शब्दवीणा महाराष्ट्र प्रदेश समिति की मासिक काव्यगोष्ठी में सात प्रदेशों के कवि-कवयित्रियों ने पढ़ीं रचनाएँ

- स्मरण नहीं है आज तक, तो फिर कहो था प्यार कैसा
- नाम तुम्हारा जाने कितने सालों तक और मास लिखा है
- ग़म को पीते हैं और मुस्कुराये जाते हैं। अश्क़ को अपने स्याही बनाये जाते हैं"
गया जी। राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' की महाराष्ट्र प्रदेश समिति की मासिक काव्यगोष्ठी में देश के महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हरियाणा प्रदेश से शामिल कवि-कवयित्रियों ने प्रेम, विरह, प्राकृतिक सौंदर्य, अध्यात्म, देशभक्ति, श्री रामभक्ति, महिला सशक्तीकरण जैसे विविध विषयों पर सुमधुर स्वर में एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट स्वरचित गीत, ग़ज़ल, मुक्तक एवं छंद पढ़े। कार्यक्रम का संयोजन व समन्वयन शब्दवीणा की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो डॉ रश्मि प्रियदर्शनी, महाराष्ट्र प्रदेश संरक्षक प्रो डॉ कनक लता तिवारी एवं प्रदेश अध्यक्ष लाल बहादुर यादव 'कमल' ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जैनेन्द्र कुमार मालवीय ने तथा संचालन श्रीधर मिश्रा ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय जन भाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष विनय सिंह विनम्र रहे। बतौर विशिष्ट अतिथि शब्दवीणा के राष्ट्रीय परामर्शदाता एवं पश्चिम बंगाल प्रदेश संरक्षक पुरुषोत्तम तिवारी की गरिमामयी उपस्थिति रही। काव्यगोष्ठी का शुभारंभ कवयित्री जागृति सिन्हा द्वारा सुमधुर स्वर में प्रस्तुत सरस्वती वंदना "हे माँ शारदे, वीणावादिनी" से हुआ।
काव्यगोष्ठी में दीपक कुमार के प्रेमगीत "स्मरण नहीं है आज तक तो, फिर कहो था प्यार कैसा" एवं डॉ कनक लता तिवारी की ग़ज़ल "नाम तुम्हारा जाने कितने सालों तक और मास लिखा है" ने मंच को श्रृंगार रस से भर डाला। विनय सिंह विनम्र की रचना "जब उम्र से बड़ी ज़बान हो जाये। ज़रूरी है कि आदमी सावधान हो जाये" पर खूब वाहवाहियाँ लगीं। डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने "जब तक जीवन है चहकेंगे। उपवन में गुल बन महकेंगे। पोंछ अश्रु, बिसरा पीड़ाएँ, नव ऊष्मा लेकर दहकेंगे" कविता द्वारा जीवन को जीवंत बनाये रखने के लिए संघर्ष करते रहने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। सुजाता उदेशी की "बेजान शब्दों को अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ" "बबन बदिया की "कुछ पल का साथ है ये जिंदगी", विजयेन्द्र सैनी की "हादसे हमने अपनी ज़िंदगी में ऐसे खाये हैं", लाल बहादुर यादव 'कमल' की "ग़म को पीते हैं और मुस्कुराये जाते हैं, अश्क़ को अपने स्याही बनाये जाते हैं" तथा जैनेन्द्र कुमार मालवीय की "शब्द से ही साधना क्या, भावना है, कर्मणा भी" को भी खूब सराहना मिली। रमेश चंद्र, कीर्ति यादव एवं रामदेव शर्मा राही ने श्रीराम भक्ति से ओतप्रोत भजन सुनाये। सुनीता सैनी गुड्डी ने रानी पद्मावती के जौहर की ऐतिहासिक घटना को कौरवी बोली में रचित अपने मर्मस्पर्शी लोकगीत द्वारा चित्रित किया। सरोज कुमार ने एक पिता के त्यागमय जीवन पर रचित कविता पढ़ी। अजय कुमार वैद्य ने भोजपुरी भाषा में लिखित प्रेमगीत सुनाया। श्रीधर मिश्रा एवं पंकज मिश्रा की रचनाओं ने श्रोताओं को भावविभोर कर डाला।
कार्यक्रम अध्यक्ष जैनेन्द्र कुमार मालवीय एवं मुख्य अतिथि विनय सिंह विनम्र ने काव्यगोष्ठी में पढ़ी गयीं रचनाओं को उत्कृष्ट एवं प्रशंसनीय बताते हुए शब्दवीणा के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। विशिष्ट अतिथि पुरुषोत्तम तिवारी ने कविता को हृदय के भावों के प्रकटीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यम बताते हुए एक सुंदर साहित्यिक आयोजन के लिए शब्दवीणा महाराष्ट्र प्रदेश समिति को हार्दिक शुभकामनाएं दीं। धन्यवाद ज्ञापन डॉ कनकलता तिवारी ने किया। उन्होंने शब्दवीणा को विद्वान एवं अनुभवी रचनाकारों की संस्था बतलाते हुए शब्दवीणा परिवार को आगे बढ़ाने के लिए मिलजुलकर प्रयत्न करने रहने के संकल्प को दुहराया। काव्यगोष्ठी का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से हुआ, जिससे जुड़कर प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, राजीव उपाध्याय, प्यारचंद कुमार मोहन, महावीर सिंह वीर, डॉ रवि प्रकाश, आशा साहनी, पुरुषोत्तम तिवारी, राम नाथ बेख़बर, हीरा लाल साव, बिनोद कुमार बरबिगहिया सहित देश-विदेश के विभिन्न भागों से साहित्यप्रेमियों ने काव्यपाठ का आनंद उठाया। अपनी सारगर्भित प्रतिक्रियाओं द्वारा रचनाकारों उत्साहवर्द्धन किया।
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