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सभी ग्रहों की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय

सभी ग्रहों की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय

हर हर महादेव!!

जन्म कुंडली में महादशा का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी न किसी ग्रह की महादशा से गुजर रहा होता है। नवग्रहों की महादशा में नवग्रहों की अंतर्दशा भी चलती है। किंतु महादशा का विशेष महत्व होता है। यदि किसी की जन्मकुंडली में कितने भी बड़े राजयोग हों अथवा धनवान योग हों जब तक कोई अनुकूल महादशा नहीं चलती तब तक उन राज योगों का शुभ फल प्राप्त नहीं होता। ठीक उसी प्रकार यदि जन्म कुंडली में किसी अशुभ ग्रहों की दशा चल रही हो अथवा कोई भी ग्रह हो यदि अशुभ स्थिति में जन्म कुंडली में बैठे हों और उस ग्रह की महादशा चल रही हो तो व्यक्ति के जीवन में अनेकों प्रकार की परेशानियां आने लगती हैं। यहां तक कि मारकेश ग्रहों की महादशा में अकाल मृत्यु तक हो जाती है। ऐसी स्थिति में हमें अपनी जन्म कुंडली के ग्रहों की महादशा का बहुत ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई अशुभ ग्रह की महादशा चल रही हो तो उसकी शांति अवश्य करना चाहिए। जिससे कि सुरक्षा प्राप्त हो सके। वैसे तो ग्रहों की महादशा के अशुभ फलों से बचने के कई प्रकार के उपाय होते हैं। किंतु यहां पर हम आपको कुछ सरल उपाय बताने जा रहे हैं। जिनका प्रयोग करके ग्रहों की अशुभ महादशा के अशुभ प्रभावों से सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

सूर्य की महादशा में अशुभ फलों से बचने के उपाय


सूर्य की महादशा 6 वर्षों की होती है।

जन्म कुंडली में यदि सूर्य नीच राशि में बैठे हों या छठे आठवें, बारहवें घर में बैठे हो,राहु केतु या शनि से पीड़ित हों तो ऐसी स्थिति में सूर्य अशुभ फल प्रदान करते हैं। जिसके कारण हड्डियों के रोग, हृदय रोग, मान सम्मान में कमी, सफलता प्राप्ति में बाधा, एवं पिता को कष्ट इत्यादि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।

ऐसी स्थिति में प्रतिदिन सूर्य भगवान को जल अर्पित करना चाहिए। तांबे के कलश में लाल चंदन, काला तिल, हल्दी पाउडर, लाल या पीला फूल, रक्षा सूत्र, दो बूंद शहद इत्यादि मिलकर गायत्री मंत्र अथवा सूर्य के मंत्र से सूर्य भगवान को जल अर्पित करना चाहिए। संभव हो तो रविवार का व्रत रखें।सूर्य षष्ठी व्रत करें अर्थात छठ का व्रत करें। प्रत्येक रविवार को आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। लाल वस्त्र, लाल फल, गुड इत्यादि का दान करें। पिता की सेवा करें। पिता का सम्मान करें। केसर का तिलक अपने मस्तक पर लगाएं।

ऐसा करने से सूर्य द्वारा उत्पन्न अशुभ फल समाप्त होकर शुभ फलों की प्राप्ति होती है।


चंद्रमा की महादशा में अशुभ फलों से सुरक्षा प्राप्ति के उपाय

चंद्रमा की महादशा 10 वर्षों की होती है।

जन्म कुंडली में यदि चंद्रमा छठे, आठवें या बारहवें घर में बैठे हों अथवा नीच राशि के हों, शनि राहु केतु से पीड़ित हों तो 21 सोमवार तक लगातार अथवा सोमवार से शुरू करके लगातार 21 दिनों तक भगवान शिव के मंदिर में चांदी के कलश में आधा दूध ,आधा जल, चार बूंद गंगाजल, चार बूंद शहद और एक चम्मच सफेद तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें और इस मंत्र का 11 या 21 बार वहीं पर पाठ कर लें।

