रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान
आओ गाथा हम दुहरा लें ,झाॅंसी की महारानी की ।
अंग्रेजों संग युद्ध वे करके ,
गोरों को की पानी पानी थी ।।
राणा सा तेज था जिसका ,
लौह बल लिए पाणि था ।
कभी न पीछे हटने वाली ,
ललकार भरा ये वाणी था ।।
राष्ट्र हेतु जीवन ये जिसका ,
आजादी की दीवानी की ।
गुलामी से बेहतर मौत होती ,
झाॅंसी वीरांगना बलिदानी की ।।
मौत से जिसे भय नहीं था ,
गुलामी हेतु ये लय नहीं था ।
जूझ पड़ी बेहिचक गोरों से ,
मरने का अभी वय नहीं था ।।
स्वाभिमान हेतु जीना जिसे ,
स्वाभिमान हेतु जवानी थी ।
युद्ध कौशल में नई नहीं वह ,
नानी बन याद दिलाई नानी थी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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