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गाँव में

 गाँव में



झेलता हूँ गाँव को।
खेलता हूँ गाँव को।
खेलना सरल नहीं।
गाँव है तरल नहीं।

उलझनों की बाढ़ है।
संकट बड़ा ही गाढ़ है।
मित्र शत्रु बन रहे। 
षड़्यंत्र में मगन रहे।

रहा न गाँव गाँव है।
स्नेहहीन छाँव है।
चलता रहा मैं धूप में।
जलता रहा मैं धूप में।

छाले पड़े हैं पाँव में।
रहना कठिन है गाँव में।
रहना कठिन है गाँव में।
       -मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
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