नया फ्रेंड रिक्वेस्ट
रचना ---डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"एक दिन यूँ ही फ्रेंड रिक्वेस्ट आई,
नाम लिखा था— दिब्या शर्मा भाई।
प्रोफ़ाइल देखी, दोस्त न कोई,
मन में कौतूहल, शंका भी होई।
सोचा— नया होगा, क्या पता,
फेसबुक ने ही भेजी होगी कथा।
एक्सेप्ट किया, धन्यवाद आया,
हर पोस्ट पे लाइक–कमेंट छाया।
मैं खुश हुआ इस नए कद्रदान से,
मन गद्गद हो उठा सम्मान से।
फिर निजी जीवन की बात चली,
पसंद–नापसंद की पूछताछ चली।
रोमांटिक शायरी भी आने लगी,
दिल में कहीं हलचल सी जगाने लगी।
एक दिन पूछा— “पत्नी से प्यार?”
मैं बोला— “हाँ”, बिना इंकार।
फिर पूछा— “सुंदर हैं आपकी मैडम?”
मैं बोला— “हाँ, अति अनुपम।”
“खाना कैसा बनाती हैं वो?”
“अमृत-सा स्वाद, पूछो मत जो!”
कुछ दिन चुप्पी, फिर संदेश नया,
“आपके शहर आई हूँ, मिलें क्या?”
मैं बोला— “ज़रूर, पर घर आइये,
पत्नी-बच्चे मिलकर खुश हो जाइये।”
वो बोली— “नहीं, मैडम के सामने नहीं,
पार्क में मिलो, यही सही।”
मैं अड़ा— “घर ही उत्तम स्थान,
बाहर मिलने में खतरे अपार।”
वो झुँझलाई— “डरपोक हो तुम,
मैं जा रही हूँ, बैठे रहो तुम!”
मैं बोला— “मिलना है तो घर आओ,
परिवार के संग पहचान बनाओ।”
वो ऑफ़लाइन… मन में संशय भारी,
शाम को घर लौटा, खुशबू न्यारी।
डायनिंग टेबल पर पकवान सजे,
मैं बोला— “कोई मेहमान बजे?”
पत्नी हँसकर बोली— “हाँ जी हाँ,
दिब्या शर्मा आएगी मेहमान।”
मैं चौंका— “क्या? ये कैसे?”
वो बोली— “राज़ सुनो अब जैसे—
मैं ही थी वो दिब्या शर्मा,
तुम्हारी निष्ठा का लिया परख-करमा।
जासूसी मिशन में पास हुए तुम,
सच्चे हमसफ़र, आओ खाएँ हम।”
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