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आनंद

आनंद

वेश बदल जब आए भोले ,
भोले का आनंद जहाॅं है ।
द्वारे खड़ी यशोमती मैया ,
बोले नंद का आनंद कहाॅं है ।।
दर्शन करा दो यशोमती माते ,
तेरे लाल आनंद कंद कहाॅं है ?
या बता दें हमें पता उनका ,
आनंद कंद का छंद कहाॅं है ?
देवकी वसुदेव थे बंदी जहाॅं ,
कारागार वह तो बंद कहाॅं है ?
हैं तेरे लाल माते तो यहीं पर ,
तेरे लाल का ये सुगंध यहाॅं है ।।
करा दे दर्शन मुझे तू माता ,
अंतर्मन में अंतर्द्वंद्व मचा है ।
उन्हीं में रमा यह तन मन मेरा ,
उन्हीं में रमा मेरा ये त्वचा है ।।
दीख रहा है प्रभु का यहीं से ,
हॅंस रहे प्रभु जी मंद यहाॅं है ।
करा दे दरश प्रभु का माता ,
मेरे हाथों का ये स्पंद यहाॅं है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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