विश्व मंचों पर भारत की भूमिका
डॉ राकेश कुमार आर्य
कभी गुटनिरपेक्ष देश के रूप में विश्व राजनीति में आगे बढ़ने वाला भारत एक फुसफुसिया जीव के रूप में जाना जाता था। यही कारण था कि जब पाकिस्तान ने हमसे सिंधु नदी का पानी मांगने की जिद की तो हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका निर्णय लेने के लिए वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष को अधिकार दे दिए। जिसने रीढविहीन भारत के साथ अन्याय करते हुए 20% पानी भारत को और 80% पानी पाकिस्तान को दे दिया।
देखिए ! पानी हमारा, नदी हमारी, क्षेत्र हमारा और इस सबके उपरांत भी हमको 20% पानी मिला, जबकि 80% पानी पाकिस्तान ले गया। 'अनुमान की गलती' करने वाले नेहरू 1947 में गांधी जी के साथ मिलकर यह अनुमान नहीं लगा पाए थे कि जब देश का विभाजन होगा तो कितने लोग पाकिस्तान की ओर से उठकर भारत की ओर चल पड़ेंगे ? इसी प्रकार उन्होंने एक बार फिर 'अनुमान की गलती' की और उनका यह अनुमान गलत निकला कि पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक के निर्णय से प्रसन्न होकर भारत के साथ मित्रता का व्यवहार करने लगेगा ?
आज का भारत आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर विश्व के बड़े देशों के लिए ईर्ष्या का पात्र बन चुका है। अमेरिका ने टैरिफ वृद्धि कर भारत को छेड़कर देख लिया है। उसके बाद उसने यह अनुमान लगा लिया है कि आज का भारत सक्षम भारत है और अपने राजनीतिक हानि लाभ को भली प्रकार जानता है। वह अपनी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए मजबूत निर्णय लेना भी जानता है। आज का भारत आदित्य अर्थात तेजस्वी भारत है। इसी आदित्य भारत के इस रूप से रूस, चीन और अमेरिका सहित सभी देश भली प्रकार परिचित हो चुके हैं। इसका परिणाम यह आया है कि विश्व के जी-7, नाटो, जी–20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ग्लोबल साउथ के सम्मान में वृद्धि हुई है। भारत इस समय ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में स्थापित हो चुका है। आज का सारा विश्व यह भली प्रकार जानता है कि भारत अपनी जिस परंपरागत वैदिक संस्कृति का ध्वजवाहक रहा है , उसमें मानव मात्र के प्रति सहिष्णुता का व्यवहार किया जाता है। यही कारण है कि दक्षिण एशिया सहित संसार के सभी देश इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि भारत जो कुछ कह रहा है, उसमें किसी प्रकार की कुटिल राजनीति नहीं हो सकती। यही कारण है कि विश्व मंचों पर भारत की विश्वसनीयता में वृद्धि हुई है। भारत की विश्वसनीयता में हुई इस वृद्धि से अमेरिका सहित सभी देश परिचित हैं। यही कारण है कि अमेरिका इस समय भारत के साथ चाहे जितनी गर्मी दिखा रहा हो, परंतु राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यह भारी प्रकार जानते हैं कि वह भारत को अब छूने तक की भी स्थिति में नहीं हैं।
भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भारत की विदेश नीति के मोर्चे पर अपना अपना सफल अभिनय कर रहे हैं। उनकी भाषा में अपेक्षित विनम्रता होती है , परन्तु राष्ट्रीय हितों को लेकर यदि कठोर शब्द बोलने आवश्यक दिखाई देते हैं तो ऐसा करने से भी वे चूकते नहीं हैं। अपने राष्ट्रीय हितों की इस प्रकार निर्भीकता से पैरोकारी करना प्रत्येक देश का अपना राष्ट्रीय मौलिक अधिकार है। परंतु विश्व की बड़ी शक्तियां यूएनओ की सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो पावर के आधार पर दूसरे देशों के इस प्रकार के राष्ट्रीय अधिकारों की हत्यारी बन चुकी थीं। उनके इस रूप से विश्व के छोटे और दुर्बल देश तंग आ चुके थे, ऐसे सभी देश इस समय भारत की ओर देख रहे हैं। जिससे भारत के बढ़ते वजन को देखकर बड़ी शक्तियां दुखी हैं। भारत ने प्रत्येक बड़ी शक्ति को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि हम अपनी राष्ट्रीय अस्मिता और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं कर सकते। हम बराबरी के स्तर पर बात करेंगे और बराबरी के स्तर पर ही अपनी बात को मनवाएंगे। केंद्रीय मंत्री संजय सेठ की इस बात को सभी ने गंभीरता से लिया है कि नया भारत शेर की तरह दहाड़ता है।
शक्तिशाली नेताओं की आंखों में आंख डालकर बात करता है। वास्तव में राजनीति का यही तकाजा होता है कि जब आप किसी बड़ी शक्ति के साथ बात कर रहे हों तो निर्भीकता के साथ अपने राष्ट्रीय हितों को प्रस्तुति देने में किसी प्रकार का संकोच न करें। अभी कुछ समय पहले अमेरिका ने भारत की इकोनॉमी को 'डेड' बताया था । उसके बाद उसे भारत की ओर से जिस प्रकार का उत्तर दिया गया है, उसे देखकर वह समझ गया है कि आज का भारत नजरों में नजरें डालकर बात करता है ,भारत के तेज को अमेरिका ने गंभीरता से अनुभव कर लिया है। अमेरिका इस बहम में रहता रहा है कि मैं दुनिया का सबसे बड़ा दादा हूं , अब उसके इस प्रकार के बहम को भारत ने तोड़ दिया है। इसी संदर्भ में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि कुछ देशों को भारत का तेजी से विकास पसंद नहीं आ रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान अमेरिका की दादागिरी की ओर संकेत करता है । जिसने हाल ही में भारत पर 50% आयात कर लगाकर भारत को दबाने का प्रयास किया है। रक्षा मंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बदलते और उभरते भारत को अब विश्व शक्ति बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। आज का तेजस्वी भारत ₹24000 करोड़ का रक्षा उत्पाद विश्व के अन्य देशों को निर्यात कर रहा है। आज के भारत ने यह संकल्प ले लिया है कि वह आतंकवादियों को उनका धर्म देखकर नहीं बल्कि कर्म देखकर निपटाएगा। प्रधानमंत्री मोदी भी कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत तेजी से एक विश्व अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो रहा है। पिछले 11 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर दसवें स्थान से पहले शीर्ष 5 में पहुंच गई है। शीघ्र ही यह शीर्ष की तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन जाएगी। इस प्रकार भारत अपनी उस स्थिति से बहुत दूर नहीं है जब भारत का रुपया अमेरिका के डॉलर की तरह दुनिया पर राज करेगा। यद्यपि इस स्थिति के लिए अभी भारत को कई प्रकार की अग्नि परीक्षाओं से गुजरना होगा । इन अग्नि परीक्षाओं में सबसे बड़ी परीक्षा है, देश के भीतर का माहौल शांत बनाए रखना। जिसके लिए भारत के नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी । यदि हमने मिलकर जीना नहीं सीखा और गृह युद्ध की स्थिति में फंस गए तो सब कुछ ध्वस्त भी हो सकता है।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं। )
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