Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

‘काशी-मथुरा’ मंदिरों जैसे प्राचीन धार्मिक स्थलों की मुक्ति के लिए केंद्र सरकार ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ कानून निरस्त करे !

हिन्दू विधिज्ञ परिषद के 8 वें वर्धापनदिन के निमित्त से हिन्दू अधिवक्ताओं की मांग !

‘काशी-मथुरा’ मंदिरों जैसे प्राचीन धार्मिक स्थलों की मुक्ति के लिए केंद्र सरकार ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ कानून निरस्त करे !

वर्ष 1991 में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के चलते काशीमथुरा और अन्य धार्मिक स्थलों के विषय में हिन्दुओं की न्यायपूर्ण मांग को कुचलने के लिए तत्कालीन नरसिंह राव सरकार द्वारा ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ कानून बनाया । इससे श्रीरामजन्मभूमि के अतिरिक्त 15 अगस्त 1947 के दिन धार्मिक स्थलों की जो स्थिति हैवही मानी जाएगी । इस कानून के अनुसार 1947 के पूर्व हिन्दुओं के मंदिरों की तोडफोड कर वहां मस्जिद अथवा चर्च बनाए गए होंगेतो वहां पुनमंदिर नहीं बनाया जाएगा । उसके लिए कोई भी अभियोगअपील इत्यादि न्यायालय में नहीं कर की जा सकतीपरंतु दूसरी ओर मुसलमानों के ‘वक्फ बोर्ड’को कोई भी संपत्ति ‘वक्फ संपत्ति’ घोषित करने का अधिकार दिया गया । यह प्रकार संविधान के समानता के तत्त्व के विरोध में और धार्मिक भेदभाव करनेवाला है । देश में बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी समान न्याय और धार्मिक अधिकार मिलना ही चाहिए । इसके लिए केंद्र सरकार काशीमथुरा मंदिरों समान अन्य प्राचीन धार्मिक स्थलों की मुक्ति के लिए ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ (Places of Worship (special provisions) Act 1991) कानून निरस्त करेऐसी मांग ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के प्रवक्ता और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने की । वे राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन के अंतर्गत ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद’की वीं  वर्षगांठ के  उपलक्ष्य में ‘ऑनलाइन’ आयोजित किए गए ‘चर्चा हिन्दू राष्ट्र की’ इस विशेष चर्चासत्र में बोल रहे थे । इसमें हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकरसर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुभाष झा और हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने सहभाग लिया । इस चर्चासत्र का सीधा प्रसारण HinduAdhiveshan इस फेसबुक पेज पर और हिन्दू जनजागृति समिति के YouTube चैनल पर किया गया ।

इस चर्चासत्र में बोलते हुए अधिवक्ता सुभाष झा बोले, ‘शबरीमला मंदिर के विषय में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अमेरिका के न्यायालयों में दिए गए न्याय का संदर्भ लियापरंतु वहां की सांस्कृतिक जीवनपद्धति व आचार-विचारहमसे बहुत भिन्न हैं । न्यायालय वेदउपनिषदमहाभारत इत्यादि का आधार नहीं लेतायही मूलभूत चूक है । वेद और उपनिषदविश्‍व के सबसे बडे ज्ञानभंडार होने से आर्य चाणक्य समान कितने ही महान विचारकउनके आधार पर न्याय देते हैं । इस अवसर पर अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर बोले, ‘‘देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है । जिन्हें इस्लामी देश चाहिए थावे पाकिस्तान चले गए । इसलिए शेष राष्ट्रहिन्दू  राष्ट्र ही है । यहां बहुसंख्यक हिन्दुओं की मांगों पर विचार करना ही चाहिएपरंतु वैसा दिखाई नहीं दे रहाफिर यह कैसा लोकतंत्र सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि ‘खलिस्तान की मांग होते समय ‘खलिस्तान जिंदाबाद’ कहना अपराध नहीं ।’फिर हिन्दू राष्ट्र की मांग करना अपराध कैसे होगा इस अवसर पर श्रीरमेश शिंदे बोले, ‘‘कहते तो हैं कि संविधान श्रेष्ठ व सर्वोच्च है । फिर उसकी शपथ लेकर अनेक नेताअधिकारी और पुलिस भ्रष्टाचार करते हैं । ऐसे में संविधान का क्या महत्त्व रह जाता है इसके विपरीत भगवद्गीता की शपथ लेते समय ऐसी भावना होती है कि ‘मैं जो भी कर्म करूंगाउसका फल मुझे भोगना ही होगा ।’ सर्वोच्च न्यायालय में रोहिंग्या और आतंकवादियों की सुनवाई मध्यरात्रि में न्यायालय खोलकर की जाती हैपरंतु हिन्दुओं के लिए वैसा नहीं किया जाता यदि संविधान सभी के लिए हैतब बहुसंख्य हिन्दुओं की सुननी ही चाहिए । हिन्दुओं को न्याय मिलना ही चाहिए ।

दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