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कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार

कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार

मुखमंडल कमल प्रतिष्ठा,
दृष्टि अंतर प्रीत अथाह ।
भाव भंगिमा चारु चंद्र सम,
उभार बिंदु अमिय प्रवाह ।
चाल ढाल चंचल मयूरी,
नयनन मादकता विस्तार ।
कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार ।।


परिधान अंतर कुसुम सौरभ,
आत्मिकता चरम बिंदु ओर ।
सरस मधुर संवाद संप्रेषण,
शर्म संकोच नैसर्गिक छोर ।
रूप अनुपमा सम्मोहिनी,
हिय प्रिय मिलन उत्कंठा अपार ।
कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार ।।


बिंदी सिंदूर छटा मनोरम,
चूड़ी पायल मधुर खनक ।
अधर मधु रस अर्णव,
शब्द संकेत खुशियां जनक ।
कमनीय उषा अंग प्रत्यंग,
निर्झर मुस्कान नेह आधार ।
कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार ।।


केश लहर निशि वरण,
शील सौम्य हाव भाव ।
अंतःकरण प्रणय हिलोर,
मस्त मलंग जीवन नाव ।
देह सौष्ठव गंगा सा निर्मल,
हर कदम रवि ओज बहार ।
कैसे करूं मैं तेरे यौवन का श्रृंगार ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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