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बुंदेलखंड के हृदय में: ललितपुर की एक अविस्मरणीय यात्रा

बुंदेलखंड के हृदय में: ललितपुर की एक अविस्मरणीय यात्रा

सत्येन्द्र कुमार पाठक
उत्तर प्रदेश के दक्षिणी छोर पर स्थित, ललितपुर एक ऐसा जिला है जो अपनी अनूठी भौगोलिक स्थिति, समृद्ध इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। मध्य प्रदेश से तीन तरफ से घिरा होने के कारण यह उत्तर प्रदेश के नक्शे पर एक 'द्वीप' जैसा प्रतीत होता है। ललितपुर का यह भौगोलिक अलगाव इसे एक विशेष पहचान देता है और इसके इतिहास, संस्कृति और लोगों के जीवन को विशिष्ट बनाता है। यह जिला वास्तव में बुंदेलखंड क्षेत्र की आत्मा का प्रतीक है, जहाँ प्रकृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम देखने को मिलता है। हाल ही में मुझे इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर की यात्रा करने का अवसर मिला, जो मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। मेरी यह यात्रा एक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने के लिए थी, जिसने मुझे इस शहर को करीब से जानने और इसकी गहरी जड़ों को महसूस करने का मौका दिया।
मेरी यात्रा से पहले, ललितपुर के बारे में कुछ जानकारी जुटाना आवश्यक था ताकि मैं इस जगह की वास्तविक भावना को समझ सकूँ। यह जानकर मैं आश्चर्यचकित था कि यह जिला उत्तर प्रदेश के नक्शे पर एक 'द्वीप' जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि यह मध्य प्रदेश से तीन तरफ से घिरा हुआ है। इस भौगोलिक स्थिति ने इसके इतिहास और संस्कृति को एक विशिष्ट पहचान दी है। यहाँ का भू-भाग अत्यंत विविध और मनोरम है, जिसमें विंध्य पर्वतमाला की चोटियाँ और उनके बीच बहने वाली नदियाँ - बेतवा और धसान - एक सुंदर परिदृश्य बनाती हैं। ये नदियाँ न केवल कृषि के लिए जीवनदायिनी हैं, बल्कि इस क्षेत्र की हरियाली और जैव विविधता को भी बनाए रखती हैं। ललितपुर अपनी खनिज संपदा के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ ग्रेनाइट, पायरोफलाइट, और रॉक-फॉस्फेट के विशाल भंडार हैं, जो इसे आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। इसका इतिहास द्वापरयुग से जुड़ा हुआ है और यह चेदि राज्य का हिस्सा था, जिसका संबंध शिशुपाल से था। सदियों से यह क्षेत्र गोंडों, बुंदेला शासकों, मराठा साम्राज्य और अंततः अंग्रेजों के अधीन रहा। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में, यहाँ के राजा मर्दन सिंह बुंदेला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1974 में, झाँसी जिले से अलग होकर ललितपुर को एक स्वतंत्र जिले के रूप में पुनः स्थापित किया गया।
यात्रा की शुरुआत: 19 सितंबर 2025 - मेरी यात्रा की शुरुआत 19 सितंबर को हुई, जब मैंने पटना से सुबह 11:25 बजे इंदौर-पटना एक्सप्रेस से ललितपुर के लिए प्रस्थान किया। यह एक लंबी और रोमांचक यात्रा थी, जिसमें लगभग 897 किलोमीटर की दूरी तय की गई। शाम 5:22 बजे, ट्रेन ने ललितपुर जंक्शन पर अपनी रफ्तार धीमी कर दी। स्टेशन के पास एक होटल में आराम करने के बाद, मैं नेहरू महाविद्यालय में आयोजित होने वाले समारोह के लिए रवाना हुआ।