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शायद

जब मैं बी. ए का छात्र था तो मैंने एक कविता लिखी थी ।जिसका संशोधन मेरे पूज्य नानाजी हिंदी,संस्कृत,अंग्रेज़ी तथा बंगला के उद्भट विद्वान आचार्य सत्यव्रत शर्मा सुजन ने संशोधन किया था ।कविता अतुकान्त है जिसे मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
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शायद

जयप्रकाश मिश्र
मैं बाजार जा रहा था
देखा रास्ते में एक भिखारी को देखकर
कुत्ता भूंक रहा था ।
शायद इसलिए कि भिखारी की हालत
कुत्तें से भी बदतर थी ।
मैं कुछ सोच ही रहा था कि
एक औरत किसी मर्द को इशारा कर रही थी ।
शायद औरत को पेट की भूख थी न कि वासना की ।
मेरी मानसिक उलझन बढ़ती जा रही थी
देखा एक कुत्ता बिल्ली पर झपटा
शायद बलवान निर्बल को निगल जायगा
मेरे मन में तूफान उठने लगा था
कि देखा एक कवि अपनी किताबें
तुला पर तौल कर बेच रहा था ।
लोगों का दिल पत्थर हो गया है
भावना सूख कर रेत हो गई है
शैतान इन्सान पर हावी हो गया है
लगता है कोई इन्कलाब होने वाला है
काल के गर्भ में क्रांति कसमसा रही है ।
जयप्रकाश मिश्र