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बिहार का स्वर्णिम काल आया है

बिहार का स्वर्णिम काल आया है
डॉ अजित कुमार पाठक,
विश्व व्यापी करोना संकट ने जहाँ पूरी दुनियां में आर्थिक और सामाजिक संकट बढाया है ,वहीँ आदमी को अपनी गलतियों को समझने का भी मौका दिया है . प्राकृतिक दोहन एवं उससे छेड़छाड़ का अनुपम उदाहण है यह करोना संकट. हम जितने प्रकृति से दूर होते गए बीमारियों से उतने ही नजदीक होते गए. इस संकट के दौर में सबसे बड़ा संकट दुसरे राज्यों में जा कर काम करने वालों श्रमिको को हुआ जिनका कोई स्थाई आधार नहीं था .इन श्रमिको को मैं प्रवासी मजदूर नहीं कह सकता क्योंकि भारत का कोई भी नागरिक अपने ही देश में प्रवासी नहीं हो सकता .खैर छोड़िये इन बातों को.हम जानते हैं की हमारे राज्य से सबसे अधिक मजदूर देश के अन्य प्रदेशो में काम करने जाते है और कितने ही राज्यों की अर्थ व्यबस्था का आधार ही यहाँ के मजदूर हैं .इन निपुण मजदूरों के कारण पंजाब ,हरियाणा,दिल्ली,महाराष्ट्र,आँध्रप्रदेश,तेलंगाना इत्यादि राज्यों का आर्थिक विकाश का दर काफी बढ़ा रहता है. लेकिन आज के दौर में हमारे राज्य के अधिकांश मजदूर वापस आ गए हैं.वे मजदूर बाहर काम करने मजबूरी में जाते हैं क्योकि उन्हें यहाँ उनकी योग्यता या दक्षता के अनुसार काम नहीं मिलता है.वैसे भी जबसे बिहार के उद्योग धंधे ख़त्म हो गए तभी से यहाँ के मजदूर अन्य राज्यों में जाने लगे .एक समय था जब यहाँ दर्जनों चीनी मिल थे,जूट मिल,पेपर मिल थे, मोर्टन की टॉफी छपरा के मढौरा में बनती थी ,विश्वविख्यात रेशम के कपडे भागलपुर में बनते थे ,सीमेंट के उत्पादन में सबसे आगे थे .लेकिन यह करोना काल हमारे बिहार के लिए एक सुखद अनुभूती भी ले कर आया है. अभी हमारी सरकार को इन मौको से फायदा उठाना चाहिए.अगर हम अपनी इस श्रम शक्ती का उपयोग राज्य के जी.डी.पी को बढ़ाने में करेंगे तो हम पुरानी स्थिति में पुनः आ सकते है.आकड़ो के अनुसार २२ हजार सूक्ष्म एवं लघु प्रक्षेत्र की इकाइयाँ अभी बिहार में है.लेकिन ये सिर्फ कागजी आंकडे हैं.अभी भी कई चीनी मिलें बंद पड़ी है, अदूरदर्शी सरकारी नीति के कारण पी.पी.मॉडल में भी इसको नहीं खोला जा सकता है ,सरकार की लापरवाही के कारण बैंक भी लोन देने से कतराते हैं,बिजली,सड़क की कमोवेश स्थिति संतोषप्रद नहीं है, सुरक्षा की स्थिति भी दयनीय है,पर हमें समस्याओ से ज्यादा समाधान पर विचार करना चाहिए.बिहार के हर जिलों की भौगोलिक, सामाजिक, और जलवायु की स्थिति अलग अलग है.हमें उसी के अनुसार औद्योगिक कार्य योजना बनाना चाहिए .मुजफ्फरपुर एवं पूर्वी चम्पारण के चकिया में लहठी,सहरसा के मेहसीमें सीप बटन उद्योग जैसे तैसे चल रहें हैं, सुपौलऔर मधेपुरा में बांश आधारित उद्य्योग ,अररिया, कटिहार में चावल उद्योग,दरभंगा एवं मधुवनी में मखाना एवं मधुबनी चित्रकला,गया में अगरवत्ती एवं तिलकुट उद्योग भागलपुर में रेशम उद्योग,बांका में हैंडलूम कपड़ो को बीनने का उद्योग आदि कई उद्य्योग है जो बिहार में औद्योगिक क्रांति लाने में सहायक होगें. अभी इस बात की जरुरत है की उन श्रमशक्ति का पूर्ण उपयोग हो. नहींतो वो श्रमिक पुनः पुराने जगहों पर लौटने को मजबूर हो जायेंगे. अगर सही प्रयास हो तो ,सरकार और उन श्रमिकों की दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते बिहार फिर स्वर्णिम बिहार बन पायेगा.लेकिन उद्योगपतियों ,सरकार ,और वित्तीय संस्थाओ को इस पुनीत कार्य में इमानदारी से पहल करनी पड़ेगी.
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