शेष पथ का संकल्प
चल रहा हूँ —एक निर्वीर्य, निर्जन पथ पर,
शब्द खो चुके हैं स्वर की आभा,
हृदय में धधकती चुप्पी
अब भी जला रही है कोई व्रत-ज्योति।
कौन कहे, यह थकान है या तप?
कहीं भीतर —
दबा है वह अंतिम विश्राम,
जहाँ जीवन
अपने ही भार से मुक्त हो —
उत्तर नहीं चाहिए वहाँ,
न प्रमाण, न प्रशंसा।
पर वह अभी दूर है,
जैसे आत्मा का उजास
मिट्टी की शृंखला में बंधा हो।
नहीं, अभी नहीं रुका जा सकता —
कुछ आँसू अभी पोंछने हैं,
कुछ टूटी पीठों को
शब्दों की ढाल देनी है।
कहीं कुछ विश्वास हैं,
जो मेरे कर्म की छाया माँगते हैं।
नींद से पहले
बाँटना है वह जागरण
जो मैंने जिया है —
संघर्ष से, धैर्य से, अस्वीकार से।
और पाटनी हैं वे दूरियाँ,
जो अपने और परायों के बीच
संवेदना को चुपचाप खंडित करती आई हैं।
थका हूँ —
पर यह थकान
मेरे जीवन की कथा का अंत नहीं।
जीवन अब भी शेष है —
और जहाँ जीवन है,
वहाँ जीवन के उत्तरदायित्व भी।
यह देह — केवल साधन,
साँसों का रथ —
जिसे चलना है यज्ञभूमि तक,
जहाँ आत्मा
अपने श्रम को समर्पित कर
शून्य से प्रकाश ले सके।
मेरा चलना —
एक साधु की साधना है,
जिसमें शब्द नहीं,
केवल निःशब्द प्रतिज्ञा बोलती है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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