र जप अनुष्ठान किया और उसके दशांश जप भी किया। 

२१. भस्म भूत्वा स मायावी म्लेच्छदेवत्वमागतः, भयभीतस्तु तच्छिष्या देशं वाहीकमाययुः। 
अर्थ - वह मायावी भस्म होकर मलेच्छ देवत्व अर्थात मृत्यु एवं कब्र को प्राप्त हुआ। उस समय भयभीत होकर उसके शिष्य वाहीक देश के विभिन्न भागों में भाग गए। 

२२. गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म मदहीनत्वमागतम्, स्थापितं तैश्च भूमध्ये तत्रोषुर्मदतत्पराः। 
अर्थ - उन्होंने अपने गुरु (महामद) के भाष्य (कुरान) को ग्रहण कर लिया और और वे महामदी हो गए। उन्होंने वाहिक देश के भू-मध्य में उस भाष्य सम्मत विधान को स्थापित कर दिया और वे वहां पर ही बस गए। 

२३. मदहीनं पुरं जातं तेषां तीर्थं समं स्मृतम्, रात्रौ स देवरूपश्च बहुमायाविशारदः। 
अर्थ - वह मदहीनपुर (मदीना) हो गया और उनके तीर्थ के सामान माना जाने लगा। उस बहुमाया के विद्वान (महामद) ने रात्रि में देवरूप धारण किया। 

२४. पैशाचं देहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत् आर्य्यधर्म्मो हि ते राजन् सर्ब धर्मोतमः स्मृतः । 
अर्थ - आत्मा रूप में महामद पैशाच देह को धारण कर भोजराज से आकर कहा। हे राजन (भोजराज)! मेरा यह अति उत्तम धर्म आर्य धर्मों के सम्मत है। 

२५. ईशाज्ञया करिष्यामि पैशाचं धर्मदारुणम् लिंगच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः। 
अर्थ - मैं अपने ईश (अल्लाह) की आज्ञा से अतिक्रूर (दारुण) पैशाच धर्म का प्रचार कर रहा हूँ। मेरे लोग लिंगछेदी (खतना किये हुए), शिखा (चोटी) रहित, दाढ़ी रखने वाले दूषक (विकृति उत्पन्न करने वाले) होंगे। 

२६. उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम। 
अर्थ – मेरे अनुवायी ऊंचे स्वर में अलापने वाले और सर्वभक्षी होंगे। हलाल (ईश्वर का नाम लेकर) किये बिना सभी पशु उनके खाने योग्य न होगा। 

२७. मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति तस्मात् मुसलवन्तो हि आतयो धर्मदूषकाः। 
अर्थ - मूसल से उनका संस्कार किया जायेगा और मूसलवान हो इन धर्म दूषकों की कई जातियां होंगी। 

२८. इति पैशाच धर्मश्च भविष्यति मयाकृतः इत्युक्त्वा प्रययौ देवः स राजा गेहमाययौ। 
अर्थ - इस प्रकार भविष्य में मेरे (मायावी महामद) द्वारा किया हुआ यह पैशाच धर्म होगा। यह कहकर वह वह (महामद) चला गया और राजा अपने स्थान पर वापस आ गया। 

२९. त्रिवर्णे स्थापिता वाणी सांस्कृती स्वर्गदायिनी, शूद्रेषु प्राकृती भाषा स्थापिता तेन धीमता। 
अर्थ – उसने (राजा ने) तीनों वर्णों में स्वर्ग प्रदान करने वाली संस्कृत भाषा को स्थापित किया और विस्तार किया। शुद्र वर्ण हेतु वहां प्राकृत भाषा का ज्ञान स्थापित/विस्तारित किया (ताकि शिक्षा और कौशल का आदान प्रदान आसान हो)। 

३०. पञ्चाशब्दकालं तु राज्यं कृत्वा दिवंगतः, स्थापिता तेन मर्यादा सर्वदेवोपमानिनी। 
अर्थ - राजा ने पचास वर्ष पर्यंत राज (शासन) करते हुए दिव्यगति (परलोक) प्राप्त की। तब सभी देवों की मानी जाने वाली मर्यादा स्थापित हुई। 

३१. आर्य्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यंविन्ध्यहिमालयोः आर्य्य वर्णाः स्थितास्तत्र विन्ध्यान्ते वर्णसंकराः। 

अर्थ - विन्ध्य और हिमाचल के मध्य में आर्यावर्त परम पुण्य भूमि है अर्थात सबसे उत्तम (पवित्र) भूमि है, आर्य (श्रेष्ठ) वर्ण यहाँ स्थित हुए और विन्ध्य के अंत में अन्य कई वर्ण इनमे मिश्रित हुए। 

विद्वान पाठकों उपरोक्त भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड ३, अध्याय ३ श्लोक संख्या १ – ३१ तक अर्थ सहित प्रस्तुत किया गया है. इनको पढने के बाद आप भविष्य पुराण का सन्दर्भ देने वाले जाकिर नायक से पूछें की मुहम्मद साहब वास्तव में कौन थे? 




‘अब यह शांत रहने का समय नहीं है|’ 

अनिल ठाकुर विद्रोही 



४६ वर्षीय विराथु जिन्होंने अपने देश से लाखों मुसलमानों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया और देश को मुस्लिम रहित बना दिया … जो विश्व में कोई दूसरा इन्सान अब तक नहीं कर पाया है …..वो विराथु …..न्यू मैसोइन बौद्ध मठ के मुखिया हैं| उनके वहॉं पर ६० शिष्य हैं और मठ में रहने वाले करीब २५०० भिक्षुओं पर उनका प्रभाव है| लेकिन जरा सोचियेगा कि हमारे कुछ हिन्दू संगठन है जिनके पास ना जाने कितने शिष्य और अनुयायी है ….बस बात इतनी सी है कि पुरे देश के बौद्धों ने खुल कर इस इंसान का समर्थन किया और सरकार ने भी…. 

और विराथु का एक ही संदेश है- ‘अब यह शांत रहने का समय नहीं है|’ 

यहाँ एक बात हुयी कि जैसे भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं किया जा रहा परन्तु वर्ष १९६१ में बर्मा (म्यॉंमार) को बौद्ध देश घोषित किया गया| और इसके बाद बौद्धों को या मठों को ये अधिकार प्राप्त हो गया कि देश की सत्ता के संरक्षण के लिए वो ऐसे गद्दारों को मार सकते हैं … 

आज तक पुरे विश्व में ऐसा कहीं नहीं हुआ कि उस देश में रह रहे जिहादियों याने मुस्लिमों के खिलाफ जनता हथियार ले कर उठ खडी हुयी हो या संगठित हो कर जवाब दिया हो पर बर्मा में ऐसे धार्मिक गुरुओं की वजह से संभव हो पाया … 

म्यॉंमार के एक बौद्ध भिक्षु ने शांति की परिभाषा बदल दी है| अब वहॉं राखिने बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच सीधा मुकाबला है| दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

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1 टिप्पणियाँ

  1. Bilkul sahi ek pishach or uska pishach dharm kabhi Sanatan Dharma ke Barabar Nahi ho sakta to jo log ye kehte hai ki ishwar allah ek hi naam to maha murkha hai bhagwan ke barabar ek pishach kabhi nahi ho sakta

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