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बोल उठी महिलाएँ: बिहार की महिलाओं के मुद्दों पर जनशक्ति भवन में हुआ संयुक्त महिला अभियान का बड़ा आयोजन

बोल उठी महिलाएँ: बिहार की महिलाओं के मुद्दों पर जनशक्ति भवन में हुआ संयुक्त महिला अभियान का बड़ा आयोजन

पटना, 30 अक्टूबर।
बिहार की महिलाओं की आवाज़ को एक साझा मंच देने के उद्देश्य से आज जनशक्ति भवन, बीरचंद पटेल रोड, पटना में “संयुक्त महिला अभियान – बोल उठी महिलाएँ” द्वारा एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में संयुक्त महिला अभियान से जुड़े विभिन्न महिला संगठन, स्वतंत्र महिला कार्यकर्ता और महागठबंधन में शामिल दलों के महिला विंग की प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस अभियान की शुरुआत 18 सितंबर को पटना में हुई थी, जिसमें राज्यभर की महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। अभियान का मकसद था—ग्रामीण, शहरी और वंचित तबकों की महिलाओं, विशेषकर हाशिए पर जीवन जी रही महिलाओं को एक साझा मंच प्रदान करना, ताकि वे अपने संघर्षों और अनुभवों को निर्भीकता से साझा कर सकें।

पिछले डेढ़ महीने के भीतर संयुक्त महिला अभियान की टीम ने बिहार के 19 जिलों—पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीवान, सारण, भोजपुर, पटना, गया, नालंदा, वैशाली, दरभंगा, समस्तीपुर, नवादा, शेखपुरा, बेगूसराय, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया और कटिहार—में जाकर 150 से अधिक मोहल्ला मीटिंग्स के माध्यम से लगभग 6000 महिलाओं से संवाद किया। इनमें से 1500 से अधिक महिलाओं ने अपनी बात रखी, और 500 से ज्यादा महिलाओं के वीडियो वक्तव्य रिकॉर्ड किए गए। इन आवाज़ों ने न सिर्फ बिहार बल्कि देश-विदेश तक अपनी गूंज छोड़ी है।

इन्हीं आवाज़ों के आधार पर तैयार 30 सूत्रीय मांग पत्र को आज विभिन्न महिला संगठनों की प्रतिनिधियों — मंज शर्मा (ऐपवा), सरिता पांडेय (ऐडवा), निवेदिता झा (बिहार महिला समाज), मुकुंद सिंह (आरजेडी महिला), डॉ. मधु बाला (कांग्रेस), नीलू (बिहार विमेंस नेटवर्क) और महिला एक्टिविस्ट विजयश्री डांगरे व शबनम हाशमी (दिल्ली) — ने संयुक्त रूप से जारी किया।

यह मांग पत्र छह प्रमुख श्रेणियों में विभाजित है —
1️⃣ आर्थिक एवं वित्तीय अधिकार
2️⃣ रोजगार और श्रम अधिकार
3️⃣ शिक्षा और कौशल विकास
4️⃣ सुरक्षा, न्याय और कानून
5️⃣ भूमि, आवास और बुनियादी सुविधाएँ
6️⃣ राजनीतिक भागीदारी एवं समावेशन

इन मुद्दों को रचनात्मक ढंग से प्रदर्शित करने के लिए इप्टा के कलाकार दिनेश ने छतरियों पर सुंदर चित्रांकन किया।

इस अवसर पर “बिहार की महिलाओं का अनदेखा संघर्ष” शीर्षक से एक प्रभावशाली वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) भी प्रदर्शित की गई, जिसे प्रीति प्रभा और शबनम हाशमी ने फिल्माया है। इस डॉक्यूमेंट्री में गौहर रज़ा की आवाज़ में नैरेशन है, संपादन अरमा अंसारी ने किया है, जबकि गीत ब्यूटी रंजना की आवाज़ में है। इसमें उपयोग की गई तस्वीरें अमित यादें और फैज़ान खान ने ली हैं।

बैठक के दौरान “ग्रामीण महिलाओं के लिए ऋण समाधान और रोजगार के रास्ते” विषय पर एक सशक्त पैनल डिस्कशन आयोजित हुआ।

वक्ता रहे:


डॉ. प्रभाकर परकला (अर्थशास्त्री व लेखक, तेलंगाना) — उन्होंने कहा कि “सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से पल्ला झाड़ रही है। माइक्रोफाइनेंस के जाल में फंसी 800 से अधिक महिलाओं ने आंध्र प्रदेश में आत्महत्या की है।”


गगन सेठी (संगठनात्मक विकास विशेषज्ञ, गुजरात) — “महिलाओं को संगठित होकर अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी। जब तक आवाज़ नहीं उठेगी, बदलाव संभव नहीं।”


कुमारेश सिंह (हाईकोर्ट वकील, पटना) — “माइक्रोफाइनेंस में महिलाओं पर दबाव और हिंसा को रोकने के लिए आंध्र प्रदेश जैसा कानून बिहार में भी जरूरी है।”

मॉडरेटर:
अरशद अजमल, सामाजिक कार्यकर्ता एवं सूक्ष्म वित्त विशेषज्ञ, जिन्होंने ब्याज-मुक्त सहकारी समितियों की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई।

पैनल डिस्कशन में तीन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा हुई —
1️⃣ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के ऋण जाल से महिलाओं को मुक्ति कैसे मिले
2️⃣ कानूनी समाधान क्या हो सकता है
3️⃣ ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार सृजन के रास्ते क्या हों

इस चर्चा के आधार पर एक विस्तृत दस्तावेज़ तैयार किया जाएगा, जिसे सभी राजनीतिक दलों को भेजा जाएगा ताकि महिलाओं के हित में ठोस नीति बनाई जा सके।

बैठक में रूपेश, कपिलेश्वर जी, विनोद जी, तनवीर अख्तर, प्रेम, चंद्रभूषण शर्मा, टीपू सुल्तान, मुस्कान, कबीर, प्रियंका सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

संयुक्त महिला अभियान ने इस आयोजन के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया कि —

👉 अब बिहार की महिलाएँ चुप नहीं रहेंगी, बोल उठेंगी — अपने अधिकारों, सम्मान और समान अवसरों के लिए।

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