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एनजीओ खातों में साइबर ठगी का गोरखधंधा: 8.33 करोड़ के फ्रॉड से सबक और सतर्कता की अपील

एनजीओ खातों में साइबर ठगी का गोरखधंधा: 8.33 करोड़ के फ्रॉड से सबक और सतर्कता की अपील

✍️ लेखक: मानस पुत्र संजय कुमार झा
(समाजशास्त्री, चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं अर्थशास्त्री)

(I)  डिजिटल युग और एनजीओ क्षेत्र की चुनौती

पिछले एक दशक में डिजिटल तकनीक ने समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक अवसर पैदा किए हैं। ऑनलाइन डोनेशन, बैंकिंग, ई-गवर्नेंस और पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन ने एनजीओ के कामकाज को गति दी है। लेकिन, जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ी, वैसे-वैसे इसके दुरुपयोग के खतरे भी बढ़े हैं।
मुजफ्फरपुर पुलिस द्वारा हाल ही में उजागर किया गया ₹8.33 करोड़ का साइबर फ्रॉड इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि “भलाई के नाम” पर चलने वाली संस्थाएं भी साइबर अपराधियों के निशाने पर हैं—या फिर उनके साथ मिलीभगत कर सकती हैं।

(II) घटना का विस्तृत विवरण

मामला: मधुबनी में पंजीकृत राम प्यारी नंदलाल सेवा संस्थान के बैंक खाते में विभिन्न राज्यों में हुई साइबर ठगी से अर्जित ₹8.33 करोड़ की रकम जमा हुई।

मुख्य तथ्य:


पंजीकरण: मधुबनी (बिहार)


बैंक खाता: एक्सिस बैंक


राशि: ₹8.33 करोड़


स्रोत: गेमिंग फ्रॉड, इन्वेस्टमेंट धोखाधड़ी, डिजिटल अरेस्ट जैसी साइबर ठगियों से एकत्र धन


गिरफ्तार आरोपी:


अभिषेक पांडेय (अमेठी, उत्तर प्रदेश)


कृष्णा कुमार सिंह (मधुबनी, बिहार)


विक्रम कुमार सिंह (मधुबनी, बिहार)


गुड्ड कुमार (मुजफ्फरपुर, बिहार)


मुख्य सरगना: प्रमोद चौधरी उर्फ प्रमोद सिंह (दिल्ली निवासी)

तकनीक: फर्जी आधार कार्ड, सिम कार्ड, बायोमेट्रिक स्कैनर, नकली एनजीओ मुहर और लेटरहेड

पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि गिरोह ने एनजीओ के नाम और दस्तावेजों का उपयोग करके बैंकिंग सिस्टम को गुमराह किया। कमीशन बंटवारे में विवाद के बाद पूरा मामला खुला—जिससे यह भी साबित होता है कि कई बड़े अपराध केवल आंतरिक टकराव के कारण ही सामने आते हैं।

(III) महत्वपूर्ण प्रश्न जो उठते हैं

  • एनजीओ का खाता साइबर माफिया के हाथों में कैसे पहुँचा?
  • क्या संस्था के पदाधिकारियों को इस लेन-देन की जानकारी थी?
  • क्या बैंक द्वारा एनजीओ के KYC दस्तावेजों की सही से पुष्टि की गई थी?
  • क्या संस्था के पदाधिकारी मात्र “नामधारी” थे या सक्रिय रूप से संलिप्त थे?
  • यदि कमीशन विवाद नहीं होता, तो क्या यह अपराध सामने आता?
  • ये प्रश्न केवल एक मामले तक सीमित नहीं हैं—बल्कि पूरे एनजीओ सेक्टर के लिए चेतावनी हैं।

(IV) एनजीओ संचालकों के लिए सीख और सावधानियां

1. खाता “किराये” पर न दें

एनजीओ का बैंक खाता किसी तीसरे पक्ष को सौंपना गैरकानूनी है और सीधे-सीधे मनी लॉन्ड्रिंग व धोखाधड़ी के दायरे में आता है।


करंट अकाउंट का उपयोग केवल संस्था के घोषित उद्देश्यों के लिए करें।


खाते में आने-जाने वाले हर लेन-देन का वैध कारण होना चाहिए।
2. सख्त KYC और दस्तावेजी सत्यापन


