संस्कार से सभ्यता तक: भारत की शिक्षा और संस्कृति
सत्येन्द्र कुमार पाठक
मानव समाज की प्रगति केवल गगनचुंबी इमारतों या तकनीकी आविष्कारों से नहीं मापी जाती, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करती है कि उस समाज के नागरिक कितने संस्कारवान, अनुशासित और नैतिक हैं। भारतीय मनीषियों ने इस तथ्य को सहस्राब्दियों पूर्व ही पहचान लिया था और संस्कार, संस्कृति और सभ्यता को एक दूसरे से अभिन्न रूप से जोड़कर एक ऐसी जीवन प्रणाली विकसित की जो कालातीत है। आज, जब भौतिकवाद और त्वरित प्रगति की होड़ में हमारी नैतिक और सांस्कृतिक जड़ें कमजोर पड़ रही हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली—विशेषकर गुरुकुल—के सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में स्थापित करने का प्रयास है। त्रिवेणी का सिद्धांत में संस्कार, संस्कृति और सभ्यता अवधारणाएँ एक-दूसरे को पोषित कर तत्व अर्थ कार्य और पहचान शिक्षा में संबंध बनाती है।
संस्कार आंतरिक शुद्धि और परिष्करण की प्रक्रिया ( 16 संस्कार)। व्यक्ति को विवेकशील, नैतिक और कर्तव्यनिष्ठ बनाना। बीज: चरित्र निर्माण का आधार।संस्कृति समाज के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने का सामूहिक तरीका। समाज की पहचान, मूल्य और जीवनशैली का सार। पौधा: संस्कारों को पोषित करने वाली जीवनशैली। सभ्यता संस्कृति का भौतिक और बाहरी प्रकटीकरण; उन्नत समाज की उपलब्धियाँ (तकनीक, वास्तुकला)। समाज की भौतिक प्रगति और विकास को दर्शाना। वृक्ष/फल: संस्कृति का परिणाम है। संस्कार व्यक्ति के अंदर नैतिकता का बीज बोते हैं, जिससे संस्कृति रूपी पौधा पल्लवित होता है। यही संस्कृति, अंततः सभ्यता रूपी विशाल वृक्ष के रूप में फलती-फूलती है। संस्कृति हमें बताती है कि 'हम क्या हैं' (आंतरिक स्थिति), जबकि सभ्यता बताती है कि 'हमारे पास क्या है' (बाहरी उपलब्धि) है।
संरक्षण और संवर्धन का माध्यम शिक्षा में संस्कार , संस्कृति और सभ्यता को संरक्षित और संवर्धित करता है। शिक्षा केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाना है।1. संस्कारों का पोषण शिक्षा का प्राथमिक कार्य उत्तम आचरण और व्यवहार सिखाना है। पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, मानवीय मूल्यों और सामाजिक दायित्वों को शामिल करके छात्रों में विनम्रता, आदर, और सत्यनिष्ठा जैसे संस्कार विकसित किए जाते हैं। सेवा परियोजनाओं और सामुदायिक जुड़ाव के माध्यम से ये नैतिक मूल्य केवल सैद्धांतिक न रहकर, व्यावहारिक रूप से जीवन का हिस्सा बनते हैं। संस्कृति का संचार में शिक्षा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, ज्ञान परंपराओं, कलाओं और भाषाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाती है। साहित्य, कला-एकीकृत शिक्षा और भारतीय भाषाओं के अध्ययन के माध्यम से छात्र अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। यह जुड़ाव उन्हें वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास के साथ अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम बनाता है। 3. सभ्यता का मार्गदर्शन:शिक्षा वैज्ञानिक ज्ञान, तकनीकी कौशल और आलोचनात्मक चिंतन प्रदान करती है, जो सभ्यता की भौतिक प्रगति के लिए आवश्यक है। साथ ही, यह नैतिक और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी शिक्षा में एथिक्स, सामाजिक जिम्मेदारी और पर्यावरण चेतना को भी शामिल करती है।
प्राचीन आदर्शों की आधुनिक अभिव्यक्ति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा को भारतीय मूल्यों के साथ पुनर्संयोजित करने का सबसे बड़ा प्रयास है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मातृभाषा/ क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा पर जोर सांस्कृतिक संरक्षण का एक महत्वपूर्ण कदम है। मातृभाषा में शिक्षा से छात्र संज्ञानात्मक रूप से बेहतर सीखते हैं, जटिल विचारों को तेजी से समझते हैं, और भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं। मातृभाषा सीधे तौर पर उनकी संस्कृति और संस्कारों को उनके मन में आत्मसात करने में सहायक होता है। भारतीय ज्ञान प्रणाली नीति में भारतीय कला, विज्ञान, गणित और दर्शन के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रावधान है। यह छात्रों को अपनी समृद्ध सभ्यता से परिचित कराता है और उनमें राष्ट्रीय गौरव का भाव भरता है।समग्र प्रगति कार्ड राष्ट्रीय शिक्षा नीति में चरित्र निर्माण, सहकर्मी संबंध और सामाजिक जागरूकता को शैक्षणिक अंकों के समान महत्व दिया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य एक चरित्रवान व्यक्ति (संस्कार) तैयार करना है, न कि केवल डिग्रीधारी है। गुरुकुल प्रणाली, प्राचीन भारतीय शिक्षा का आधार, इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि संस्कार और संस्कृति किस प्रकार शिक्षा का मूल केंद्र थे।सादा जीवन और अनुशासन: गुरु के सान्निध्य में रहकर शिष्य विनम्रता, श्रम का मूल्य और अनुशासन सीखते थे। यज्ञोपवीत संस्कार से शिक्षा आरंभ होती थी, जो जीवन के महत्वपूर्ण चरणों को संस्कारों द्वारा चिह्नित करती थी। गुरुकुलों में केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि 64 कलाओं (वास्तुकला, चिकित्सा, युद्ध कौशल) की शिक्षा भी दी जाती थी, जो भारतीय सभ्यता की उन्नति का कारण बनी। शिक्षा निःशुल्क थी, जिसके बदले शिष्य गुरु की सेवा करते थे। इससे उनमें सेवा भाव और आदर का संस्कार गहरे उतरता था। संस्कार, संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण और संवर्धन आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। NEP 2020 के माध्यम से हम गुरुकुल के उस मूलभूत सिद्धांत की ओर लौट रहे हैं जहाँ शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसे व्यक्ति का निर्माण करना था जो नैतिक रूप से सशक्त (संस्कार), सांस्कृतिक रूप से समृद्ध (संस्कृति) और ज्ञान-विज्ञान में निपुण (सभ्यता) हो। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को केवल यह न सिखाएँ कि 'हमारे पास क्या है' (सभ्यता), बल्कि यह भी सिखाएँ कि 'हम क्या हैं' (संस्कृति) और 'हमें कैसा होना चाहिए' (संस्कार)। जब ये तीनों तत्व शिक्षा के माध्यम से संतुलित होंगे, तभी लोक जीवन में सच्चा सुकून और राष्ट्रीय प्रगति सुनिश्चित हो सकेगी ।
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