"स्वयं होने का साहस"
पंकज शर्मा
जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम अपनी वास्तविक सत्ता को नकार कर, दूसरों की आकांक्षाओं के अदृश्य कारागार में जीने लगते हैं। हम अपनी आत्मा की मौलिक ध्वनि को दबाकर एक कृत्रिम जीवन का निर्वहन करते हैं, और यही समझौता अंततः सबसे बड़ा पश्चात्ताप बन जाता है। अपने जुनून और सिद्धांतों को त्यागकर केवल दूसरों को खुश करने की यह दौड़ हमें उस सफलता तक तो ले जा सकती है जहाँ प्रशंसा हो, पर सार्थकता नहीं। जब हम अपने प्रामाणिक स्वरूप को छोड़ देते हैं, तो जीवन से संतोष और आनंद का स्रोत सूख जाता है।
अब इस विडंबना को पहचान कर इससे मुक्ति पाने का समय है। सच्चा साहस दूसरों की वाहवाही में नहीं, बल्कि स्वयं के प्रति ईमानदार रहने में है। जीवन का सार किसी और के सपने को जीने में नहीं, बल्कि अपने हृदय की पुकार सुनकर अपने वास्तविक स्वरूप को अभिव्यक्त करने में निहित है। अपनी विशिष्टता को स्वीकार करें—आपकी त्रुटियाँ और आपके सपने ही आपको अद्वितीय बनाते हैं। जब आप अपनी सत्ता का सम्मान करते हैं, तभी आप एक ऐसा जीवन जी पाते हैं जो न केवल गहरा संतोष लाता है, बल्कि दुनिया को भी आपका सर्वाधिक मूल्यवान योगदान दे पाता है। स्वयं बनें, क्योंकि इसी सत्य में जीवन की सच्ची प्रेरणा और सफलता छिपी है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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