गाँव में
खेलता हूँ गाँव को।
खेलना सरल नहीं।
गाँव है तरल नहीं।
उलझनों की बाढ़ है।
संकट बड़ा ही गाढ़ है।
मित्र शत्रु बन रहे।
षड़्यंत्र में मगन रहे।
रहा न गाँव गाँव है।
स्नेहहीन छाँव है।
चलता रहा मैं धूप में।
जलता रहा मैं धूप में।
छाले पड़े हैं पाँव में।
रहना कठिन है गाँव में।
रहना कठिन है गाँव में।
-मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com