सुरेश दत्त मिश्र: मगही साहित्य और सामाजिक चेतना के एक दीपस्तंभ
✍️लेखक: सत्येन्द्र कुमार पाठकसाहित्यिक और सामाजिक चेतना का संगम यदि किसी व्यक्तित्व में देखने को मिले, तो सुरेश दत्त मिश्र उसका जीवंत उदाहरण हैं. मगही भाषा के प्रति समर्पण, साहित्यिक लेखन में विविधता, संगठन निर्माण की अद्वितीय क्षमता, और प्रशासनिक सेवा में निष्ठा—इन सभी गुणों से युक्त मिश्र जी ने अपनी संपूर्ण जीवन यात्रा को समाज, संस्कृति और भाषा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. उनका जीवन न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मूल्यवान धरोहर भी है. सुरेश दत्त मिश्र का जन्म 5 मार्च 1936 को बिहार के गया जिले के प्रसिद्ध टिकारी राज्य के सयानन्दपुर गाँव में हुआ. यह वही धरती है, जहाँ से अनेक सांस्कृतिक और वैचारिक क्रांतियों का उद्भव हुआ है. उनके पिताश्री पंडित जगदीश दत्त मिश्र टिकारी राज के राजपुरोहित थे, जिनकी विद्वत्ता और धर्मज्ञान की ख्याति दूर-दूर तक थी. उन्हीं से बालक सुरेश ने संस्कार, परंपरा और सामाजिक दायित्व की बुनियादी शिक्षा प्राप्त की. उनकी प्रारंभिक शिक्षा टेकारी राज स्कूल में हुई, जो अपने समय में विद्या और अनुशासन का केंद्र था. आगे की उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने गया कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. यह शिक्षा न केवल उन्हें ज्ञान के औपचारिक स्वरूप से परिचित कराती है, बल्कि साहित्य, समाजशास्त्र और भाषा के गूढ़ तत्वों से भी उनका गहरा परिचय कराती है.

सुरेश जी का विवाह पटना सिटी के प्रतिष्ठित पंडित सीताराम मिश्र की सुपुत्री कमला देवी से हुआ. यह संबंध सिर्फ एक पारिवारिक बंधन नहीं था, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक समर्पण का भी प्रतीक था. उनके दो संतान हुए—पुत्री शशि प्रभा और सुपुत्र डॉ. राकेश दत्त मिश्र. डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए सामाजिक और बौद्धिक चेतना को आगे बढ़ाया है।
सुरेश दत्त मिश्र ने बिहार सरकार के राजभाषा विभाग में उपनिदेशक के रूप में कार्य किया और वहाँ भी भाषा के संवर्धन और विकास के लिए अथक प्रयास किए. राजभाषा नीति के सफल क्रियान्वयन में उनकी भूमिका सराहनीय रही. उनका कार्यकाल एक निष्ठावान, दूरदर्शी और संवेदनशील प्रशासक के रूप में याद किया जाता है.
मिश्र जी के जीवन का सर्वाधिक चमकता हुआ पक्ष उनका साहित्यिक योगदान है. वे एक बहुभाषी रचनाकार थे—मगही, हिंदी और संस्कृत पर उनकी गहरी पकड़ थी. उन्होंने न केवल लेखन किया, बल्कि अनुवाद, संपादन और साहित्यिक संगठन निर्माण में भी महत्वपूर्ण कार्य किए है।
उनकी प्रमुख कृतियों में उगेन (मगही कविता संग्रह) – यह कृति मगही जनजीवन के भाव, संवेदना और संघर्ष की आत्मा को शब्द देती है. बाज आइली (मगही कथा संग्रह) – मगही लोकजीवन की कथाओं का सशक्त दस्तावेज. ,प्रवंचना (हिंदी कथा संग्रह) – आधुनिक जीवन की विडंबनाओं को उकेरती सशक्त कहानियाँ. ,जंजाल (हिंदी उपन्यास) – सामाजिक जटिलताओं और मानसिक द्वंद्वों पर आधारित सशक्त रचना. ,संजना (मगही उपन्यास) – मगही में उपन्यास लेखन का यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. मगही की रामायण – उनकी अंतिम रचना, जो लोकभाषा में धार्मिकता और साहित्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है. मिश्र जी का जीवन संगठन निर्माण में भी उतना ही सशक्त रहा, जितना लेखन में. उन्होंने केन्द्रीय मगही परिषद के संयोजक के रूप में मगही भाषा के संवर्धन और मान्यता के लिए व्यापक कार्य किए. वे सूर्य पूजा परिषद के संस्थापक थे, जिसने सूर्य आराधना को सामाजिक चेतना के साथ जोड़ा. उनकी दूरदृष्टि और परिश्रम का ही परिणाम था कि उन्होंने ‘दिव्य रश्मि’ पत्रिका की स्थापना की, जो आज मगही, हिंदी और भारतीय सांस्कृतिक चेतना के संवाहक के रूप में प्रतिष्ठित है. यह पत्रिका केवल लेखन का मंच नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का माध्यम बन गई है. सुरेश दत्त मिश्र केवल एक लेखक या प्रशासक नहीं थे, बल्कि एक संपूर्ण व्यक्तित्व थे. उन्हें लेखन, अनुवाद, पर्यटन और संगठन निर्माण में विशेष रुचि थी. वे अत्यंत सहज, सौम्य और आत्मीय स्वभाव के व्यक्ति थे. उनके भीतर भारतीय संस्कृति, संस्कार और आधुनिक चेतना का सुंदर समन्वय था.
20 अगस्त 2021 को सुरेश दत्त मिश्र ने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा. उनका निधन मगही साहित्य और सामाजिक चेतना के लिए एक अपूरणीय क्षति थी. परंतु वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए, जो न केवल शब्दों में जीवित है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित संस्थानों, विचारों और प्रेरणादायी जीवन में भी जीवंत है.सुरेश दत्त मिश्र का जीवन एक संकल्प की तरह था—भाषा, संस्कृति और समाज के उत्थान का संकल्प. वे उन विरले व्यक्तित्वों में से थे, जो विचारों से क्रांति लाते हैं और कर्मों से समाज को दिशा देते हैं. मगही भाषा को साहित्यिक गरिमा देना, हिंदी कथा साहित्य को नई दृष्टि देना, और प्रशासनिक सेवा में ईमानदारी और दूरदर्शिता का उदाहरण प्रस्तुत करना—इन सभी में उनका योगदान अविस्मरणीय है.
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