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विदा लेता वर्ष 2025 - रहा एक असाधारण वर्ष

विदा लेता वर्ष 2025 - रहा एक असाधारण वर्ष

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

वर्ष 2025 अब अपने अंतिम पड़ाव पर खड़ा है। कैलेंडर के पन्ने पलटने को आतुर हैं, लेकिन बीते 362 दिनों की स्मृतियाँ, घटनाएँ और प्रभाव आने वाले दशकों तक मानव समाज का पीछा नहीं छोड़ेंगी। यह वह वर्ष रहा है, जिसने यह एहसास कराया है कि इतिहास अब धीमी गति से नहीं चलता है वह छलांग लगाता है, वह झकझोरता है और कभी-कभी अकल्पनीय रूप ले लेता है। 2025 केवल एक वर्ष नहीं रहा है, बल्कि यह वैश्विक चेतना, तकनीकी हस्तक्षेप, राजनीतिक अस्थिरता, मानवीय मनोविज्ञान और सामाजिक संरचना के गहरे पुनर्गठन का साक्षी बना।


2025 की शुरुआत ही एक दुर्लभ खगोलीय घटना से हुई है “ग्रहों की परेड”। बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि का एक रेखा में आना केवल खगोलविदों के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनमानस के लिए भी विस्मय का विषय बना है। सोशल मीडिया पर यह घटना ट्रेंड बनी, ज्योतिषीय व्याख्याएँ हुईं, वैज्ञानिक विश्लेषण आए और मानव ने एक बार फिर आकाश की ओर सिर उठाकर देखा। यह घटना प्रतीक रहा वर्ष का, जिसमें विज्ञान, आस्था और तकनीक लगातार एक-दूसरे से टकराते रहे।


2025 में भारत ने औपचारिक रूप से स्वयं को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है। यह उपलब्धि केवल आँकड़ों की नहीं थी बल्कि यह संकेत थी कि भारत वैश्विक शक्ति-संतुलन में एक निर्णायक भूमिका निभाने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन इस उपलब्धि के साथ प्रश्न भी आए कि क्या यह विकास समावेशी है? क्या सामाजिक असमानताएँ घट रही हैं? क्या आम नागरिक की क्रय-शक्ति एव जीवन-स्तर में समान वृद्धि हो रही है? आर्थिक सफलता और सामाजिक यथार्थ के बीच की खाई 2025 में और स्पष्ट हुई है।


2025 का एक बड़ा अध्याय रहा है न्यायपालिका से जुड़े विवाद। न्यायिक नियुक्तियाँ, निर्णयों पर सवाल, न्यायिक सक्रियता बनाम अतिक्रमण। इन सबने लोकतंत्र की चौथी स्तंभ पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी। यह वर्ष यह भी दिखा कि “न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, वह दिखना भी चाहिए।”


ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य और रणनीतिक क्षमता को वैश्विक पटल पर पुनः स्थापित किया है। यह केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि भारत अब प्रतिक्रियावादी नहीं, बल्कि पूर्व-सक्रिय (Pro-active) रणनीति अपनाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा अब केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रही है।


2025 में घटित एयर इंडिया हादसा केवल एक विमान दुर्घटना नहीं था बल्कि यह चेतावनी थी। अत्याधुनिक तकनीक, ऑटो-पायलट, एआई-आधारित सिस्टम, सब कुछ होते हुए भी मानवीय त्रुटि, प्रबंधन और निगरानी की भूमिका पर सवाल खड़ा हुआ।


बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने यह स्पष्ट किया है कि जाति अब भी राजनीति का कारक है, लेकिन युवा और डिजिटल नैरेटिव उसे चुनौती दे रहे हैं। व्हाट्सऐप, रील्स, एआई-जनित भाषण की राजनीति अब मैदान से ज्यादा स्क्रीन पर लड़ी गई।


Axiom-4 मिशन के साथ भारत ने अंतरिक्ष सहयोग के एक नए युग में प्रवेश किया है। यह मिशन यह संकेत था कि भारत केवल उपग्रह प्रक्षेपण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मानव अंतरिक्ष मिशनों के वैश्विक साझेदार के रूप में उभरेगा।


2025 में एक नया शब्द उभरा है Zen G। यह वह पीढ़ी है जो तकनीक में जन्मी, एआई के साथ बड़ी हुई और वास्तविकता को स्क्रीन के माध्यम से समझती है। ChatGPT-5 और अन्य जनरेटिव एआई टूल्स ने शिक्षा, पत्रकारिता, कानून और रचनात्मकता, सबके स्वरूप को बदल दिया है।


2025 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव ने वैश्विक राजनीति को पुनः अस्थिर किया है। नई नीतियाँ, व्यापार युद्ध, तकनीकी प्रतिबंध, इन सबका प्रभाव भारत समेत पूरी दुनिया पर पड़ा है।


लाल किला ब्लास्ट की घटना ने यह जता दिया है कि “प्रतीकात्मक स्थल केवल धरोहर नहीं है, बल्कि सुरक्षा की परीक्षा भी होती हैं।”


2025 के उत्तरार्द्ध में आई एक रिपोर्ट ने पूरे देश को चौंका दिया है कि औसतन भारतीय युवा 6 घंटे से अधिक मोबाइल उपयोग, मासिक डेटा खपत 28GB (तीन गुना वृद्धि), यह केवल तकनीकी आंकड़ा नहीं था बल्कि यह मानव व्यवहार के बदलते डीएनए का संकेत था। मानव समाज कभी संयुक्त था, परिवार, समुदाय, मोहल्ला और मित्रता। फिर वह एकल हुआ न्यूक्लियर फैमिली, व्यक्तिगत करियर और अब वह एकला होता जा रहा है स्क्रीन के साथ, एल्गोरिद्म के भरोसे और आभासी संबंधों में।


मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी ने मेलाटोनिन हार्मोन के स्राव को बाधित किया है। परिणाम यह हुआ है कि अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, अवसाद, निर्णय-क्षमता में गिरावट। यह एक मौन महामारी बनती जा रही है।


2025 चेतावनी देकर जा रहा है कि “यदि तकनीक पर नियंत्रण नहीं रखा गया, तो तकनीक ही नियंत्रण करेगी।” मोबाइल उपयोग को सीमित करना कोई तकनीक-विरोध नहीं है बल्कि मानव-पक्षीय निर्णय है।

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