हिन्दी के लिए अस्थि गलाने वाले साहित्य-ऋषि थे आचार्य शिवपूजन सहाय

- कथाकार रमेशचंद्र की कथाओं में है जीवन के प्रति साधु आकांक्षा
- जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई एकल-कथा-पाठ ऋंखला 'कथयामि कथा' का दूसरा अंक
पटना, ९ अगस्त। फ़क़ीरी की ज़िंदगी जीने वाले हिन्दी के महान साहित्य सेवी आचार्य शिव पूजन सहाय राष्ट्रभाषा के लिए अपना देह गलाने वाले दधीचि के समान साहित्य-ऋषि थे। उनकी विद्वता, विनम्रता और बहशा-सिद्धि की ख्याति संपूर्ण भारत वर्ष में थी। प्रेमचंद जैसे महान कथाकार और जयशंकर प्रसाद जैसे महाकवि अपनी पुस्तकों का परिशोधन आचार्य शिव जी से कराया करते थे। साहित्य की एक जीवंत-कार्यशाला और शब्द-कोश थे शिवजी। यह गौरव का विषय है कि वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और सम्मेलन पत्रिका 'साहित्य' के वर्षों तक प्रधान-संपादक रहे।
यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य सहाय की जयंती पर आयोजित एकल-काव्य-पाठ की ऋंखला 'कथयामि कथा' के दूसरे अंक की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। इस अंक के कथाकार और शिक्षा विभाग में उपनिदेशक रमेश चंद्र ने अपनी दो कथाओं 'पा-पा-पापा' तथा 'लछमिनिया' का पाठ किया, जिन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए डा सुलभ ने कहा कि श्री रमेश की कथाओं में यथार्थ और काव्य-कल्पनाओं का मणि-कांचन संयोग दिखाई देता है। इनमे जीवन के प्रति नैराश्य का भाव नहीं, अपितु जीवन को गति देने वाली साधु आकांक्षाएँ हैं ।
इसके पूर्व वरिष्ठ हिन्दी सेवी और सम्मेलन की कार्यसमिति के सदस्य आचार्य विजय गुंजन ने कथाकार रमेश चंद्र का परिचय पढ़ा।
कथाओं पर त्वरित समीक्षा करते हुए डा समरेंद्र आर्य ने कहा कि लेखक की दोनों कहानियाँ मर्म-स्पर्शी हैं। इन्हें सुनते हुए लगता है मानो प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु को पढ़ रहा हूँ। अपनी कहानी के माध्यम से लेखक ने एक शिक्षक के कर्तव्यों को भी रेखांकित किया है। शिक्षक का कर्तव्य केवल पाठ पढ़ा देना भर नहीं है। उसे छात्र-छात्राओं के संपूर्ण विकास को ध्यान में रखकर शिक्षा देने की चेष्टा करनी चाहिए।
अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी में सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि लेखक ने अपनी कहानी 'पा-पा पापा' में एक मानसिक रूप से अविकसित विशेष बच्चे की माँ के ममत्त्व और उसकी अंतर्वेदना की अभिव्यक्ति की है। इस कथा में विशेष बच्चों के माता-पिता की व्यथा और उसके कठिन दायित्व की ओर ध्यान खींचा है और बताया है कि यदि माता-पिता तपस्या जारी रखते हैं तो विशेष बच्चों में भी चमत्कारी परिवर्तन आ सकता है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, शिवजी एक महान संपादक और भाषा-विद थे। उन्होंने अनेक नवोदित साहित्यकारों को परिमार्जित कर चमकता हीरा बनाया। वे भोजपुर की रत्नगर्भा भूमि के गौरव-पुत्र थे।
वरिष्ठ लेखिका विभा रानी श्रीवास्तव, वरिष्ठ चिकित्सक डा निगम प्रकाश नारायण, इन्दुभूषण सहाय और शायर मोइन गिरीडीहवी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
डा चन्द्रशेखर आज़ाद, विजय कुमार सिन्हा, कवि पुरुषोत्तम मिश्र, मोहम्मद फ़हीम, आनन्द किशोर शर्मा, अमन वर्मा, दुःख दमन सिंह, अशोक कुमार, नन्दन कुमार मीत, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, रवींद्र कुमार सिंह आदि सुधी श्रोता उपस्थित थे।
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