मानव का मन
संजय जैनज्योत ज्ञान की मन में जला दो।
दीप जला दो तुम मन्दिर में।
एक अर्ज है प्रभुजी से मेरी।
जग को तुम जग मगा दो।।
ईश्वर को तुम ढूँढ़ रहे हो।
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारो में।
पर वो तो बसते है मानव।
सदा ही तेरे मन के अंदर।।
खोज सके तो खोज ले उसको।
जिसको वर्षो से तू खोज रहा।
तेरे मन में खोट बहुत है।
जिससे तू उसे पा ना सका।।
जब तक तेरे मन में नफरत ।
की चिंगारी जलती रहेगी।
तब तक तू प्रभु को मानव।
कभी नही तू पा पायेगा।।
मानव की फिदरत को देखो।
मानव ही नही समझ सका।
मानव के कर्मों का फल भी।
देखो मानव कैसे भोग रहा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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