जब देवकांत बरूआ ने इन्दिरा से कहा था - आप मुझे प्रधानमंत्री बना दो..
डॉ राकेश कुमार आर्य
बात उस समय की है जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अपना निर्णय सुना दिया गया था। यह निर्णय 1971 में श्रीमती गांधी द्वारा रायबरेली से लड़े गए लोकसभा के चुनाव के दौरान उनके द्वारा बरती गई अनियमितताओं को लेकर सुनाया गया था। श्रीमती गांधी के विरुद्ध लोकसभा के उस समय के चुनाव में राजनारायण एक मजबूत प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए थे। जिन्होंने अपनी चुनावी याचिका में आरोप लगाया था कि श्रीमती गांधी ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एक व्यक्ति को चुनाव लड़ाया और उसे ₹50000 की रिश्वत भी दी। श्रीमती गांधी ने ऐसा इसलिए किया था कि वह व्यक्ति जीतते हुए उम्मीदवार के वोट काट सकता था। राजनारायण का दूसरा आरोप था कि श्रीमती गांधी ने सेना के विमान का दुरुपयोग किया है और लोगों को गलत ढंग से अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयास किया है।
श्रीमती गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संबंधित जज श्री जगमोहन सिन्हा पर अनुचित प्रभाव डालने का प्रयास किया । कांग्रेस के एक सांसद की इस बात के लिए विशेष रूप से ड्यूटी लगा दी गई कि वह उपरोक्त जज महोदय के घर जाकर प्रतिदिन उनसे इस बात का दबाव बनाता था कि वह श्रीमती गांधी के पक्ष में ही फैसला सुनाएं। परंतु जज महोदय किसी भी स्थिति में अपने निर्णय को बदलना नहीं चाहते थे। एक दिन तो ऐसी भी स्थिति आई थी कि जज महोदय ने जब देखा कि वह सांसद आज भी उनके घर के बाहर आकर बैठ गए हैं तो उन्होंने भीतर से यह कहलवा दिया था कि आज वे यहां नहीं हैं और वह अपने भाई से मिलने के लिए गए हैं।
इंदिरा गांधी ने उपरोक्त न्यायाधीश पर यह संदेश भी भिजवाया था कि उन्हें प्रोन्नत करते हुए सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा। 12 जून 1975 को दिए गए अपने आदेश में सिन्हा महोदय ने यह स्पष्ट कर दिया कि श्रीमती गांधी का चुनाव अवैधानिक था और उन्होंने अनुचित साधनों का प्रयोग करते हुए जीत प्राप्त की थी। उपरोक्त निर्णय के आने के उपरांत देश का तत्कालीन विपक्ष जयप्रकाश नारायण जैसे नेता के नेतृत्व में एकजुट हो गया। उनके नेतृत्व से इंदिरा गांधी भयभीत हो गई थीं। जयप्रकाश नारायण की वक्तृत्व शैली चमत्कारिक थी। उन्होंने जोशीले अंदाज में कहा कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जिस प्रकार जनमत तेजी से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एकत्र हो रहा था, उसके दृष्टिगत इंदिरा गांधी के पैर उखड़ गए थे।
12जून के दिन इंदिरा गांधी के आवास पर एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया था । जिसमें कांग्रेस के सभी बड़े नेता उपस्थित हुए थे। संगठन के भी बड़े नेता वहां पर उपस्थित थे। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरूआ विशेष रूप से सक्रिय दिखाई दे रहे थे। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे और हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल भी वहां पर उपस्थित थे । सभी नेता इंदिरा गांधी को ध्यान से सुन रहे थे। इंदिरा गांधी ने अपने पद से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था।
सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी को 6 महीने पहले से यह कहते आ रहे थे कि आपको देश में आपातकाल लगा देना चाहिए और देश के सभी विपक्षी नेताओं को उठाकर जेल में डाल देना चाहिए। जिससे उनकी बुद्धि में सुधार किया जा सके और आपको देश पर शासन करने का अच्छा अवसर प्राप्त हो सके । इंदिरा गांधी के चमचा उस समय उन्हें देश में राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने की सलाह दे रहे थे। एक अधिकारी पी एन हक्सर इंदिरा जी को अक्सर समझाते थे कि आपको इस समय देश में प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से शासन चलाना चाहिए। देश में जनप्रतिनिधियों का चुनाव कराया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इंदिरा गांधी को इस प्रकार की चमचागिरी अच्छी लगती थी।
देवकांत बरुआ ने 12 जून की बैठक में इंदिरा गांधी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देकर कुछ देर के लिए मुझे देश का प्रधानमंत्री बना देना चाहिए । जिस समय देवकांत बरुआ इंदिरा जी से इस प्रकार का विचार विमर्श कर रहे थे , तभी वहां पर अपने मारुति उद्योग में व्यस्त रहने वाले इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी का प्रवेश होता है। वह नेताओं के चेहरों की उदासी को देखकर यह अनुमान लगा गए थे कि निश्चय ही निर्णय इंदिरा जी के विरुद्ध आया है । देवकांत बरुआ की बात को सुनकर उन्होंने इंदिरा गांधी को संकेत से अलग कमरे में बुलाया और वहां ले जाकर उन्होंने इंदिरा गांधी को डपटते हुए कहा कि किसी भी स्थिति में आपको त्यागपत्र देने की आवश्यकता नहीं है । यह सारे चमचों की जमात आपके पास बैठी है। देवकांत बरुआ के कथन पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। यदि यह एक बार प्रधानमंत्री बन गया तो फिर तुम्हें कभी सत्ता में लौटने नहीं देगा।
इंदिरा गांधी बात को समझ चुकी थीं। उधर देवकांत बरुआ भी समझ गए कि संजय गांधी ने इंदिरा जी से क्या कहा होगा ? तब उस व्यक्ति ने अपनी चमचागिरी का और भी पुख्ता प्रमाण देने का प्रयास करते हुए अपने भाषण में "इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा" का नारा दिया। जिसे उस समय के सभी कांग्रेसी नेताओं ने पकड़ लिया। बाद में इसी देवकांत बरुआ को अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी एक कविता में "चमचों का सरताज" कहा था। समय आने पर यह नेता इंदिरा का साथ छोड़कर देवराज अर्स के साथ कांग्रेस ( अर्स ) में चला गया था।
सिद्धार्थ शंकर रे पहले से ही इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लगाने की प्रेरणा देते आ रहे थे। समय की नजाकत को पहचानते हुए बंसीलाल ने भी लंगर लंगोट खींचा और मैदान में उतरकर कड़कते हुए इन्दिरा जी से बोले कि आपको देश में आपातकाल लगाना चाहिए और सारे नेताओं को हरियाणा की जेलों में भेज देना चाहिए । मैं सब की अकल सुधार दूंगा। बाद में इंदिरा गांधी ने यही किया। जितने भर भी नेता उस समय हरियाणा की जेलों में डाले गए थे, उनके साथ अत्यंत क्रूरता का अपमानजनक व्यवहार बंसीलाल ने किया था। लगभग 1 लाख विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, लेखकों आदि को उठाकर जेलों में डाल दिया गया था। उनके साथ जेल में जो कुछ हुआ था वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था। ऐसी भी घटनाएं हुई थीं कि जब किसी नेता ने पानी मांगा तो उसे पेशाब दे दिया गया था।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं। )
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