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चुनल बा आपन कवि

चुनल बा आपन कवि

भारी भीड़ के जरूरत बा ,
प्रतियोगिता के महूरत बा ।
प्रतिभागी में देखावे खातिर ,
चुपके से चुनल सूरत बा ।।
बिन कुछ कईले काम ना होई ,
बिन कुछ कईले नाम ना होई ।
होई सुबह अईसहीं कईसे ,
दिन के जबतक शाम ना होई ।।
प्रतिभागी बाटे पाॅंच आपन ,
जेकरा के जीतावे के बाटे ।
प्रतियोगिता में कोटि सर्वोच्च ,
ओकरे के देखावे के बाटे ।।
देवे के बाद पुरस्कार हमरा ,
दोसर कोई काहे ले जाई ।
जीत के एगो चाहीं बहाना ,
पुरस्कार अपने के दियाई ।।
एकरे खातिर त भीड़ चाहीं ,
प्रतियोगिता त बहाना बा ।
देखावे के बाद हमरा जबरन ,
ई प्रतिभागी सबके नाना बा ।।
कोई चाहे कईसनो होखे ,
वोसे हमरा का मतलब बा ।
आपन चेहरा आगे निकलो ,
एकरे त हमरा ई तलब बा ।।
आपन प्रतिभागी उहे बाटे ,
पईसा के कोरम करे पूरा ।
उहे कवि सबसे बड़का बाटे ,
बाकी सब बाड़न अधूरा ।।
पईसावाला बईठल बाड़न ,
उनके लिखाईल बा ठीका ।
पईसेवाला त पास बाड़न ,
बिन पईसा योग्य फींका ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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