*ऊं श्वेतांगम श्वेत वस्त्रम श्वेत चंदन विभूषितम।

नीलकंठम चंद्राय धरे देवादि देवम् नमोस्तुते।*

उसके बाद अपनी तर्जनी एवं अंगूठे को मिलाकर बंद कर लें और मध्यमा, अनामिका,कनिष्ठा तीन उंगलियों से शिवलिंग का स्पर्श करके अपने मस्तक पर त्रिपुंड तिलक की तरह उसे लगा लें। अपनी माता का और स्त्रियों का सम्मान करें। सफेद वस्त्र, चावल, दूध इत्यादि का दान करें।

ऐसा करने से चंद्रमा की महादशा में मिलने वाले दुखद और खराब फल समाप्त हो जाते हैं। व्यक्ति सुरक्षित हो जाता है।

मंगल की महादशा में अशुभ प्रभावों से बचने के उपाय

मंगल की महादशा 7 वर्षों की होती है।

जन्म कुंडली में मंगल यदि नीच राशि में बैठे हों अथवा छठे, आठवें या बारहवें घर में बैठे हों, राहु केतु या शनि से पीड़ित हों तो ऐसी अवस्था में मंगल अशुभ फल प्रदान करते हैं। मंगल के इन अशुभ फलों से बचने के लिए प्रतिदिन श्री हनुमान जी की उपासना, साधना, पूजा करना बहुत श्रेष्ठ होता है।

मंगल की महादशा में एक विशेष प्रयोग करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है।


नौ मंगलवार तक लगातार नौ गुलाब के फूल लेकर एक-एक फूल को अपने मस्तक से स्पर्श कराते हुए एक जगह इकट्ठा कर लें। उन फूलों को श्री हनुमान जी के श्री चरणों में समर्पित कर दें। साथ ही पीले सिंदूर और चमेली के तेल का लेप श्री हनुमान जी के चरणों में समर्पित कर दें। ऐसा नौ मंगलवार को लगातार करें। नवें मंगलवार को बजरंगबली को चोला चढ़ा दें। बजरंगबली के चरणों का सिंदूर का तिलक अपने मस्तक पर अपने मध्यमा अनामिका और कनिष्ठा से त्रिपुंड की तरह अपनी मस्तक पर लगा लें। नौ हनुमान चालीसा का पाठ कर लें। फिर कुछ दिन रोक कर पुनः नौ मंगलवार तक ऐसा उपाय करना चाहिए। इस प्रकार तीन बार 9 मंगलवार का यह प्रयोग करें। अपने भाइयों के साथ अच्छा व्यवहार करें।लाल फल, लाल वस्त्र, गुड़ इत्यादि का दान मंगलवार के दिन करते रहें।

ऐसा करने से मंगल ग्रह के शुभ फल प्राप्त होते हैं।

बुध ग्रह की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय


बुध की महादशा 17 वर्षों की होती है।

जन्म कुंडली में बुध ग्रह यदि नीच राशि में बैठे हों अथवा छठे, आठवें या बारहवें घर में बैठे हों अथवा राहु केतु या शनि से पीड़ित हों तो ऐसी अवस्था में बुध ग्रह अशुभ फल प्रदान करने लगते हैं। जिसके कारण आर्थिक हानि, वाणी और बुद्धि में परेशानी, चर्म रोग, मित्रों से, रिश्तेदारों से रिश्तो में परेशानियां देखने को मिलती है।

बुध की महादशा में भगवान श्री गणेश की पूजा करने से बुध ग्रह शुभ फल प्रदान करते हैं। इसके साथ ही बुध ग्रह की अनुकूलता के लिए एक विशेष प्रयोग करना भी अत्यंत लाभदायक होता है।

लगातार 14 बुधवार तक भगवान श्री गणेश जी के मंदिर में पांच पीले फूल लेकर जाएं। एक-एक करके सभी फूलों को अपने मस्तक से लगाकर भगवान श्री गणेश किसी चरण में चढ़ा दें। साथ में थोड़ा दूर्वा भी अर्पित कर दें‌। गणेश जी के 12 नामों का जाप कर लें और मोदक का भोग लगा दें। यानि बेसन के लड्डू का भोग लगा दें। प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें अथवा इस पाठ को सुनें।

