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रात अभी बाकी है

रात अभी बाकी है

डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
प्रिय रात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ,
मधुबात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
मौन अधरों पर थिरकते, गीत गाना शेष है,
नेह मिलन मधुशाला में, रीत अपना शेष है।
अंकुरित होते जो सपने जगाओ, न ठुकराओ
प्रिय रात अभी बाकी है,
मत मधुदीप बुझाओ।
मधुबात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
मन के सूने आँगन में, तम का गहरा डेरा है,
स्नेह-रहित इस दीए को तूफानों ने घेरा है।
दिन ढला, खोया सूरज पर दग़ा दिया छिपकर ऐसा
कुछ तो सुनो अरे ऐसे मत मधुदीप बुझाओ।
जीवन का घट रीता-रीता, बूँद-बूँद को तरसा है,
बादल तो घिर आए लेकिन, पता न क्यों कर बरसा है।
देह-गेह का मोह नहीं, पर नेह अभी तो बाकी है,
रूठे हुए इन गीतों को, सुर में तनिक सजाओ।
प्रियरात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
तपी प्रीत के आंगन में, जीवन ने खेल दिखाया
मैं क्या जानूँ कैसा सावन, कैसे फागुन आया
देख समय की आँधी ने यह कैसा रंग उड़ाया
नहीं मिट सके कभी, जो वैसा रंग लगाओ।
प्रिय रात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
साँस की बंधी डोरी में आसा के फूल खिलाओ
रजनी में स्नेहिल काजल से, प्रीतम के गीत सजाओ
बुझने से पहले दीये में, थोड़ी तो उष्मा भर दो
मधुबात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
प्रिय रात अभी बाकी है, मत मधुदीप बुझाओ।
संरक्षक ,आचार्य कुल, वर्धा, राष्ट्रीय शिक्षा सम्मान ,राष्ट्रीय हिंदी सम्मान राधाकृष्णन शिक्षा पुरस्कार एवं शताब् हिंदी साहित्य सम्मान प्राप्त, पूर्व प्राचार्य डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
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