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आस्था की सर्जनात्मक शक्ति

आस्था की सर्जनात्मक शक्ति

मनुष्य का विश्वास केवल मन की कल्पना नहीं, बल्कि एक अद्भुत सर्जनात्मक शक्ति है। जब हम पूरी निष्ठा एवं उत्साह से किसी ऐसे स्वप्न में आस्था रखते हैं, जो अभी दृष्टिगोचर नहीं है, तब धीरे-धीरे हमारी चेतना, संकल्प एवं कर्म उसे साकार करने में जुट जाते हैं।

इतिहास की अनगिनत उपलब्धियाँ इसी तथ्य का प्रमाण हैं। जो कुछ आज सामान्य या स्वाभाविक लगता है—उड़ते जहाज, अंतरिक्ष की यात्राएँ, असंभव से लगने वाले आविष्कार—कभी वे सब भी केवल किसी व्यक्ति की प्रबल इच्छा एवं अदम्य आस्था का परिणाम थे।

यहाँ तक कि हमारे अपने जीवन में भी कई बार कोई लक्ष्य इसलिए अधूरा रह जाता है, क्योंकि हमने उसे पूरे मन से चाहा नहीं। हमारी इच्छा जितनी गहरी एवं ईमानदार होती है, उतनी ही सृष्टि हमारी सहायता के लिए सक्रिय हो जाती है। असंभवता अक्सर केवल हमारी आकांक्षा की कमजोरी होती है, न कि परिस्थितियों की सीमा।

इसलिए यदि आप अपने सपनों को वास्तविकता में बदलना चाहते हैं, तो उन्हें शंका या आलस्य से नहीं, संपूर्ण आस्था एवं उत्साह से चाहें। अपने विश्वास को इतना सशक्त बना दें कि उसका न होना स्वयं असंभव प्रतीत होने लगे। यही आस्था की सर्जनात्मक शक्ति का रहस्य है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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