एक वर्ष में 14 बुधवार यह दिव्य महाप्रयोग कर लिया जाए तो पूरा वर्ष शुभ फलदायक हो जाएगा। अपने रिश्तेदारों और मित्रों के साथ अच्छा व्यवहार करें। बुआ, मौसी और साली को कुछ उपहार दिया करें। बुधवार के दिन किन्नर को हर वस्त्रों का दान करें अथवा किन्नर को कुछ रूपए पैसे देकर आशीर्वाद लें।

ऐसा करने से बुध ग्रह शुभ फल प्रदान करने लगते हैं।

बृहस्पति की महादशा में अशुभ फलों से बचने के विशेष उपाय


वैसे तो बृहस्पति ब्रह्मांड के सर्वाधिक शुभ ग्रह हैं। बृहस्पति की महादशा 16 वर्षों की होती है।

जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति नीच राशि में बैठे हों अथवा छठे आठवें या बारहवें घर में पीड़ित अवस्था में बैठे हों, राहु केतु या शनि से पीड़ित हों तो ऐसी स्थिति में देवगुरु बृहस्पति अशुभ फल प्रदान करने लगते हैं। जिसके कारण पाचन क्रिया में परेशानी आने लगती है। पेट से संबंधित रोग, अंतड़ियों से संबंधित रोग, लीवर की समस्या, जौंडिस, टाइफाइड रोग होने लगते हैं। मोटापा बढ़ने लगता है। थायराइड की समस्या होने लगती है। डायबिटीज अथवा शुगर की बीमारी होने लगती है।

बृहस्पति की महादशा में अशुभ फलों से बचने के लिए श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है। पीले वस्त्रों, पीले फल, चने की दाल, सोना, गेहूं इत्यादि का दान करने से राहत मिलती है। पीतल के कलश में जल भरकर हल्दी पाउडर, पीले फूल, चने की दाल और गुड़ मिलाकर गुरुवार के दिन केले के पौधे में अर्घ्य समर्पित करें।

इसके अलावा एक विशेष उपाय करने से भी बृहस्पति ग्रह शुभ फल प्रदान करने लगते हैं।

16 गुरुवार तक लगातार गुरुवार के दिन खड़ी हल्दी 12 की संख्या में ले लें।एक एक हल्दी को अपने मस्तक से स्पर्श करा कर पीले धागे में तीन तीन गांठ लगाकर बांधकर एक माला बना लें।पुनः उस माला को अपने मस्तक से स्पर्श कर लें और उसे माता बगलामुखी के मंदिर में 12 पीले फूल और बेसन के लड्डू के भोग के साथ माता के चरणों में समर्पित कर दें।

साथ ही भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें अथवा पाठ सुन लें। 21 गुरुवार तक भगवान विष्णु को तुलसी की माला समर्पित करें।

शुक्र की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय

शुक्र की महादशा 20 वर्षों के होती है। जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह यदि नीच राशि में बैठे हों अथवा छठे या आठवें घर में बैठे हों अथवा शनि राहु केतु से पीड़ित हों तो व्यक्ति के जीवन में धन का अभाव, आर्थिक समस्याएं, सुखों में कमी और दांपत्य जीवन में कष्टों‌ का सामना करना पड़ता है। बारहवें घर में शुक्र शुभ फलदायक होते हैं।

यदि ऐसी स्थिति में शुक्र ग्रह विराजमान हों और शुक्र ग्रह की महादशा में दुख और परेशानियां आ रही हों तो मां दुर्गा की उपासना करने से तुरंत लाभ होता है। शुक्र की महादशा में माता महालक्ष्मी की विशेष पूजा आराधना करने से भी शुक्र ग्रह शुभ फल प्रदान करने लगते हैं। प्रतिदिन श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए। यदि संभव हो तो कनकधारा स्तोत्र का भी पाठ करें। शुक्र की महादशा में विशेष शुभ फलों की प्राप्ति के लिए यह महाप्रयोग करना अत्यंत लाभदायक होता है।

