"प्रकाश की भाषा: तर्क नहीं, तेजस्विता"
सूर्य कभी अंधेरों से तर्क नहीं करता — वह बस उजाला फैलाता है। यह सरल-सा वाक्य जीवन की एक गूढ़ सच्चाई को उद्घाटित करता है। जब हम अपने चारों ओर नकारात्मकता, विरोध या आलोचना का अंधकार देखते हैं, तो अक्सर हमारा पहला प्रयास होता है — उत्तर देना, तर्क करना, अपनी बात साबित करना। लेकिन क्या अंधकार को शब्दों से पराजित किया जा सकता है? नहीं। अंधकार का एक ही उत्तर है — प्रकाश।
प्रकाश संवाद नहीं करता, वह सिर्फ उपस्थित होता है। ठीक वैसे ही, हमारी तेजस्विता, हमारे कर्म, हमारे विचारों की निर्मलता — यही नकारात्मकता का सर्वोत्तम प्रत्युत्तर हैं। तर्क सीमित हैं, पर तेजस्विता निरंतर प्रभाव छोड़ती है। जीवन में जब भी विरोध का सामना हो, तब शब्दों की तलवार के बजाय आचरण की रोशनी से रास्ता बनाइए। क्योंकि अंततः, सूरज की तरह वही चमकता है जो खुद रोशनी बन जाता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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