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तेरे लिए जिए हम मरे हम।

तेरे लिए जिए हम मरे हम।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
तेरे लिए जिए हम मरे हम।
शम् ए हयात जले हम गले हम।
गुंचे तेरे बाग के मुस्किराएँ,
बनके गुहर शजर से झरे हम।
सुर्माफरोशी शह्रे नाबीना में,
करते जहालत बनते खरे हम।
दरपए जाँ समन्दर जितना रहे,
जाँफिशानी से मगर तरे हम।
जोहते ही रास्ता जदीदान,
रह गए आस्ताँ पे खड़े हम।
जानने में जिंदगी की कला,
रह गए धरे- के -धरे हम ।

(दरपए जाँ =प्राण लेने की घात में; आस्ताँ =चौखट; शह्रे नाबीना=अंधों का नगर; जदीदान =रात दिन )
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