21 शुक्रवार तक लगातार देसी घी की 10 पूरियां बनाकर और दूध, चावल, काजू, किशमिश, बादाम गड़ी(सूखा नारियल) और मखाना मिलाकर खीर बनाएं। घर के मंदिर में माता महालक्ष्मी को भोग लगाकर माता महालक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। उसके बाद उस खीर पुरी को प्रसाद के रूप में पूरा परिवार मिलकर खा लें।

21वें शुक्रवार को सफेद, गुलाबी या आसमानी रंग की एक साड़ी, ढाई सौ ग्राम दूध की बर्फी और 70 रुपए नगद शाम के समय अपने मस्तक से स्पर्श करा कर किसी विधवा वृद्ध स्त्री को दान कर दें।

फिर कुछ दिन रुक कर वापस 21 शुक्रवार का यह प्रयोग कर लें। 21 शुक्रवार का यह प्रयोग तीन बार करें। ऐसा करने से शुक्र ग्रह अत्यंत शुभ फल प्रदान करते हैं।

शनि की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय

शनि की महादशा 19 वर्षों की होती है जन्म कुंडली में यदि शनि ग्रह नीच राशि में अथवा चंद्रमा के साथ अथवा राहु केतु के साथ अथवा शुक्र के साथ अथवा चौथे आठवें या 12 में घर में हो अथवा शनि की साडेसाती शनि की ढैया अथवा पनौती शनि की दशा चल रही हो तो जीवन में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है शारीरिक मानसिक आर्थिक और पारिवारिक रूप से बेहद संघर्ष करना पड़ता है कई बार भयानक दुर्घटनाओं का भी सामना करना पड़ता है ऐसी स्थिति में शनि देव के सुप्रभायों से बचने के लिए यह विशेष प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।

आठ शनिवार तक लगातार आठ गुलाब के फूल लेकर एक-एक फूल को अपने मस्तक से स्पर्श कराते हुए एक जगह इकट्ठा कर लें। उन फूलों को श्री हनुमान जी के श्री चरणों में समर्पित कर दें। साथ ही पीले सिंदूर और चमेली के तेल का लेप श्री हनुमान जी के चरणों में समर्पित कर दें। ऐसा आठ शनिवार को लगातार करें। आठवें शनिवार को बजरंगबली को चोला चढ़ा दें। बजरंगबली के चरणों का सिंदूर का तिलक अपने मस्तक पर अपने मध्यमा अनामिका और कनिष्ठा से त्रिपुंड की तरह अपनी मस्तक पर लगा लें। आठ हनुमान चालीसा का पाठ कर लें। फिर कुछ दिन रोक कर पुनः आठ शनिवार तक ऐसा उपाय करना चाहिए। इस प्रकार तीन बार आठ शनिवार का यह प्रयोग करें

राहु की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों को नष्ट करने का उपाय

राहु की महादशा 18 वर्षों की होती है। जन्म कुंडली में राहु चौथे, आठवें या बारहवें घर में बैठा हो अथवा किसी भी ग्रह के साथ बैठा हो तो अशुभ फलदायक बन जाता है। राहु की महादशा में भ्रम उत्पन्न होता है। व्यक्ति सदैव चिंतित रहता है। अनेकों प्रकार की गलतियां करता रहता है। 18 वर्षों में व्यक्ति इतनी अधिक गलतियां कर बैठता है, जिस पर एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। राहु की महादशा में व्यक्ति अपमानित होता है। व्यक्ति के स्वभाव में चिड़चिड़ापन, क्रोध और जिद की मात्रा बढ़ जाती है। जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। आर्थिक तंगी हो जाती है। कर्ज की अधिकता बढ़ जाती है। घर परिवार में झगड़े झंझट और कलह का वातावरण सदैव बना रहता है। स्वास्थ्य भी खराब रहता है। बुरी संगत, बुरी आदत पड़ जाती है। झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है। शराब पीने की और मांसाहार करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। अधिकतर नशे की लत पड़ जाती है। रोजगार व्यवसाय खराब हो जाते हैं। नौकरी छूट जाती है। बड़ा भयानक मानसिक तनाव होता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि राहु के अशुभ प्रभाव में आकर व्यक्ति हत्या कर देता है अथवा आत्महत्या कर लेता है। ऐसी स्थिति में भगवान शिव की विशेष पूजा करनी चाहिए। साफ सुथरा स्वच्छ रहना चाहिए। प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। प्रतिदिन पहला आहार तुलसी का पत्ता होना चाहिए। काले रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए। जप तप साधना करना चाहिए।

