
पाञ्चजन्य शंख का रहस्य
पंडित कृष्ण दत्त शर्मा
महाभारत में कृष्ण के पास पाञ्चजन्य, अर्जुन के पास
देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास
सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक था। सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी।
शंखों की शक्ति और चमत्कारों का वर्णन
महाभारत और पुराणों में मिलता है। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है।
हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं। इनके 3 प्रमुख प्रकार
हैं- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इन शंखों के कई उप प्रकार होते हैं।
पाञ्चजन्य का रहस्य : पाञ्चजन्य बहुत ही
दुर्लभ शंख है। समुद्र मंथन के दौरान इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र
मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था। अपने गुरु के पुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठा ले गया।
उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख
में दैत्य सोया है। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें
पता चला कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। वहां
यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते
यमलोक हिलने लगा।

भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी
ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। कहते हैं कि महाभारत युद्ध में अपनी ध्वनि से
पांडव सेना में उत्साह का संचार करने वाले इस शंख की ध्वनि से संपूर्ण युद्ध भूमि
में शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य
शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना
में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी।
इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें 5 अंगुलियों की
आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक
नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है।
यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
वर्तमान में कहां है पाञ्चजन्य शंख?
कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस
शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में कहा जाता रहा है। माना जाता है कि
यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के
आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ीं कई बेशकीमती वस्तुएं थीं।
20 अप्रैल 2013 को इस शंख के
चोरी होने की बात कही जाती है।
मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने
महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि
कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है।
करीब 26 साल पहले कमरे की मरम्मत के दौरान यह अलमारी
पता चली थी जिसमें अनेक बेशकीमती वस्तुएं मिली थीं। उनमें श्रीकृष्ण भगवान का
पाञ्चजन्य शंख भी था। इसकी बनावट विशेष प्रकार की थी। इसमें फूंक एक तरफ से मारी
जाती थी लेकिन आवाज 5 जगहों से निकलती थी। शंख को ग्रामीणों ने बजाने की बहुत कोशिश की किंतु कोई भी
कामयाब नहीं हो सका।
“घर में शंख हो तो ध्यान रखें इन 8 बातों
का"
हिंदू धर्म में शंख को घर में रखना बहुत शुभ
माना गया है। इससे सुख-समृद्धि बढ़ती है। घर में रखे शंख के विषय में ये 8 बातें ध्यान
रखने पर उससे प्राप्त होने वाली शुभता में वृद्धि होती है। जानते हैं शंख के बारे
में कुछ महत्वपूर्ण बातें-
1- शंख को पानी में नहीं रखना चाहिए।
2- शंख को धरती पर भी नहीं रखना चाहिए। शंख हमेशा
एक साफ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।
3- शंख के अंदर जल भरकर नहीं रखना चाहिए। पूजन
के समय शंख में जल भरकर रखा जा सकता है। आरती के बाद इस जल का छिड़काव करने से
शारीरिक व मानसिक विकारों से मुक्ति मिलता है। साथ ही, जीवन में
सौभाग्य का उदय होने लगता है।
4- शंख को पूजा के स्थान पर रखते समय खुला हुआ
भाग ऊपर की ओर होना चाहिए।
5- शंख को भगवान विष्णु, लक्ष्मी या
बालगोपाल की मूर्ति के दाहिनी ओर रखा जाना चाहिए।
6- शंख को माता लक्ष्मी का रूप माना गया है।
इसलिए शंख को पूूजन स्थान में उसी आदर के साथ पूजा जाना चाहिए। जिस आदर के साथ
भगवान का पूजन किया जाता है।
7- आसानी से धन की प्राप्ति के लिए शंख को 108 चावल के दानों
के साथ लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में स्थापित करें।
8- घर में शंख
ध्वनि का गुंजन सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने वाला माना गया है। पूजन के समय रोजाना
घर में शंख बजाना चाहिए।