लेकिन हम थे जहाँ, वहीं हैं
-मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द
'देखे बड़े बड़े आंदोलन,
लेकिन हम थे जहाँ, वहीं हैं।
अन्नदाता बस कहने को हैं,
मौन सभी को सहने को हैं।
आ जाते बहलाने को वे,
घावों को सहलाने को वे।
देखा बहुतों को है अबतक,
देखेंगे ना जाने कबतक!
लेते नाम हैं गांधी का पर,
सच्चे गांधी नहीं कहीं हैं-
देखे बड़े बड़े आंदोलन,
लेकिन हम थे जहाँ, वहीं हैं।
लगता, चुनाव आनेवाला है,
जो आता,खानेवाला है।
बहुत कठिन है इनमें चुनना,
हमको तो केवल है सुनना।
कहते, तेरी बात करेंगे,
सच पूछो तो,घात करेंगे।
सच्चे सेवक इस भारत में,
सच मानो,अब नहीं कहीं हैं-
देखे बड़े बड़े आंदोलन,
लेकिन हम थे जहाँ, वहीं हैं।
बड़ी बड़ी बातें करते हैं,
लेकिन सत्ता पे मरते हैं।
ताकत अपनी उन्हें दिखाएँ,
अपनी चिन्ता उन्हें सुनाएँ।
साफ-साफ कहें हम उनको,
मूर्ख बनाओ मत अब हमको।
भ्रष्टों को अब खोज निकालो,
देश विदेश वे जहाँ कहीं हैं-
देखे बड़े बड़े आंदोलन,
लेकिन हम थे जहाँ, वहीं हैं।