रिश्ते में खोंट
अरुण दिव्यांशविकास का राजनीत या ,
राजनीत का विकास है ।
सामने है मूल दरवाजा तो ,
पीछे बना ये निकास है ।।
समक्ष दिखता है फायदा ,
पीछे से हो जाता ह्रास है ।
दीप बुझाकर करते खेल ,
तम ही करता पापनाश है ।।
बातों से मिलते हैं सपने ,
बातों से मिलते आस हैं ।
कारण कुछ मिल जाता ,
फल मिल पाता निराश है ।।
बुझे दीप कीट झटके से ,
प्रकाश कहाॅं एहसास है ।
दीप समझे कीट अपना ,
कीट करता दीप उदास है ।।
काॅंटे बहुत उलझे हैं होते ,
दोनों दरवाजों के बीच में ।
सहमे कदम धीमे निकले ,
अन्यथा पड़ते हैं कीच में ।।
रिश्ते में कुछ ज्योति जलाते ,
कुछ रिश्ते में रखते हैं खोंट ।
मजबूरी में कुछ रिश्ते चलाते ,
रिश्तों के कुछ गला देते घोंट ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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