ऐसी स्थिति में राहु की शांति के लिए एक विशेष प्रयोग करना चाहिए जिससे राहत महसूस होती है।

आधा मीटर काला वस्त्र ले लें।उसके ऊपर एक मुट्ठी काली उड़द को अपने मस्तक से स्पर्श करा कर उसे काले कपड़े पर रख दें। एक देसी शराब (बदबूदार शराब) की बोतल और एक-एक रुपए के 13 सिक्के रखकर गठरी बांधकर बाएं हाथ में रखकर पश्चिम या दक्षिण की तरफ मुंह करके अपने मस्तक से स्पर्श कराकर गोधूलि बेला में 13 बार एंटी क्लाकवाइज घूमाकर जमीन पर ना रखें। उसे किसी थैली में रख कर टेबल पर रखें और उसे ले जाकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें। चार शनिवार यदि यह प्रयोग किया जाए तो राहु का अशुभ फल समाप्त हो जाता है।

अथवा आटे की 40 गोलियां बना लें और अपने मस्तक से एक-एक गोली को स्पर्श कराते हुए बहते हुए पानी में डाल दें। ऐसा चार शनिवार लगातार करें। ऐसा उपाय करने पर भी राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है।

केतु की महादशा में मिलने वाले अशुभ फलों से बचने के उपाय


केतु की महादशा 7 वर्षों की होती है। केतु यदि जन्म कुंडली में चौथे, आठवें या बारहवें घर में बैठे हों अथवा किसी नीच के ग्रह के साथ बैठे हो, मारकेश ग्रह के साथ बैठे हों अथवा सूर्य, चंद्रमा अथवा शनि के साथ बैठे हों तो बेहद कष्टदायक बन जाते हैं। अनेकों प्रकार की गुप्त समस्याएं देते हैं। गुप्त रोग से लेकर गुप्त धन हानि से लेकर गुप्त शत्रुओं से परेशानियां बढ़ा देते हैं।

केतु की अशुभ महादशा में मूत्र संबंधी रोग परेशान करते हैं‌। किडनी और शुगर के रोग की संभावना बढ़ जाती है। रीढ़ की हड्डियों में कष्ट होता है। स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम होती है। पैरों में कष्ट होता है। हड्डियों में किसी प्रकार की तकलीफ आ जाती है।

केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अपने दोनों कानों में छेद करवा कर सोने की बाली पहन लेना चाहिए। इससे केतु अशुभ फल देना बंद कर देते हैं। प्रत्येक गुरुवार को किसी भी मंदिर में केले का दान करें। अपनी इच्छा के अनुसार कितनी भी संख्या में केले का दान कर सकते हैं। माता छिन्नमस्तिका देवी की पूजा करनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त केतु ग्रह के अशुभ फलों को शांत करने के लिए एक विशेष प्रयोग करना चाहिए।

सात शनिवार तक लगातार कुत्ते को रोटी पर शहद लगाकर या ब्रेड पर शहद लगाकर खिला दें।

एक सस्ता कंबल खरीद कर लाएं। गुरुवार की रात को उसे अपने सिरहाने रखकर सो जाएं। फिर शनिवार के दिन किसी कुष्ठ रोगी को अथवा किसी वृद्ध व्यक्ति को वह कंबल अपने हाथों से ओढ़ा दें। ऐसा करने से केतु के अशुभ प्रभाव के कारण मिलने वाली असफलताओं और दुर्घटनाओं का शमन हो जाता है। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

इति शुभमस्तु!!

लेखक:रवि शेखर सिन्हा उर्फ आचार्य मनमोहन। ज्योतिष मार्तंड एवं जन्म कुंडली विशेषज्ञ।
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