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कोरोना से होकर मजबूर चले!

कोरोना से होकर मजबूर चले!

जगव्यापी कोरोना संकट से होकर मजबूर चले ।
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।
मुँह पर मास्क लगाये घर को पैदल कोसों दूर चले
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।

टूट गया वह आज आसरा छूट गई रोजी-रोटी ।
बिलख रही भूखी नन्हीं सन्तानें सब छोटी-छोटी ।।
कैसी काली रात काल के पंजे कितने क्रूर चले ।
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।

न कुछ जमा न पूंजी संचय रोज कमाना खाना था ।
मेहनत मजदूरी के बल पर ही दिन-रात बिताना था ।।
सूखी हड्डी धँसे पेट चेहरे होते बेनूर चले ।
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।

टूट गई आशा उम्मीदें बिखर गये सारे सपने ।
सबदिन साथ निभाने वाले दूर हुये सारे अपने ।।
विवस आँख से आज देखते दुनिया की दस्तूर चले ।
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।

कहाँ जाएँ अब कहाँ रहें अब क्या खायें अब क्या पीयें ।
छीन लिया चितचैन विधाता समझ नहीं कैसे जीयें !
आसमान से गिरकर जैसे होकर चकनाचूर चले ।
बेकारी के आलम में अब रोते सब मजदूर चले ।।

चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425 
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