अगर कहीं है स्वर्ग तो!
बडा हीं रहस्यमय प्रश्न है स्वर्ग है या नहीं?यदि है तो किधर है,कहाँ है और कैसा है?बहुत तो ये कहते हैं की ये सब ब्राह्मणों की कल्पना है।ऐसा कुछ नहीं होता है।सब कल्पना है।एक स्वप्निल कल्पना है।एक तो यहां तक लिखा कहा..'यदि कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर!पर यह ललकार भी बेकार गया।बेकार ईसलिए गया की स्वर्ग को जो धरातल पर लाने की प्रकृया है वह वे नहीं बता पाये।सिर्फ समस्या खडी कर गये।समाधान का कोई प्रावधान नहीं दिये।प्रगतिशीलता की सबसे बडी बिफलता है समाधान हीन समस्या गीनाना।
स्वर्ग कोई कल्पना नहीं है एक यथार्थ है।यह एक उत्कृष्ट मानसिक सोंच नहीं है बल्कि स्वभाविक जीवनवृत्ति है।सब कहते हैं स्वर्ग कहाँ है तो बता दूँ..स्वर्ग उपर है।बहुत उपर।आग्या से भी उपर।वहां तक जाना सबके बस की बात नहीं है।जो उपर तक जायेगा वही तो पायेगा।जीसके पास नीची दृष्टि होगी उन्हे क्या खाक स्वर्ग दिखेगा।जो नीचत्व को त्याग उचत्व पर आरूढ है वही स्वर्ग का एकमात्र अधिकारी है।
हमारे मनिषियों ने बताया है स्वर्ग आँखों मे होता है ।पाँव धरातल पर होते है।जमीन पर पाँव पडते है।स्वप्न का हीं साकार रूप है स्वर्ग।जहां आत्मानंद को परमानंद मिलता है।पृथ्वी के काँटे पाँव का दिल चीर देता है।एक दुनिया डूब जाती है।आँखों से आँसू बहते हैं।जीवन नारकीय हो जाता है।
स्वर्ग धरती से उपर है ये निर्विवाद है।जब जमीन पर उसे उतारने की बात है तो स्वभाविक है की वह उपर है।जो उपर है उसी की चर्चा होती है।नीचता सर्बथा त्याज्य है।उचत्व सदासर्बदा वरेण्य है।स्तुत्य है।
"आसमां से उतारा गया।
ओ आसमां से उतारा गया!!
जीस को जीत ना सके बाहुबल से-
कि ओ नजरों से मारा गया!!"
बस मेरा स्वर्ग यही है।जो आसमां से उतारा गया है।आपका स्वर्ग आपके पास है।हमारे समाज में यह एक प्रचलन है की अपने पूर्वजोंको स्वर्गीय संबोधित करते है।।
----:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"