परिवार की जान
बेटी घर की जन्नत हैऔर मनंत मांगते बेटो की।
अंतर माँ बाप ही करते
फिर कैसे जन्मेंगी बेटी।।
घर परिवार चलाने को
बेटी का होना जरूरी है।
वंश का वारिस के लिए भी
नारी का होना जरूरी है।
जब बेटी नहीं जन्मोगे तुम
तो बेटा कहाँ से लाओगे।
और अपनी अर्थी और शरीर को
किस से तुम जलवाओगें।
इसलिए दुनियां को चलाने
बेटी को तुम दो जन्म।।
संसारिक रीति रिवाज सिर्फ
चलते है कुल दीपक से।
पर घर हर अनुष्ठानों में
बेटी को आगे करते हो।
कभी लक्ष्मी कभी सीता
कभी दुर्गा उसे कहते हो।
पर बेटे से ये सारे तुम
काम क्यों नहीं करवाते हो।
जबकि बेटी ही जन्ती है
उन सब के कुल दीपक को।।
बुरा वक्त जब आता है तो
बेटी समाने आती है।
बोझ उठाने माँ बाप का
सीना ठोकर कहती है।
बेटा तब नजरे चुराकर
घर से भाग जाता है।
और अपने सुख की खातिर वो
माँ बाप को छोड़ देता है।
इसलिए कहता हूँ यारों
बेटी घर की जन्नत है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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