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21 जून 2020 के सूर्यग्रहण की विशेषता एवं 12 राशियों पर ग्रहण का प्रभाव

सूर्यग्रहण की विशेषता एवं 12 राशियों पर ग्रहण का प्रभाव

पंडित धनंजय मिश्र ,पटना

आषाढ़ कृष्ण अमावस्या दिन रविवार तदनुसार 21 जून 2020 को भारतवर्ष में खण्डग्रास सूर्य ग्रहण (चूड़ामणियोग) युक्त लगने वाला है।

यह ग्रहण बहुत ज्यादा खास इसलिये है कि इस प्रकार का ग्रहण दशकों बाद लगता है और जैसा ग्रहण इस बार लग रहा है वैसा ग्रहण पुनः इस दशक में भारतवर्ष में दिखाई नहीं पड़ेगा, इसलिए यह ग्रहण बहुत ज्यादा ऐतिहासिक है । अगला सूर्यग्रहण जो भारत में दृश्य होगा वह 2031 को होगा। 

भारत मे कंकण सूर्यग्रहण मुख्य रूप से उत्तरवर्ती इलाकों जैसे राजस्थान, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश और उत्तराखंड इत्यादि स्थानों में दिखलाई पड़ेगा।वहीं भारतवर्ष के दक्षिणी क्षेत्र में आंशिक सूर्यग्रहण ही दिखलाई पड़ेगा। 

21 जून को उत्तर भारत के केवल चार राज्यों- राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड के हिस्से ही इस वलयाकार सूर्य-ग्रहण को देख सकेंगे | जबकि आंशिक सूर्यग्रहण पूरे भारतवर्ष में दिखाई पडेगा | भारत में वलयाकार सूर्यग्रहण की शुरुआत राजस्थान के पश्चिमी छोर पर स्थित घरसाना नामक स्थान से होगी तथा वलयाकार सूर्यग्रहण की समाप्ति जोशीमठ नामक स्थान से होगी | इनके मध्य स्थित स्थानों यथा राजस्थान के अनूपगढ़, श्रीविजयनगर, सूरतगढ़, एलेनाबाद आदि स्थानों, हरियाणा के सिरसा, रतिया, जाखल, पिहोवा, कुरुक्षेत्र, लाडवा, यमुनानगर आदि स्थानों, उत्तर प्रदेश के बेहट नामक स्थान तथा उत्तराखण्ड के देहरादून, चम्बा, टिहरी, अगस्त्यमुनि, चमोली, गोपेश्वर, पीपलकोटी, तपोवन आदि स्थानों से ही वलयाकार सूर्यग्रहण देखा जा सकेग।

यह कंकण सूर्यग्रहण विश्व में मध्य-अफ्रीका, कांगो, इथियोपिया, यमन, सऊदी अरबिया, ओमान, पाकिस्तान, चीन, ताइवान, दक्षिण-प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर और भारतवर्ष के संपूर्ण क्षेत्र में दिखलाई पड़ेगा। खण्डसूर्य ग्रहण के रूप में इसका प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री सीमा से सूर्योदय के समय होगा | यहाँ खण्डग्रहण का मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | मध्य अफ्रीका से फिलीपिन्स द्वीप समूह के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श तथा मोक्ष पापुआ न्यूगिनि तथा प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में दृश्य होगा | कंकणाकृति सूर्यग्रहण का प्रारम्भ अफ्रीका के कांगो क्षेत्र में सूर्योदय के समय होगा जो कि मध्य अफ्रीका, अरब क्षेत्र, उत्तरी भारत तथा एशिया आदि देशों में दिखाई देगा | प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में सूर्यास्त के समय कंकणाकृति सूर्यग्रहण का मोक्ष होगा |

ग्रहण का मान

भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्र में यह सूर्य ग्रहण 69% से 98.97% तक दिखलाई पड़ेगा।
दक्षिणी क्षेत्रों में सूर्य ग्रहण 23% से 50.25% के आसपास दिखलाई पड़ेगा । दिल्ली में 93.77%, मुम्बई में 62.10%, कलकत्ता में 65.52% और चेन्नई में 34.23% ग्रहण ग्रास नजर आएगा |इस ग्रहण की वलयाकारिता अवधि बहुत कम है | उत्तर भारत के अमलोहा (हरियाणा) तथा तलवार खुर्द (हरियाणा) में इस सूर्य ग्रहण की कुण्डलाकार या वलयाकार आकृति सबसे लम्बे समय तक यानि अधिकतम 33 सेकंड तक दिखलाई देगी

पटना में ग्रहण समय
पटना में आप खण्ड सूर्यग्रहण ही देख पाएँगे
पटना में ग्रहण का समय निम्नलिखित है
सूर्य-ग्रहण - 21 जून 2020
ग्रहण प्रारम्भ : 10:36 AM
ग्रहण मध्य : 12:25 AM
ग्रहण समाप्ति: 14:09 AM
पटना के लिए सूतक प्रारम्भ: 20 जून रात्रि 10:35p.m से |

