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"दृष्टि से आगे का देखना"

"दृष्टि से आगे का देखना"

 पंकज शर्मा 
नेत्र हमें बाह्य संसार का परिचय देते हैं, पर सत्य का साक्षात्कार मन कराता है। वही दृश्य किसी के लिए साधारण होता है, तो किसी के लिए साधना बन जाता है। वस्तुएँ नहीं बदलतीं, बदलती है उन्हें देखने की आंतरिक तैयारी। जहाँ मन निर्मल है, वहाँ प्रत्येक दृश्य अर्थवान, चेतना-संपन्न और प्रेरक हो उठता है।

मन की भावना ही दृष्टि का संस्कार है। करुणा से भरा मन पीड़ा में भी मानवीय उजास खोज लेता है, और अहंकारग्रस्त मन प्रकाश में भी अंधकार रच लेता है। इसलिए जीवन की दिशा नेत्र नहीं, मन तय करता है—जो भीतर है, वही बाहर दिखता है; यही आत्मदर्शन का मौन सत्य है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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