नेहरू महाविद्यालय का परिसर व्यवस्थित और मनमोहक था। यहाँ 'तुलसी' और 'संस्कृति' जैसे नामों से सुसज्जित सभागार थे, जो इस स्थान की सांस्कृतिक और शैक्षिक गरिमा को दर्शा रहे थे। समारोह में साहित्यकारों के विचारों को सुनना एक अद्भुत अनुभव था। विभिन्न सांस्कृतिक विरासत पर आधारित यह संगोष्ठी ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान का एक बेहतरीन मंच थी। समारोह में, मुझे कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए स्मृति चिन्ह और अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया, जो मेरे लिए एक बड़ा सम्मान था। स्वादिष्ट भोजन और नाश्ते का आनंद लेते हुए, मैंने साथी साहित्यकारों के साथ महत्वपूर्ण चर्चाएँ कीं। समारोह के समापन के बाद, हम अपने विश्राम स्थल पर लौट आए।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भ्रमण: 20-21 सितंबर 2025 - संगोष्ठी के बाद, मुझे ललितपुर की सांस्कृतिक विरासत को करीब से जानने का मौका मिला। 21 सितंबर को, मैं 'नृतंकहनियाँ' के संपादक श्री सुरेंद्र अग्निहोत्री जी के निवास पर आयोजित प्रीतिभोज में शामिल हुआ। उनके परिवार से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई। उनके पुत्रों और बच्चों का व्यवहार अत्यंत स्नेही और सौहार्दपूर्ण था, जिसने मेरे मन को आनंदित कर दिया।इस यात्रा के दौरान, मैंने ललितपुर के कई महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया। ललितपुर को 'जैनियों का गढ़' कहा जाता है, और यह बात यहाँ के मंदिरों को देखकर साबित हो जाती है। मैंने क्षेत्रपाल मंदिर और यहाँ की गुफाओं में स्थापित जैन धर्म के दिगंबर एवं 24 तीर्थंकरों के दर्शन किए। इन साधना स्थलों पर जाकर मुझे एक अलग तरह की शांति और आनंद की अनुभूति हुई। इन मंदिरों की प्राचीन कला और आध्यात्मिक वातावरण मन को शांति प्रदान करता है।
ललितपुर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत केवल जैन धर्म तक सीमित नहीं है। यहाँ कई महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर भी हैं।देवगढ़ का दशावतार मंदिर: यह मंदिर गुप्त काल (5वीं शताब्दी) की वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है और इसे भारत के सबसे पुराने विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है। इसकी दीवारों पर पौराणिक कथाओं और मूर्तियों की नक्काशी अद्भुत है। नीलकंठेश्वर मंदिर (पाली): यह एक प्राचीन शिव मंदिर है जो पहाड़ी पर स्थित है और अपने स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से आसपास का दृश्य मनमोहक है।पावागिरी: यह एक प्रमुख जैन तीर्थ स्थल है, जो अपनी शांति और आध्यात्मिक वातावरण के लिए जाना जाता है। यहाँ कई दिगंबर जैन मंदिर हैं।इन मंदिरों के अलावा, मैंने सीरोंजी, देवमाता, और मचकुंड की गुफाओं को भी देखा, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को दर्शाती हैं । ललितपुर में बिताए गए ये तीन दिन ज्ञान और आत्म-संतोष से भरे थे। 21 सितंबर को, मैंने अहमदाबाद-सहरसा एक्सप्रेस से ललितपुर से दानापुर के लिए वापसी की यात्रा शुरू की। दानापुर से तीन-पहिया वाहन लेकर मैं पटना जंक्शन पहुँचा, और वहाँ से पटना-गया ट्रेन से जहानाबाद के लिए प्रस्थान किया। ललितपुर की यह यात्रा न केवल मेरे लिए एक शैक्षिक अनुभव थी, बल्कि यह बुंदेलखंड की गहरी जड़ों और समृद्ध विरासत को समझने का एक मौका भी था। यह शहर वास्तव में इतिहास, प्रकृति और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम है, जो हर यात्री को कुछ न कुछ नया सीखने और अनुभव करने का अवसर देता है। ललितपुर की यादें हमेशा मेरे दिल में रहेंगी, और मैं निश्चित रूप से भविष्य में इस ऐतिहासिक शहर का फिर से दौरा करना चाहूँगा। यह शहर अपनी विरासत को संजोए हुए है और निरंतर प्रगति की राह पर है, जो इसे और भी खास बनाता है।
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