बैंक में खाता खोलते समय सभी पदाधिकारियों (अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष) की पहचान की सत्यापित प्रतियां जमा करें।


आधार, पैन, पते के प्रमाण और पंजीकरण प्रमाणपत्र अद्यतन रखें।


पुराने पदाधिकारियों के बदलने पर बैंक रिकॉर्ड तुरंत अपडेट करें।
3. मुहर और लेटरहेड की सुरक्षा


एनजीओ की मुहर, पासबुक, चेकबुक और लेटरहेड को सुरक्षित स्थान पर रखें।


इनके प्रयोग के लिए स्पष्ट SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) बनाएं।


किसी बाहरी व्यक्ति को इन तक पहुंच न हो।
4. नियमित ऑडिट और बैंक स्टेटमेंट की जांच


हर माह बैंक स्टेटमेंट की समीक्षा करें।


संदिग्ध लेन-देन पर तुरंत बैंक और पुलिस को सूचित करें।


सालाना ऑडिट किसी रजिस्टर्ड चार्टर्ड अकाउंटेंट से करवाएं और रिपोर्ट सार्वजनिक करें।
5. बैंक और आयकर विभाग से सतत संवाद


e-filing पोर्टल पर एनजीओ की जानकारी समय-समय पर अपडेट करें।


किसी भी असामान्य ट्रांजेक्शन पर तुरंत लिखित रूप से बैंक मैनेजर और IT विभाग को सूचित करें।
(V) सरकार और प्रशासन के लिए सिफारिशें


डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम लागू हो
एनजीओ पंजीकरण के बाद बैंक खाते से पहले डिजिटल और फिजिकल वेरिफिकेशन अनिवार्य किया जाए।


विशेष निगरानी तंत्र
एनजीओ खातों में बड़े पैमाने पर आने-जाने वाले लेन-देन पर AI आधारित निगरानी हो।


पारदर्शी पोर्टल
एक राष्ट्रीय पोर्टल बने जिसमें सभी एनजीओ की पंजीकरण स्थिति, गतिविधियां और वित्तीय विवरण सार्वजनिक हों।


डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण
एनजीओ संचालकों के लिए साइबर सुरक्षा और डिजिटल फाइनेंशियल मैनेजमेंट का प्रशिक्षण अनिवार्य हो।

कड़ी सजा का प्रावधान
एनजीओ खातों के दुरुपयोग पर मनी लॉन्ड्रिंग, आईटी एक्ट और IPC की धाराओं के तहत सख्त सजा दी जाए।

(VI) निष्कर्ष – साख बचाना ही सबसे बड़ी पूंजी

यह घटना केवल एक एनजीओ या एक जिले की नहीं है—यह पूरे सेक्टर की साख पर चोट है। सामाजिक सेवा का उद्देश्य तभी सफल होगा, जब उसमें पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिकता बनी रहे।
एनजीओ संचालकों को समझना होगा कि उनका बैंक खाता सिर्फ वित्तीय लेन-देन का साधन नहीं, बल्कि संस्था की साख और भरोसे का प्रतीक है।

(VII) सभी एनजीओ संचालकों के लिए त्वरित चेकलिस्ट

✔ खाता केवल ट्रस्टेड पदाधिकारियों के हस्ताक्षर से संचालित हो।


✔ बैंक लेन-देन का पूरा रिकॉर्ड और रसीदें संधारित करें।


✔ संस्था के उद्देश्य के अनुरूप ही व्यय करें।


✔ मुहर, पासबुक, चेकबुक सुरक्षित रखें।


✔ आय-व्यय रिपोर्ट सालाना सार्वजनिक करें।


✔ किसी संदिग्ध व्यक्ति से दस्तावेज साझा न करें।


✔ बैंक और IT विभाग से नियमित संवाद बनाए रखें।

🙏 अपील:

देशभर के सभी एनजीओ, ट्रस्ट और सामाजिक संगठन अपने खातों, दस्तावेजों और साख को बचाने के लिए सतर्क रहें। माफियाओं के जाल में फंसना केवल कानूनी अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक विश्वासघात है।

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