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लॉकडॉउन के बाद

लॉकडॉउन के बाद
डॉ अजित कुमार पाठक,

आज से लॉक डाउन का तीसरा चरण प्रारंभ हो गया है ,इस समय अब पूरे देश के सामने यक्ष प्रश्न है कि भारत में लॉकडाउन खत्म होने के बाद क्या होगा? यहां की अर्थव्यवस्था का क्या होगा? बेरोजगारी कम होगी या नहीं ?लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी या नहीं ?लोगों का जीवन स्तर कैसा होगा? इत्यादि इत्यादि आज विश्व के करीब करीब 205 देश वैश्विक कोरोना महामारी से पूरी तरह कराह रहा है अमेरिका, जापान ,जैसे आर्थिक साधन संपन्न देश की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है | ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था पर चिंतन करना स्वाभाविक है| इस महामारी से बचने के लिए सरकार ने देश की सारी वाणिज्यक कार्य को रोक दिया है, रेल बंद, हवाई जहाज बंद, बस बंद ,यानी सभी कुछ बंद | देश भर की सभी दुकानें बंद ,मॉल, सिनेमा हॉल, कल कारखाने ,सभी बंद है | लेकिन सोचने वाली बात है कि यह स्थिति कितने दिन रहेगी ?
किसी भी देश की समृद्ध अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे उत्पादन एवं मांग की हमेशा जरूरत होती है , और सभी उत्पादन के लिए श्रम शक्ति की जरूरत होती है | हमारे यहां 94 फ़ीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र से है | कैरोना महामारी फैलने के बाद देश के सभी औद्योगिक क्षेत्र के मजदूर अपने अपने घर की ओर चले गए हैं, और निकट भविष्य में वह फिर लौटे भी, इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती है | यह संक्रमण ऐसे समय में फैला की मजदूर घर भी समय पर नहीं पहुंच सके ताकि गांव में पक गए गेहूं ज्वार इत्यादि फसलों की कटनी कर सकें | मजदूरों की कमी एवं डर के कारण लाखों हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलों को समय पर कटाई भी नहीं हो सकी और वह करीब करीब- करीब बर्बाद हो गए | लॉक डाउन के कारण बाहर से भी मजदूर नहीं मंगवाए जा सके कच्ची फसलें भी धुलाई के कारण बाजार नहीं पहुंच पाए और वह भी बर्बाद हो गया | देश की कृषि अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए इतना ही काफी था | अगर इस समय सरकारी एजेंसियां काम करती ,यथा फसलों को खरीदकर नजदीक के शहरों में पहुंचाकर वितरण कराती तो उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के लिए फायदे का सौदा होता | इससे गांव में पैसा आ जाता और उत्पादन और मांग दोनों में गति आ जाती | अर्थशास्त्रियों के अनुसार पिछले साल हमारा कुल उत्पादन लगभग 200 लाख करोड़ का था जो इस साल घटकर एक सौ बीस लाख करोड़ हो सकता है | ऐसी हालत में हमारे देश में निश्चित रूप से कर संग्रह कम होगा | लॉक डाउन की स्थिति में कुछ अनिवार्य वस्तुओं का उत्पादन ही होगा | हमें अधिक कर ऐसी वस्तुओं की बिक्री से मिलते हैं जो वस्तु गैर अनिवार्य होते हैं | उत्पादन और उपभोग के बड़े अंतर के कारण जी.एस.टी, कारपोरेट टैक्स भी काफी कम संग्रह हो पाएगा | इससे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी | ऐसी हालत में सरकार को कुछ ऐसा काम करना पड़ेगा जिससे देश में भय का माहौल कम हो | सरकार को अपनी नियमित खर्च में बड़ी कटौती करनी पड़ेगी | किसी भी गैर जरूरी प्रोजेक्ट यथा मेट्रो रेल परियोजना , उत्खनन परियोजना जैसी परियोजनाओं में निवेश कम से कम एक-दो साल के लिए रोकना होगा | सरकार को जनता के लिए अति आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और उसके वितरण पर ही विशेष ध्यान देना पड़ेगा | आज के समय में लोग निवेश पर ध्यान नहीं देंगे क्योंकि पूंजी बाजार की स्थिति भी अच्छी नहीं है | जमीन मकान की भी खरीद बिक्री ना के बराबर हो रही है | यह दोनों क्षेत्र भी लॉक डॉन के बाद नहीं सुधरेंगे | लॉकडॉउन के बाद भीषण मंदी आने की संभावना दिख रही है | भारत सहित विश्व की सभी देश मंदी की चपेट में आएंगे इसे देखते हुए भारत सरकार ने एक प्रभावकारी मंत्र “ब्याज दर” में कटौती का चला दिया है ,लेकिन हमारा मानना है कि यह मंत्र उतना प्रभावकारी नहीं होगा क्योंकि यह सर्वविदित है कि व्यापारी बाजार से तभी कर्ज़ उठाता है कि जब उसे यह लगता है कि जब उत्पादित माल को अच्छी कीमत में बेचकर लाभ कमाया जा सकता है और उससे ऋण की राशि का भुगतान करने के बाद भी उसे मुनाफा होगा| इसके लिए लॉकडॉउन की स्थिति में निवेशकों को मांग और उपभोक्ताओं के भविष्य की आय पर विश्वास हो लेकिन अभी बाजार में इस संबंध में अनिश्चितता का माहौल है | बेरोजगारी ,भुखमरी ,बीमारी के कारण पूरे देश पेसोपेश की स्थिति में है | लेकिन इस स्थिति में निपटने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए ? मेरा मानना है कि ऐसी स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकारी सार्वजनिक व्यय के द्वारा अर्थव्यवस्था में मांग पैदा की जा सकती है सार्वजनिक व्यय का मतलब है कि सरकार की योजनाओं में पैसे का विनियोग | अभी शहर से जो लोग गांव में आ रहे हैं वह लोग पुर्णतः बेरोजगार होंगे ,बेरोजगारी की स्थिति में गांव में अशांति का माहौल पैदा हो जाएगा | जवाहर रोजगार योजना, नरेगा, प्रधानमंत्री सड़क योजना जैसे कार्यों में सरकारी निवेश से इन मजदूरों के बेरोजगारी में कमी आएगी | एक उपाय यह भी है कि शहर से लौटे उन प्रशिक्षित मजदूरों को उनके प्रशिक्षित व्यवसाय में छोटी पूंजी ऋण के रूप में देकर से उन्हीं मजदूरों से छोटे मोटे उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया जाए और उनके द्वारा उत्पादित माल का विपणन का कार्य गांव की सहकारी समितियों के द्वारा कराया जाए | जब हम भारतीय अर्थव्यवस्था का अध्ययन करते हैं तो हमें पता लगता कि यह संकट उन क्षेत्रों में अधिक है जहां विश्व की अर्थव्यवस्था से हमारा ज्यादा गहरा संबंध है, उदाहरणार्थ पर्यटन उद्योग ,निर्यात संबंधी उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग ,वस्त्र उद्योग, इत्यादि इत्यादि | जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में कार के ऑटो पार्ट्स अधिकतर चीन से आते हैं, फर्नीचर, खिलौने एवं कई ग्रॉसरी के सामान भी चीन से आते हैं | बिजली के उपकरण, मोबाइल, कंप्यूटर के पार्ट्स, इत्यादि के क्षेत्र में भी हम लोग एक तरह से चीन पर अवलंबित हो गए हैं , चीन से आयातित सामान सस्ता होने के साथ-साथ आकर्षक होता है, इस कारण भारत के उत्पादक चीन के सामानों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर पाते हैं | इस संकट के दौर में घरेलू उद्योग पर हमें निर्भर रहना पड़ेगा हमें एक संकल्प लेना पड़ेगा कि अपनी नीमकौड़ी भली, पर की भली न दाख भारत में निर्मित वस्तुओं पर हमें निर्भरता बढ़ानी पड़ेगी हमें अपनी पुरानी गांधी मॉडल को अपनाना पड़ेगा | सरकार को अपने गैर उत्पादक खर्च को खत्म करने होंगे या उसे कम करने होंगे | सरकार को सब्सिडी की पॉलिसी को कुछ समय के लिए छोड़ना पड़ेगा, स्वास्थ्य , शिक्षा, परिवहन एवं संचार के क्षेत्र को और अधिक गतिमान बढ़ाना पड़ेगा | यह सब तभी संभव है जब सरकार और जनता दोनों इस संबंध में अपना अपना नजरिया बदलेंगे | इस संकट की स्थिति को अस्थाई नहीं माना जा सकता | हमारे मत के अनुसार जनवरी 2020 तक जो हमारी अर्थव्यवस्था थी | वहां तक भी हमें आने में लगभग 10 साल लग जाएंगे | हम सबों को मिल-बैठकर ही इस समस्या का निदान निकालना पड़ेगा | कर की दरों को बढ़ाने या करोना टैक्स लगा कर इस समस्या का निदान नहीं किया जा सकता है | सरकारी कर्मचारियों के वेतन, डी.ए को कम करने से भी कुछ नहीं होगा | M.P, M.L,A, M.L.C और ऐसे लोग जो एक साथ कई जगहों से वेतन या पेंशन प्राप्त कर रहें है ,उन्हें रोकना पड़ेगा | पुरस्कार, और अलंकरण समारोहों को अभी स्थगित करना पड़ेगा | अभी सरकारी फंडों के बन्दर बाँट को भी रोकना होगा| रोजगार बढ़ाने के लिए ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित करना पड़ेगा | देश को इस आने वाले आर्थिक संकट से बचने के लिए कुछ न कुछ कड़े कदम तो हमें उठाने पड़ेगे ही |
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