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कोरोना का रोना!

कोरोना का रोना!
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बंद करो-
ये कोरोना का रोना!!
ये तो तय हीं था-
एक दिन होना!!
अरे ओ आततायी-
मुझे सीखा क्यों रहे हो,
आज हाथ-मुंह धोना!!
खा गये मांस पी गये खुन,
कतरा-कतरा चाट गये भ्रुण!
कभी दया भी नहीं आई तुम्हे,
चित्कार सुन करूण!!
जब खुद पर सामत आई-
अपना शीर धुना !!
दीन,हीन,लाचारों पर-
करते रहे प्रहार!
मारते रहे हो बेवजह,
बम,गोली और तलवार!
भूल से भी स्वीकारा नहीं-
ऐसा नहीं चाहिए होना!!
छोडकर प्यार और दुलार-
करते रहे हो नरसंहार!
आज वही पीडा हो गई है-
हरेक के उपर सवार!
और अब नहीं चाहते हो-
अपना प्राण खोना!!
हरेक की पीडा का जब खुद में,
आत्मसात हो जाय!
अभी से भी सोंच लो बस-
बिगडी भली बात हो जाय!!
सीख लो अभी से भी तुम-
गले लगाकर छुना!!
कुछ नहीं कर पायेगी ये-
विश्व विनाशक कोरोना!!
      बेकार है कोरोना का रोना,
      हाथ-पैर धोना!!
      जब कभी जरुरी हो छुना-
      लगाकर गले प्रेम से छुना!!
        ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र"अणु"

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