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"आत्म-संवाद की शक्ति"

"आत्म-संवाद की शक्ति"

कभी-कभार खुद को समझा लेना हार नहीं होता, बल्कि यह आत्म-संवाद की वह कला है जो हमें टूटने से बचाती है।

जब जीवन के संघर्षों में हम थक जाते हैं, जब हालात बार-बार हमारी सहनशीलता की परीक्षा लेते हैं — तब अपने आप से एक मधुर संवाद करना, खुद को धैर्य बंधाना, अपनी सीमाओं को स्वीकार करना कोई पराजय नहीं होती। बल्कि यह उस परिपक्वता की निशानी है जिसमें हम अपने मन को समझते हैं, उसे ढाढ़स बंधाते हैं।

खुद को समझा लेना मतलब परिस्थितियों से पलायन नहीं, बल्कि उस क्षण को स्थिरता और संतुलन से जीना है। यह उस साहस का प्रतीक है जहाँ हम हार को स्वीकार नहीं करते, बल्कि उसे एक अवसर के रूप में देखते हैं — खुद को और बेहतर समझने का, स्वयं को सहेजने का।

यह आत्मसम्मान की सबसे सुन्दर परिभाषा है क्योंकि यह दर्शाता है कि हम खुद से प्रेम करते हैं, अपनी भावनाओं का मान रखते हैं और हर परिस्थिति में खुद के पक्ष में खड़े रहते हैं।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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