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वो हूँ मैं

वो हूँ मैं

             डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
गुज़ार   चूंकि   होंगी  तुमने,
कितनी भयानक रातें मगर,
काट  ना  सकोगे  एक रात,
     वो एक रात हूँ मैं..!

दोस्तों  के  संग  बिताये  होंगे, 
कितने  ही  खूबसूरत    लम्हें,
मगर जो ताउम्र भुला न सको, 
    वो एक आपात हूँ मैं...!    
    
धौंस  दिखाई  होगी  तुमने,
कइयों  को अपनी बातों से,
मगर,  दिल   पर  जो  लगे, 
     वो एक बात हूँ मैं...!

  टकराते   रहे      होगे   तुम,
  कितने  ही  लोगों  से  मगर, 
  बयां करके मिट्टी में मिलाता,
       वो एक जात हूं मैं..!

कइयों के दामन थामे होंगे,
किसीने रक्षा नहीं की होगी,
पर सब की रक्षा को तत्पर, 
    वो एक हाथ हूँ मैं..!  
  
       मौलिक रचना 
            गया जी
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