बिहार के 'मिनी देवघर' की दुर्दशा से उठे सवाल: धार्मिक न्यास बोर्ड के चेयरमैन की नियुक्ति पर जनता में आक्रोश
बैंकठपुर मंदिर पटना से विशेष संवाददाता सुधांशु कुमार पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट |
बिहार के वैशाली जिले में स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक 'मिनी देवघर' कहे जाने वाले बैंकठपुर मंदिर की दशा इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। यह मंदिर, जो अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता के कारण श्रद्धालुओं का प्रमुख आस्था केंद्र रहा है, आज बदहाल व्यवस्था और अनदेखी के कारण अपनी गरिमा खोता जा रहा है।
मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीनस्थ है और इसके पूर्व न्यासी अध्यक्ष रहे पूर्व विधान पार्षद श्री रणवीर नंदन के कार्यकाल को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। मंदिर से जुड़े कई स्थानीय श्रद्धालुओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि श्री नंदन के कार्यकाल में न केवल मंदिर की व्यवस्था चरमरा गई, बल्कि मंदिर की पुरातन प्रतिष्ठा और श्रद्धालुओं की आस्था को भी भारी आघात पहुंचा।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर में न तो समुचित साफ-सफाई रही, न पुजारियों और सेवायतों के लिए कोई मानवीय व्यवस्था। मंदिर परिसर में गंदगी, टूटी-फूटी दीवारें, खराब लाइटिंग और बेसुध सुरक्षा व्यवस्था, इन सबने मिलकर मंदिर को अव्यवस्था का उदाहरण बना दिया।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिनके कार्यकाल में एक ऐतिहासिक मंदिर की यह दुर्दशा हुई, उन्हें अब पूरे राज्य के मठ-मंदिरों के विकास और देखभाल की जिम्मेदारी कैसे सौंपी जा सकती है? हाल ही में बिहार सरकार और भाजपा द्वारा श्री रणवीर नंदन को राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जिससे लोगों में गहरा आक्रोश है।
एक स्थानीय समाजसेवी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा –
"बैंकठपुर मंदिर की दुर्दशा देखकर समझा जा सकता है कि अब बिहार के बाकी मठों और मंदिरों का भविष्य क्या होगा। यह केवल एक नियुक्ति नहीं, एक ‘धार्मिक अपराध’ है।"
प्राप्त जानकारी के अनुसार, श्री नंदन के कार्यकाल में मंदिर में ना तो कोई संरचनात्मक विकास कार्य हुआ, ना किसी प्रकार का पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन देखा गया। श्रद्धालुओं की शिकायतें लगातार अनसुनी की गईं और पूजा-पाठ की परंपराएं भी कई बार बाधित हुईं।
बिहार की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा व संरक्षण एक संवेदनशील विषय रहा है। राज्य के अधिकांश मंदिर, मठ और धार्मिक स्थल संवेदनशील धार्मिक आस्थाओं से जुड़े हैं, जिनकी देखभाल के लिए एक प्रतिबद्ध, ईमानदार और पारदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता है।
इस नियुक्ति को लेकर अब कई संगठनों और संत समुदायों ने भी सरकार से पुनर्विचार की मांग की है। उनका कहना है कि धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष पद पर किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति होनी चाहिए, जो न केवल धर्म की गहराई को समझे, बल्कि मंदिरों के संरक्षण और श्रद्धालुओं की भावना के अनुरूप कार्य भी करे।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार सरकार और भाजपा इस गंभीर चिंता को लेकर क्या रुख अपनाते हैं। फिलहाल तो बैंकठपुर मंदिर की बदहाली बिहार के अन्य मठ-मंदिरों के भविष्य की अशुभ आहट की तरह देखी जा रही है।
'दिव्य रश्मि न्यूज़' के लिए विशेष रिपोर्ट
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