अस्तित्व का संघर्ष
लड़ते हो समझते हो।संघर्ष को दिखाते हो।
अस्तित्व कैसे बना रहेगा
चित्र उसका दिखाते हो।।
दौर एक सा चलता नही है।
इसलिए रुकना पड़ता है।
करके आत्म मंथन फिर से।
चलना धीरे धीरे पड़ता है।।
हँसते रोते उछल कूंदकर।
चलना सबको पड़ता है।
जीवन के इस चक्र को।
पार तो करना पड़ता है।।
एक लड़ाई लड़ना है हमको।
अस्तित्व अपना बचाने को।
इसलिए चलना पड़ सकता है।
कांटे भरे आगे के पथ पर।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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