रक्षाबंधन की सूनी कलाई और बहन की स्मृतियाँ
लेखक: डॉ. राकेश दत्त मिश्र
रक्षाबंधन – यह शब्द सुनते ही मन में स्नेह, विश्वास और अपनत्व की मीठी छवि उभर आती है। भाई-बहन के रिश्ते की यह डोर केवल रेशम के धागों में नहीं बंधी होती, बल्कि इसमें भावनाओं का अथाह सागर, बचपन की यादें और जीवन भर साथ निभाने का वचन भी समाया होता है। परंतु मेरे जीवन में यह पर्व अब एक अलग ही अर्थ लिए हुए है—एक ऐसी उदासी, जो हर साल इस दिन और गहरी हो जाती है।
कुछ वर्ष पूर्व तक रक्षाबंधन का दिन मेरे लिए सबसे प्रिय दिनों में से एक होता था। मेरी बहन, जो मुझसे लगभग पंद्रह वर्ष बड़ी थी, हर साल अपनी ममता भरी मुस्कान के साथ मेरी कलाई पर राखी बांधती थी। राखी बांधते समय वह केवल धागा नहीं, बल्कि अपने आशीर्वाद, अपने विश्वास और अपने अटूट स्नेह को मेरे जीवन में पिरो देती थी। फिर हम हँसी-मजाक करते, पुरानी यादें ताजा करते और वह lovingly मुझे मिठाई खिलाती।
लेकिन वर्ष 2010 मेरे जीवन में ऐसा तूफ़ान लेकर आया, जिसने मेरी खुशियों की यह डोर तोड़ दी। उस साल मेरी बहन का देहांत हो गया। उसके जाने के बाद रक्षाबंधन का दिन मेरे लिए केवल कैलेंडर की एक तारीख बनकर रह गया—एक ऐसी तारीख, जो मेरे हृदय के कोने में गहरे दर्द का दरवाज़ा खोल देती है। तब से मेरी कलाई सूनी रह जाती है, और मेरी आँखें उन बीते पलों को खोजती हैं जो अब केवल स्मृतियों में बचे हैं।
जब भी रक्षाबंधन आता है, आस-पड़ोस में बहनों के आने-जाने, राखी बांधने और मिठाइयों की खुशबू से वातावरण महक उठता है, लेकिन मेरे मन के आंगन में एक सन्नाटा पसरा रहता है। मैं अपनी बहन की तस्वीर के सामने बैठकर उसे निहारता हूँ, मानो वह सामने बैठी हो और कह रही हो—"लो, यह राखी तुम्हारी सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए है।"
रक्षाबंधन अब मेरे लिए केवल भाई-बहन के रिश्ते का पर्व नहीं, बल्कि बहन के प्रेम और उसकी अनुपस्थिति का गहरा एहसास है। उसकी यादें मुझे सिखाती हैं कि रिश्ते केवल भौतिक उपस्थिति से नहीं, बल्कि भावनाओं और स्मृतियों से भी जीवित रहते हैं। आज मेरी कलाई पर भले ही राखी का धागा न बंधे, लेकिन दिल में बहन की दी हुई वह अदृश्य डोर हमेशा बंधी रहती है—जो मुझे उसकी ममता, उसके आशीर्वाद और उसके प्रेम से जोड़ती है, जीवन भर के लिए।
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