मेरे मन की बात
डॉ अजित कुमार पाठक
एक कहानी हमने कहीं पढ़ी थी | यूरोप के किसी बड़े विश्वविद्यालय में दो जापानी विद्यार्थी भी पढ़ते थे |दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान का पतन हो चुका था कई देशों के आर्थिक प्रतिबंध उस पर थे |पढ़ाई के दौरान जब क्लास चल रही होती है तो यह दोनों छात्र बारी-बारी से लिखते थे क्योंकि एक लिखता था तो दूसरा पेंसिल छिल कर तैयार करता था क्योंकि जापानी पेंसिल उस समय तक अच्छी गुणवत्ता की नहीं होती थी, इसलिए पेंसिल बार-बार टूट जाती थी |यह देखकर दूसरे छात्रों ने उन दोनों को कहा क्यों नहीं तुम लोग अच्छी पेंसिल (उस समय इंग्लैंड या अमेरिका की बनी पेंसिल अच्छी क्वालिटी की मानी जाती थी )ले लेते हो बहुत महंगी भी तो नहीं है| यह सुनकर उन दोनों जापानी छात्रों के आंखों में आंसू आ गए कहा जब हमारी चीज को हम ही नहीं खरीदेंगे तो भला दूसरा भला क्यों खरीदेगा |भले ही आज हम अच्छे पेंसिल नहीं बना पा रहे हैं लेकिन एक दिन ऐसा आएगा कि हमारी बनाई पेंसिल का पूरी दुनिया में उपयोग होगा |इस कहानी से हमें कई चीजें है मिलती हैं ,पहला जबतक हम अपने स्वदेशी चीजों पर गर्व नही करेंगे तभी सारी दुनिया हम पर गर्व नहीं करेगी |चाहे स्वदेशी सामान हो या अपनी स्वदेशी भाषा (मातृभाषा)हो, जब हम उस पर गर्व करेंगे तभी हम उन ऊंचाइयों को पा पाएंगे
कहानी तो बहुत छोटी है पर काफी प्रेरक है,
एक और कहानी भी जापान की ही है| कोई विदेशी नागरिक एक बार टोकियो के हवाईअड्डे पर उतरा ,तो उसे पता लगा उसका सामान कही गुम हो गया है|विदेश का मामला,कोई परिचित नहीं,क्या करे क्या नहीं करे ,इसी उहापोह में वो एक बेंच पर चिंतित हो कर बैठा था |एक विदेशी को चिंतित देख कर एक जापानी व्यक्ति ने इसका कारण उससे पूछा तो उस व्यक्ति ने अपनी सारी परेशानी उस व्यक्ति को बता दिया| जापानी व्यक्ति ने यह भी पूछा कि उसके बैग में क्या क्या सामान और किस क्वालिटी के थे| सारा कुछ जानकर उस जापानी ने उसे अपने साथ निकट के बाज़ार में ले गया और सारा सामान उसी क्वालिटी का खरीद दिया| लौटे वक्त जापानी ने उस व्यक्ति से एक ही अनुरोध किया की इस घटना की चर्चा लौटने पर वो अपने देश में इस घटना की कोई चर्चा नहीं करे ,नहीं तो हमारे देश (जापान)की प्रतिष्ठा पर आघात लगेगा|
दोनों छोटी छोटी कहानियाँ हमें बहुत कुछ बताती है | राष्ट्र,राष्ट्रीयता,और
राष्ट्रप्रेम में हम उनलोगों के मुकाबले कहाँ हैं ,यह हमें खुद निर्धारित करना पड़ेगा| ‘सारे जहाँ से अच्छा ये हिन्दुस्ता हमारा’ सिर्फ गाने से हम सारे जहाँ से अच्छे नहीं हो जायेंगे
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