ग्रहण की विशेषता

·        इस दशक का अन्तिम कंकण सूर्यग्रहण (रिंग ऑफ फायर) है। 

·         सूर्य ग्रहण का सम्पूर्ण मान 5 घंटे 58 मिनट होगा। 

·         विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य का 23% से 99% भाग चन्द्रच्छाया द्वारा ग्रसित नजर आएगा, चन्द्रमा अपने शीघ्रोच्च स्थान के नजदीक होगा।

·         यह ग्रहण मिथुन राशि के मृगशिरा नक्षत्र में 4 ग्रहों की युति के साथ सूर्यग्रहण की घटना बहुत ऐतिहासिक है

·         इस वर्ष का यह ग्रहण चूड़ामणि योग (रविवार को सूर्यग्रहण होने के कारण) वाला होने से धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा महत्त्व वाला है |

·         यह सूर्यग्रहण पुरे भारत में दिखाई देगा !

·        इस दौरान जप -तप और दान का विशेष महत्व होगा !

·        धर्मशास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में ग्रहण से 9 घण्टे पहले और सूर्यग्रहण में ग्रहण से 12 घण्टे पहले ग्रहण सूतक लगता है। 

इसमें शिशु, अतिवृद्ध और गम्भीर रोगी को छोड़कर अन्य लोगों के लिए भोजन और मल-मूत्र त्याग वर्जित है। 

इस ग्रहण का 12 राशियों पर प्रभाव

1.        मेष- श्री: - लाभ ।

2.        वृष- क्षति: - विघ्न ।

3.        मिथुन- घात:- दुर्घटना । 

4.        कर्क- हानि ।

5.        सिंह- लाभ: - शोभावृद्धि ।

6.        कन्या- सुख

7.        तुला- माननाश - चिन्ता ।

8.        वृश्चिक- मृत्युतुल्य कष्ट 

9.        धनु- स्त्री पीड़ा 

10.      मकर- सौख्य

11.      कुम्भ - चिंता:

12.      मीन- व्यथा: 

 मिथुन राशि में सूर्यग्रहण लग रहा है 
अतः मिथुन राशि वालों को सबसे ज्यादा सचेत रहने की जरुरत है |
उसमें भी अगर आपका जन्म मृगशिरा नक्षत्र में हुआ है तब तो ये बहुत विनाशकारी है, अतः शान्ति उपाय करने और सावधान रहने की विशेष आवश्यकता है

जिन राशियों के लिए अनिष्ट फल कहा गया है, उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए ।

1.              चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। 

2.              श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। 

3.              देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए।

4.              ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए। 

5.              ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

6.              ग्रहण के समय एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थो मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।

7.              ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए।

8.              ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें।उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें। 

9.              ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।

10.          ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।

11.          ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

12.          ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं।

13.          ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। 

14.          ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)

15.          गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए।उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।

16.          ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र-

पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते ।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥
अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो ।
कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ॥
का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।

17.          भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना होता है। 

18.          ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। 

19.          ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।

20.          ग्रहण के समय ईष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।

21.          अपने राशि पर पड़ने वाले ग्रहण के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ग्रहण के दौरान अपने राशिस्वामि का मन्त्र या सूर्य नारायण अथवा चन्द्रदेव के मन्त्र का जप करना बहुत प्रभावी होगा |

22.          रविवार के दिन सूर्यसंक्रान्ति और सूर्य अथवा चन्द्रग्रहण में रविवार होने पर उस दिन पुत्रवान गृहस्थ को पारण एवं उपवास नहीं करना चाहिए।

23.          सूर्य पूराण में आया है की रविवार को सूर्य ग्रहण होने पर चूड़ामणि योग होता है | चूड़ामणि योग में होने वाला ग्रहण बहुत महत्त्व का है | इस ग्रहण में किए गए स्नानदानादि का फल अन्य ग्रहणों की अपेक्षा करोडगुना ज्यादा मिलता है
कहा गया है- 

।।अन्यवारे यदा भनोरिन्दोर्वा ग्रहणं भवेत् |
तत्फलं कोटिगुणितं ज्ञेयं चूडामणौ ग्रहे || - सूर्य-पुराण
 
ज्योतिषियों, खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के अलावा सामान्य जनमानस में भी ग्रहण को देखने की विशेष जिज्ञासा रहती है। खासकर छात्रों में यह उत्कण्ठा विशेषरूप से देखने को मिलती है।

24.          ग्रहण को देखने के लिए पर्याप्त नेत्र सुरक्षा का ध्यान रखें साथ ही वैज्ञानिकों के द्वारा निर्देशित सूर्य ग्रहण चश्मा का ही प्रयोग करें ।

25.          ग्रहण को कभी भी खुली आंखों से ना देखें ।

26.           टकटकी लगाकर ग्रहण न देखें, पलकें झपकातें रहें।

27.           खुले मैदान में साफ आसमान के नीचे खड़े होकर आप ग्रहण देख सकते हैं।

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