अक्षय तृतीया और परशुराम जयन्ती पर विशेष:
प्रभाकर चौबे.राष्ट्रीयअध्यक्ष ,सनातनधर्म उत्थान समिति.
अक्षय तृतीया का काफी महत्व है .इसदिन किया हुआ दान ,जप भजन अक्षय फल प्रदान करता है.परशुराम जयन्ती होने के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है.भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं.जो भगवान राम ने किया वह भगवान परशुराम ने भी किया .अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना.दोनों ने गौ,वेद,ब्राह्मण और धर्म को स्थापित किया.यह ब्रह्म की अवतार लीला सिर्फ तत्वद्रष्टा ही समझ सकते हैं.परशुराम जी ने राम का अवतरण जान उन्हें अपनी शक्तियाँ सौंप दी एवं महेन्द्र पर्वत पर तप करने चले गये.आज भी वे तपस्या रत हैं.भक्तों की रक्षा करते हैं.उनमें मारक क्षमता बेजोड़ है.वे साक्षात भुकंप हैं.उनके फरसे का ध्यान करने मात्र से धर्मनिष्ठ निर्भय हो जाते हैं क्यों कि उनका फरसा अभी भी समाधि मे नहीं है.सुपात्र परशुराम भक्त इसका अनुभव कर सकते हैं.देव शक्तियों ,वेद ,सनातनियों एवं सनातनधर्म,
ब्राह्मण, गौ,साधु,संतों की हत्या या असम्मान उन्हें मंजूर नहीं यहाँ तक की धरतीऔर प्रकृति भी बर्दाश्त नहीं करती.सहस्त्रबाहु जैसा दतात्रेय का उपासक सिद्ध अजेय भी जब अधर्म के कारण नष्ट हो गया तो आम जन को किस बात का अहंकार है.हाईड्रोजन बम ,टैंक,और अकूत सम्पत्तिशाली आज मानवता की दुहाई दे रहे हैं.एक मरे हुए विषाणु ने विश्व को तबाह कर दिया है.हमारे ब्रह्मर्षि ,मुनिजन ,अवतार सत्ताऐं जो उपदेश दे कर गई हैं तथा हमारे पूर्वजों ने जिन विचारों मे निष्ठा रखी है .हमें उससे पृथक अपनी राजनीति ,सुविधा स्वार्थ के अनुरूप मनगढ़ंत धर्म की व्याख्या नहीं करनी चाहिए.कलियुग मे पन्थों और पृथक धार्मिक विचारधारा का स्थापन अधर्म है.जिसका फल महाविनाशकारी होगा.कारण कलियुग मे कोई पूर्ण नहीं जो भी विचार स्थापित किये जाऐंगे वे कलियुग प्रभाव से युक्त होंगे.आप देख सकते हैं.मूर्तिपूजकों को मारना काफिर को मारना ,यौन संबंधित बर्जनाओं का पालन नहीं करना ,गौ की हत्या उसका माँस भक्षण ,ब्राह्मण ,साधु,संत की पूजा की जगह निऩ्दा और हत्या यह कलियुग का प्रभाव है.अन्ध भौतिकवाद तथा अन्धकार की ओर विकास मानकर बढ़ना भी कलि का प्रभाव है.यह मनोरोग है.आप उड़कर कहाँ जाऐंगे .मंगल पर उसके बाद ? आप क्या पायेंगे? यह विचार करें.आप का जीवन लक्ष्य क्या है क्या होना चाहिए?खुद निर्णय करें.जिस व्यवस्था मे ब्राह्मण का ब्रह्मणत्व ,क्षत्रिय का क्षात्र तेज ,वैश्य का सत्य व्यवसाय,शुद्र मे श्रद्धा भक्ति सेवा भावना न हो उसकी सुरक्षा का उपाय न हो ,साधु,संतों ,संन्यासियों,कर्मकाण्डियों को दरदर भटकना पड़े एवं समझौते करने पड़ें तो वह धर्महीन राष्ट्र है.सभी धर्मनिष्ठों को तप करना होगा .तभी राष्ट्र का प्रदुषित माहौल सुधरेगा.राजसत्ता क्या सुधारेगी.हम सुधरेंगे युग सुधरेगा.युग की रक्षा आप करेंगे हम करेंगे.इसलिए कलियुग के प्रभाव से जो सभी जातियों मे जो संस्कारहीनता आई है .उसका समाधान परष्पर के विद्वेष मे नहीं है अपितु संस्कारोन्नयन के द्वारा एक वैचारिक क्रान्ति करने मे है.इसे हम सांस्कृतिक क्रान्ति कहते हैं.मानवता से बढकर कोई सुरक्षा नहीं .परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं.सत्य से बढकर उपास्य मार्ग नहीं.
प्रभाकर चौबे एक साधारण मे भी अति साधारण मनुष्य यह क्यों कह रहा है.उसने इसका अनुभव कर लिया है.इसके बिना जगत का कल्याण नहीं.कलियुग अपना प्रभाव डालने की कोशिश करेगा लेकिन श्री राम जय राम जय जय राम के जप विष्फोट का सामना नहीं कर सकता .मैं उसकी ताकत जानता हूँ.सभी लोग शंख फूंक कर भगवान परशुराम की जयजयकार करें.भगवान परशुराम महाराज की जय जय.जय श्री राम.सत्य सनातन धर्म की जय .